पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१८४

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युद्ध और जनता १७१ करनेको तैयार है, चाहे वह प्रजातन्त्रवादी हो या फैसिस्ट । इस बातको फिरसे दुहरानेकी जरूरत है कि कोई भी राष्ट्र इस समय किसी वादके लिए नही लड रहा है । जिस तरह बोलशेविज्मका हौमा दिखाकर हिटलर इतने साल विना लड़ाईके अपना काम निकालता रहा उसी तरह मित्र राष्ट्र अब स्वतन्त्रता और लोकतन्त्रकी दुहाई देकर भोली-भाली जनताको बेवकूफ बनाना चाहते हैं । हिटलरको बोलशेविक रूससे अनाक्रमण सन्धि ( Non-aggression Pact ) करनेमे कोई मुश्किल नही हुई। स्टालिन भी फैसिस्ट जर्मनीसे पैक्ट करनेको खुशी-खुशी राजी हो गया । यह पैक्ट क्यो टूटा यह दूसरी कथा है, किन्तु यह भी असन्दिग्ध है कि वह इसलिए नही टूटा कि रूस एक कम्युनिस्ट राज्य है । आज भी रूस और जापानका पैक्ट कायम है । यह तो राजनीतिकी चाले है । कुछ दिन हुए सर स्टैफर्ड क्रिप्सने कहा था कि रूस दूसरी गवर्नमेण्टोके मामलेमे हस्तक्षेप नही करना चाहता । लड़ाई खतम होनेपर यह अपनेको मजबूत करनेमे लगेगा और इसलिए वह अपने राज्यकी सीमायोको सुधारना चाहता है । स्वय स्टालिनने कहा था कि हम राष्ट्रीय युद्ध लड़ रहे है । यदि यह युद्ध फैसिज्मका अन्त करनेके लिए चल रहा है तो इगलैण्ड रूसकी पूरी मदद क्यो नही करता ? सर स्टैफर्ड क्रिप्सतकने इसकी शिकायत की है। इस समय वास्तवमे अकेला रूस ही जर्मनीका सफल मुकाबला कर रहा है । और मो]पर तो मित्रराष्ट्रोकी हार हो रही है । यदि उद्देश्य एक है तो जो राष्ट्र वास्तवमे जर्मनीका सफल मुकाबला कर रहा है उसकी पूरी मदद होनी चाहिये । यदि अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रमे लोकतन्त्र और फैसिज्मकी प्रतिद्वन्द्विता चल रही है तो एकदेशीय दृष्टि नही होनी चाहिये । दुनियाके पैमानेपर ही लोकतन्त्र और फैसिज्मका फैसला होगा। फिर अपना-अपना क्या ? एक कुटुम्ब समझकर सव साधनोका उपयोग अच्छेसे अच्छे ढगसे होना चाहिये । किन्तु पंचपर पेच लगे हुए है । कही तो इसका डर है कि इगलैण्डमे कम्युनिस्ट विचार न फैल जाये । इसकी भी फिक्र है कि किसी भी हालतमे इगलैण्डकी रक्षाकी वर्तमान अवस्थामे तनिक भी फर्क न आये। युद्ध और भारत हमसे कहा जाता है कि रूसकी आजादीमे तुम्हारी आजादी शामिल है और इसलिए युद्धमें सहयोग करनेको कहा जाता है । इसका अर्थ यह है कि यदि दूसरे पदाक्रान्त राष्ट्र स्वतन्त्र होते है तो हम भी अन्तमे स्वतन्त्र हो जावेगे। किन्तु हमको तो धुरी राष्ट्रोने गुलाम नही बना रखा है । हम तो एक लोकतन्त्रवादी राष्ट्रके गुलाम है । वह चाहे तो आज भी भारतको स्वतन्त्र घोपित कर सकता है। इसमे धुरी राष्ट्र क्या अड़चन डाल रहे है ? यह भी सच नही है कि जितने देशोपर आज हिटलरका कब्जा है उन सवको वह सदाके लिए गुलाम बनाना चाहता है । युद्धकी आवश्यकतासे प्रेरित होकर ही उसको ऐसा करना पड़ा है। इगलैण्डको भी विवश होकर नारवेकी तटस्थताको भग करना पड़ा था। इस प्रकार इगलैण्ड और रूसने ईरानमे हस्तक्षेप किया था। और यदि यह सच है