पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१८३

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१७० राष्ट्रीयता और समाजवाद तिसपर भी इन राष्ट्रोंका समर्थन फ्रास करता था। संसारका एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने कब्जेमे करके इन्होने यह कहना शुरू किया कि युद्धद्वारा अपने झगड़ोंको निपटानेका तरीका गलत है और जो शान्ति भंग करता है उसे लीगसे दण्ड मिलना चाहिये । किन्तु जब जापानने चीनपर आक्रमण किया और मचूरिया ले लिया तव चीन लीगका सदस्य था। लीगसे सहायताकी अपील की किन्तु लीगने कोई सहायता न दी । लीग याव् नेशन्स तो इंगलैण्ड और फ्रांसकी साम्राज्यवादी नीतिका समर्थन करनेके लिए बनायी गयी थी। यही दो राष्ट्र इसके प्रधान थे। यह अापसमे जो समझोता कर लेते थे उसीको लीग- द्वारा स्वीकृत करालेते थे। दुर्वल राष्ट्रोके सवल राष्ट्रोद्वारा ग्रसे जानेपर अपनी सुविधाके अनुसार ही कोई काररवाई करते थे । लोकतन्त्र तथा क्षुद्र राष्ट्रोकी रक्षाके लिए इन्होने कभी कुछ नही किया । जर्मनीको सन्तुष्ट करनेकी कोशिश इसलिए करते थे जिसमे इनपर नाक्रमण न करे, बलिदानका बकरा चाहे दूसरा कोई भले ही बने । मित्र राष्ट्रोकी अोरसे आज कहा जाता है कि यह यह स्वतन्त्रता और लोकमतकी रक्षाके लिए है। किन्तु हमने देखा कि जब जर्मनीने चेकोस्लोवाकियाके लोकतन्त्रपर आक्रमण किया तव इंगलैण्ड और फ्रांसने कुछ न किया, किन्तु उल्टे हिटलरसे म्यूनिकका समझौता कर लिया । पर जब पोलैण्डके अर्ध फैसिस्ट राष्ट्रपर आक्रमण हुआ तब इंगलण्डने जर्मनीके विरुद्ध युद्धकी घोपणा कर दी। क्या यह युद्ध फासिज्मविरोधी है ? कहा जाता है कि यह युद्ध फैसिज्मका विरोध करनेके लिए लड़ा जा रहा है, क्योकि एक ओर रूस और लोकतन्त्रवादी राष्ट्र है तथा दूसरी ओर फैसिस्ट राष्ट्र । किन्तु यह भ्रम मात्र है । हम ऊपर देख चुके है कि पोलैण्ड अर्ध फैसिस्ट. राष्ट्र लोकतन्त्रवादियोके साथ है । ग्रीस भी उनके खेमेमे है । पूर्वीय यूरोपके कुछ दूसरे अर्ध फैसिस्ट राष्ट्र भी युद्धके पहले इनके साथ थे। किन्तु हिटलरकी जीतने उनको इससे अलग कर दिया । यह भी ख्याल गलत है कि प्रधान फैसिस्ट राष्ट्र एक साथ मिलकर फैसिज्मको विचार- पद्धतिको फैलाने के लिए लड़ रहे है । फैसिस्ट भी साम्राज्यवादी है। उनमें भी परस्पर स्वार्थोका संघर्ष चलता रहता है । जर्मनी और इटलीके हितोका प्रत्यक्ष विरोध मध्य यूरोपमे देखा जा सकता है । किसको नही मालूम-कि आस्ट्रियाके प्रश्नको लेकर हिटलर और मुसोलिनीमे काफी तनाततनी हो गयी थी। किन्तु स्वार्थवश ये इस समय साथ है । समय आनेपर एक दूसरेके विरोधमे भी खडे हो सकते है। हिटलरने बोलशेविज्मका अन्त करनेके लिए यह लडाई नही छेड़ी है। वह तो वर्साईकी सन्धिको खतम कर यूरोपका प्रभुत्व चाहता है । वोलशेविज्मका हीया दिखाकर वह वरावर इंगलैण्ड और फ्रांसको वेवकूफ बनाता रहा और कई प्रदेश उसने विना लडे ही ले लिये । किन्तु जव चेम्वरलेनने देखा कि अव बहुत जल्दी हमारी वारी आनेवाली है तो युद्धकी घोषणा कर दी। यह वस्तुस्थिति है। सवको अपनी-अपनी फिक्र है । कोई राष्ट्र किसी आदर्शके लिए नही लड़ रहा है। सब अपने स्वार्थके लिए लड़ रहे है और हर एकसे मैत्री