पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२०४

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समाजवादी क्रान्तिकी रूपरेखा १९१ अर्थ करना पड़ता है । जीवनमे गति और क्रिया होती है । अत: मार्क्सवाद भी गतिशील और क्रियाशील है और इसलिए उसमे लोच है। किन्तु जव वह स्थिर वस्तु हो जाता है, तब उसका क्रान्तिकारी तत्त्व नष्ट हो जाता है और वह एक प्रकारका राजनीतिक व्याकरण हो जाता है जिसके कठोर नियमोमे किसी प्रकारका हेरफेर नही हो सकता । मार्क्सवादको एक जिन्दा शास्त्र माननेमे ही उसका गौरव है । एक तो यो ही पुराने विचार निरर्थक हो जानेके पीछे भी बहुत दिनोतक जीवित रहते है और जीवनको प्रभावित करते रहते है और इसी कारण आर्थिक पद्धतिके बहुत कुछ वदल जानेपर भी पुरानी विचारशैलीके वदलनेमे बहुत समय लगता है और जब हम कुछ सिद्धान्तोको अटल मान लेगे तव तो हमारा कार्य और भी कठिन हो जायगा । मार्क्सवाद और उसके तरीकोके सम्वन्धमे यह कहना एक गलतफहमी है कि यह लोकतन्त्रात्मक नहीं है। यह एक मिथ्या धारणा है। सोवियत रूसकी शासन-प्रणालीके लोकतन्त्रात्मक न होनेके कारण यह धारणा पुष्ट हो गयी है । पुनः राजनीतिक लोकतन्त्रके अपूर्ण होनेके कारण तथा पूँजीवादके युग मे उसकी प्रतिष्ठा होनेके कारण हम उसको 'Capitalist democracy' कहकर उसका बार-बार उपहास करते रहे है। इन्ही कारणोसे लोकतन्त्र एक मखौलकी वस्तु बन गया था। १९ वी सदीका लोकतन्त्र अपूर्ण अवश्य था और अपूर्ण होते हुए भी वह पूर्णताका दावा करता था। इस कारण उसकी कमजोरियोको दिखाना और भी आवश्यक था । २० वी सदीमे लोकतन्त्रकी व्याख्या और विस्तृत होती गयी है और नागरिक स्वतन्त्रता तथा राजनीतिक लोकतन्त्रके साथ-साथ आर्थिक जनतन्त्र भी इसका आवश्यक अङ्ग माना गया है, किन्तु 'Capitalist democracy' का मखौल उडानेसे तथा सोवियत रूसमे राजनीतिक लोकतन्त्रके अभाव से लोकतन्त्रके इस अगको क्षति पहुँची है । इसका बुरा परिणाम यह हुआ है कि वहुतसे ऐसे लोग जो पहले कम्युनिस्ट थे, इस कमीके कारण आर्थिक लोकतन्त्रकी भी उपेक्षा करनेको तैयार है। उनके मतमे प्रधान वस्तु व्यक्तिको स्वतन्त्रता है । इस प्रकार लोकतन्त्रका क्षेत्र दोनो ओरसे सकुचित हो गया है । हमको एक पूर्ण वस्तु चाहिये । दोनो प्रकारके लोकतन्त्रसे ही व्यक्तित्वकी कृतकृत्यता हो सकती है, किन्तु पार्थक्यके कारण समाजमे दलगत प्रभुत्व ( Totalitarianism ) की वृद्धि हुई है और मार्क्स- वादको क्षति पहुँची है। फैसिंज्मके जन्ममे भी Capitalist democracy का विरोध और उसका उपहास सहायक रहा है। उसको अपूर्ण वताना आवश्यक था; किन्तु पूंजीवादके साथ-साथ उस अधरी चीजका मजाक उड़ाना ठीक न था। इस वातमे कम्युनिज्म और फासिज्मकी समानता होनेके कारण कुछ लोगोने दोनोको एक ही कोटिमें रखा है । इग्लैण्डके एक अर्थशास्त्री तो इस कारण समाजवादको ही गुलामीकी ओर ले जानेवाला समझते है। उनके मतमे आर्थिक क्षेत्रमे स्वतन्त्रता रहने से ही अन्य प्रकारको स्वतन्त्रता सुरक्षित रह सकती है । वह लोकतन्त्रकी दुहाई देकर पूंजीवादको ही जिन्दा रखना चाहते है । पुन. कई फासिस्ट राज्योके कायम हो जानेसे नागरिक स्वतन्त्रता तथा राजनीतिक लोकतन्त्रका प्रश्न एक महत्वका प्रश्न हो गया । इस प्रश्नने