पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८२ राष्ट्रीयता और समाजवाद देशोंमें एक कोनेसे दूसरे कोनेतक विजली दौड़ जायगी। जापानका सारा प्रचार व्यर्थ हो जावेगा । एणिया-अफ्रिकाकी असंख्य जनता फैसिज्मको नेस्तानाबूद करनेपर तुल जावेगी। फिर मोर्चाकी कमी नहीं रहेगी। पर जो लोग अस्त्र-शस्त्रपर ज्यादा विश्वास करते है वह नैतिकताके रहस्यको नहीं समझ सकते । केवल युद्धसामग्रीकी समृद्धिके आधारपर जो लड़ाई लड़ी जावेगी उसका नतीजा निश्चित रूपसे नही बताया जा सकता। हमारे सामने चीनियोकी मिसाल पेश की जाती है। किन्तु लोग भूल जाते हैं कि चीन स्वतन्त्र है और चीनियोंमें जापानियोके विरुद्ध प्रवल विद्वेगका भाव मौजूद है । इसका कारण यह है कि सन् १८६५ ई० से जापान चीनपर अाक्रमण करता पा रहा है और उसने चीनके कई प्रदेश हस्तगत कर लिये है । जापानका भारतके माथ राजनीतिक सम्बन्ध नही रहा है । इसलिए उसके विरुद्ध विद्वेष भाव होना सम्भव नहीं है। फिर चीनमे जनताकी प्रार्थिक अवस्थाको सुधारनेकी थोडी बहुत चेष्टा भी हो रही है । सहयोग समितिका अान्दोलन चल रहा है । एडगर स्नो ( Edgar Snow ) ने अपनी 'जली भूमि' ( Scorched Earth ) नामक पुस्तकमे बतलाया है कि जो प्रान्त कम्युनिस्टोंके अधिकारमे है और जहाँ किसानोंकी अवस्था ज्यादा अच्छी है वहाँके निवासी युद्धमे ज्यादा उत्साहके साथ सहयोग दे रहे है । एडगर स्नोकी गिकायत है कि अभीतक चीनका एक तिहाई भाग ही युद्धके लिए संगठित किया जा सका है और उनके अनुसार इसका कारण यही है कि किसानोंकी अवस्था सुधारनेपर पूरा ध्यान नही दिया जाता है । इसके लिए वह को-ग्रा-मिंटागको उत्तरदायी ठहराते है । युद्धके अनुभव बता रहे है कि जबतक जनताको एक नवीन ग्राणा और नवीन उद्देश्यसे प्रभावित नहीं किया जावेगा जिनके लिए वह मरनेके लिये तैयार हो और जिनकी रक्षाके लिए वह अात्मवलिदान करे, तवतक युद्धमे किसी पक्षको सफलता नही मिल सकती। रूस और चीनके साथ जो सबकी हार्दिक सहानुभूति है उससे कहाँतक लाभ उटाया जा सकता है ? इनका मित्र राष्ट्रोके खेमेमे होना मित्र राष्ट्रोको बल पहुंचाता है। पर यह पूंजी उनकी निजकी नहीं है और दूसरेकी पूंजीके आधारपर कबतक काम चल सकता है ? वही युद्धनीति सर्वोत्तम है जो जनताकी सामाजिक तथा आर्थिक उन्नतिकी आवश्यकताको पूरी करती है । इतिहास गतिशील है । वह ऐसी सस्थानोको बहुत अरसेतक कायम नहीं रहने देगा जो जड़ हो गयी है और उसकी प्रगतिमें बाधा पहुंचाती है । पुराने साम्राज्य ध्वस्त हो रहे है । यह प्रक्रिया हमारी आँखोके सामने चल रही है। उनका स्थान लेनेके लिए किसी नयी संस्थाका जन्म होगा। यदि ससारकी प्रगतिशील शक्तियाँ वर्तमान युद्धको सामाजिक क्रान्तिके युद्धमें परिणत करके समाजवादकी स्थापनाके लिए सचेष्ट न हुई तो कुछ समयके लिए फासिज्मके छा जानेका अन्देशा है । सव समझदार लोग इंगलैण्ड और अमेरिकासे यह सवाल कर रहे है कि वे साम्राज्य वादके वोझसे अपनेको हल्का करे तथा सव राष्ट्रोंकी स्वतन्त्रता स्वीकार कर समस्त ससारमे एक ऐसी नयी व्यवस्थाका प्रारम्भ करे जिससे जनताको सच्ची शान्ति, आर्थिक निश्चिन्तता और स्वतन्त्रता प्राप्त हो । संसारकी उन्नतिका तथा विजय