पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९४

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युद्ध और जनता १८१ तरह पूंजीपतियोका वर्ग बडी कठिनाईसे अपने विशेपाधिकारोंको छोडनेको तैयार है उसी तरह जनता अव यह जानना चाहती है कि उसके क्या अधिकार है और यदि उससे सहायता मांगी जाती है तो उसकी मुसीवतोको दूर करनेके लिए हुकूमत क्या करनेको तैयार है । यह हालत स्वतन्त्र और प्रजातन्त्र कहलानेवाले देशोकी है। फिर जगे हुए परतन्त्र देशोका क्या कहना! पहले तो वहाँकी जनता परदेशी राजसत्ताके विरुद्ध होती है; दूसरे क्रान्तिके डरसे हुकूमत जनताको हथियार नहीं देती। जनता और अधिकारियो- के वीच अविश्वासकी एक दीवार खड़ी रहती है। जनता अपनी स्वतन्त्रताके लिए बार- वार उद्योग करती है : हुकूमत उसका दमन करती है। इसलिए इनका सम्बन्ध और भी कटु और विद्वेपपूर्ण हो जाता है । जो संगठन तेजस्वी, आत्मत्यागी और जनताका प्रिय होता है वही हुकूमतका विरोध करता है और वास्तवमे युद्धके समय वही हुकूमतके भी कामका होता है। किन्तु उसी सगठनसे हुकूमत सबसे ज्यादा घबराती है और उसीका सवसे कम विश्वास करती है । हुकूमतके वादोका जनता विश्वास नही करती है । हुकूमतमे इतना माहा और दूरदर्शिता नही होती कि वह युद्धकी आवश्यकताओको समझकर सब पुरानी परम्पराग्रोको तोड़ दे। जनतामे आत्मविश्वासकी कमीसे आक्रमणकारियोके विरोधकी उतनी तीव्र भावना नहीं होती। इन सव कारणोसे जनताका सहयोग नहीं प्राप्त होता, वह तटस्थ रहती है। इसलिए साम्राज्य ब्रिटेनकी कमजोरीका हेतु है। यह बात मलाया और वर्मामे प्रमाणित हो चुकी है। किन्तु तिसपर भी साम्राज्यका मोह छोड़ा नही जाता । जनता किस आशापर साथ दे ? उसकी गरीबी, वेकारी, वेवसी और गुलामी यह सव साम्राज्यवादके कारण है । आज भी उसके आर्थिक वोझ बढते जाते है । संयुक्त- प्रान्तमे बेदखलीका तांता लगा हुआ है। अकेले गोरखपुर जिलेमे २०००० वेदखलियाँ हुई है । जमीदारोका जुल्म बढता जाता है सरकारी अहलकार तरह देते है । इस्तेमालकी सव चीजे महँगी होती जाती है । गल्ला उसी हिसाबसे महँगा नही है क्योकि गल्लेकी कीमतपर नियन्त्रण है और महँगाईसे जो थोडा बहुत फायदा हुअा है, वह वनियोका, न कि किसानोका । आज कहा जाता है कि ज्यादा खाद्यसामग्री पैदा करो, किन्तु जैसा हम आगे दिखावेगे वर्तमान काश्तकारी कानूनके रहते यह सम्भव नही है । कोई भी गवर्नमेण्ट, जिसका निकट सम्पर्क जनतासे होता और जो वास्तवमे युद्धमे सफल होना चाहती, वेदखलीको वन्द कर देती और किसानोके रास्तेसे उन तमाम अड़चनोको दूर करनेका प्रयत्न करती जो उसको पैदावार बढ़ाने नही देती। ब्रिटेन साम्राज्यके वोझसे पिसा जाता है । यह गलत है कि जापानके टैक और डाइव वाम्बर साम्राज्यको छिन्न-भिन्न कर रहे है । साम्राज्यके वोझको फेककर नैतिकता- का अभेद्य कवच पहिन ब्रिटेन आज भी विजयी हो सकता है । उसके इस कार्यसे जापान- जर्मनीके अस्त्र-शस्त्र निस्तेज और निष्प्रभ हो जायेंगे । यह एक ऐसा प्रचार-कार्य होगा कि इससे युद्धकी कायापलट हो जावेगी। जर्मनीद्वारा आक्रान्त देशोको एक नूतन सन्देश मिलेगा और उनके बुझे हुए दिलोमें एक नवीन प्राशाका सचार होगा। एशियाके