पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१९६

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'युद्ध और जनता १८३ प्राप्त करनेका यह सर्वोत्तम उपाय है । आधी लडाई तो विचारोकी लडाई है। जिसके पास कोई प्रोग्राम नही है वह अस्त्र-शस्त्र- सुसज्जित होनेपर भी कुछ नही कर सकता । विचारोकी शक्ति टैकोसे भी कही ज्यादा गहरी और जवर्दस्त है। विचार पहाड़ो और समुद्रोका भी उल्लङ्घन करते है और उनके सामने राष्ट्रीय हदे वेकार हो जाती है । इगलैण्डके प्रसिद्ध फौजी अफसर लिडलहार्ट ( Liddellhart ) के शब्दोमे 'इस लड़ाईका फैसला मनोवैज्ञानिक ( psychological ) क्षेत्रमे होगा।' इसके लिए जनताकी जीविकाका प्रश्न हल करना और उसके अधिकारोको विस्तृत करना आवश्यक है। किन्तु, साम्राज्यवादी राष्ट्र क्यो इन बातोपर ध्यान देने लगे ? वह अपनी पाशविक शक्ति और असीम धनके गर्वके नशेमे चूर है । यदि कुछ करना भी चाहते है तो कदम फूंक-फूंककर रखते है । पर आज इसका जमाना नही रहा । आज तो करोड़ो दिलोको हिला देनेवाली नीतिकी जरूरत है। युद्ध-सम्बन्धी समस्याएँ हम चाहें या न चाहें हमारे ऊपर यह युद्ध लाद ही दिया गया है । युद्धके कारण हमारे देशमे तरह-तरहकी समस्याएँ उठ खडी हुई है। अपने देशके कल्याण, अपने देशवासियोके सुख और शान्तिकी दृष्टिसे हमे इन समस्याओका सामना करना है, इनको हल करना है। ज्यो-ज्यो देश इन समस्याग्रोको हल करनेकी ओर बढेगा वह स्पष्ट अनुभव करेगा कि स्वतन्त्रता और सामाजिक क्रान्तिकी कितनी तात्कालिक आवश्यकता है। इसके विना गाडी आगे बढ़ ही नही पाती और हमारे सारे प्रयत्न बेकार मालूम पडते है, हमारी सारी योजनाएँ कागजोमे ही धरी रह जायेंगी। अगर इन कठिनाइयोका दृढतासे सामना नही किया गया तो सारा देश बडी परेशानी और तकलीफ उठायेगा। युद्धके कारणं चीजे महँगी हो ही जाती है । हमारे देशमे भी ऐसा ही हो रहा है । सभी चीजोका दाम दिन-ब-दिन बढता जा रहा है। शहरोमे रहनेवाले लोगोको वडी कठिनाईका सामना करना पड़ रहा है । जीवन-निर्वाहकी समस्या वडी कठिन हो गयी है। देहात मे समस्या थोड़ी भिन्न है, मगर देहातके लोग भी हर तरहसे परेशान है। किसानोकी मामूली जरूरतकी चीजें महंगी हो गयी है और हर तरहका जुल्म वढ गया है । मौका पाकर जमीदार अपनी खोयी हुई सुविधाएँ तथा अधिकार फिरसे हस्तगत करने, किसानोको वेदखल करने तथा उनसे तरह-तरहकी वसूलियावियाँ करनेमे लगे है। इस देशकी हुकूमत तो लडाई चलानेकी धुनमे है । उसे लड़ाईके लिए रुपये और सामान इकट्ठा करनेकी परेशानी है और यह सब घूम फिरकर किसानोके ऊपर पडता है । हुकूमत जमीदारोको पकड़ती है और जमीदार किसानोको पकडते है । जैसे-जैसे युद्ध फैलता और बढता जायगा ये समस्याएँ और भी विकट रूप धारण करती जायेंगी। हम सभी लोगोके सामने महँगी और भरपेट भोजनकी सामग्री इकट्ठा करनेका प्रश्न आयेगा । साधारण समयमे भी हिन्दुस्तानमे चावल और गेहूँ काफी नही पैदा होता । हमे हर साल वर्मासे ३५ लाख टन चावल मँगवाना पडता था। करीव-