पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९३

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१८० राष्ट्रीयता और समाजवाद हमारी स्वाधीनता खतरे में ? लोग यह नही समझ पाते थे कि हम पोलैण्डके लिए क्यों लड़े। पिछले युद्धके रक्तस्रावकी याद उनके हृदय-पटलपर अकित हो गयी थी। माताएँ सोचती थी कि लड़कोको क्या हमने इसीलिए पाला-पोसा और सुशिक्षित किया था कि जब वह जीवनक्षेत्रमे प्रवेश करने के योग्य हो जाये तब हम उन्हें बध्यस्थानमे मौतके घाट उतरनेको भेज दें। स्वतन्त्र देशोकी जनता साम्राज्यशाहीकी लड़ाइयाँ लड़नेको नही तैयार है। जर्मन जातिके साथ वार्ड में अन्याय न किया गया होता और वादको आर्थिक संकटके कारण जर्मन तवाह न हो गये होते और हिटलरने कमसे कम राष्ट्रीय अपमानको धोने और आर्थिक अनिश्चितताका अन्त करनेका प्रयत्न न किया होता तो जर्मन लोग आज हिटलरके साथ न होते। फ्रासके पतनके कारणोंका विश्लेषण करनेसे मालूम होता है कि बड़े-बड़े सेनापति और राजनीतिज्ञोकी धोखेबाजी ही पतनका कारण न थी किन्तु जनताका निरुत्साह और उदासीनता भी। यह उदासीनता इस कारण थी कि जन सयुक्त मोर्चे ( People's front ) की सरकारने जो कानून मजदूरोंके हितके लिए बनाये थे वह वादको रद्द कर दिये गये थे। इगलैण्डमें चचिलकी गवर्नमेण्टके यानेके वादसे कंजर्वेटिव गवर्नमेण्टने कई ऐसे कानून मजदूरोके लाभके लिए युद्धकी आवश्यकताअोसे विवश होकर बनाये है जो मजदूर पार्टीकी पुरानी मांगों की अपेक्षा कही अधिक बढे हुए है । पर इतना भी पर्याप्त नही समझा जाता है । इस युद्धने यह दिखा दिया है कि पूंजीवाद इस युद्धके जीतनेमे काफी रुकावट है । हथियारोके तैयार करने और जनशक्तिके उपयोगमे इगलैण्डकी वह सामाजिक व्यवस्था हारिज हो रही है जिसका अाधार व्यक्तिगत सम्पत्तिकी रक्षा और मुनाफा कमाना है । आज इगलैण्डमे खाद्यसामग्रीकी पैदावार बढ़ानेका प्रयत्न हो रहा है। इसके लिए खेतके मजदूरोकी मजदूरी काफी बढा दी गयी है । लेकिन वैकर, जमीदार और व्यापारी अपने स्वार्थके कारण अव भी रुकावट डाल रहे है । यह सर्वग्रासी युद्ध ( total war ) है। इसके जीतनेके लिए चौमुखी कोशिश होनी चाहिये । आवाटीके प्रत्येक हिस्सेकी मदद और हार्दिक सहयोगके विना यह लडाई नही जीती जा सकती। युद्ध जीतनेके लिए सबको अात्मत्याग करनेके लिए तैयार होना पड़ेगा । केवल सिपाहीका अात्मत्याग काफी नही है । नागरिकोको भी पूरा हिस्सा चुकाना पडेगा । सब स्वार्थोकी उपेक्षा करनी होगी। आवश्यकता पड़नेपर व्यक्तिगत सम्पत्ति भी बलिदान करना होगा । हिटलरको किसी किस्मकी अड़चन नही है । पर इंगलैण्डका पूंजीपति वर्ग अपने स्वार्थोको छोडनेको तैयार नहीं है। जव गवर्नमेण्टने खेत-मजदूरकी मजदूरी बढायी तो खेतोके मालिक गल्लेका भाव वढानेकी मांग करने लगे। यह वर्ग लड़ाईका बहुत बड़ा बोझ गरीबोपर छोड़ना चाहता है । पूंजीपतियोका एक भाग देशके स्वार्थीको भी अपने वर्गके स्वार्थोके लिए बलिदान कर देगा । इसी वर्गके प्रतिनिधि वाल्डविन और चेम्बरलेन थे। चर्चिल साम्राज्यके हितोको सर्वोपरि मानता है । जिस