पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२१०

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समाजवादी दल १६७ पार्टीके आचरण, मानवके अधिकारोंको प्रधानता देने लग गये है वे प्राय स्टालिनके दलके पड्यन्त्रोको इस स्थितिका कारण बताते है । साथ-ही-साथ ऐसे भी लोग है जो इन विषयोमें अधिक गम्भीर विचार रखते है और जिनका मत है कि व्यवस्थामूलक कार्यक्रम व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य- को ह्रास पहुंचावेगा। इन दोनो ही दृष्टिकोणोमे सत्यांश है, किन्तु यदि गणतन्त्रीय कार्यक्रमका सूत्रपात कर दिया जाय तो इस खतरेसे बचा जा सकता है । व्यवस्थाके मूलमें कोई ऐसी आन्तरिक वात नही है जिसके कारण मानवके अधिकारोके लिए कोई खतरा (भयावह स्थिति) उपस्थित हो जाय। किसी भी राज्यकी आर्थिक स्थितिकी ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि इस प्रकारके कार्यक्रममे सन्निहित खतरे न्यूनतम हो जायँ । गणतन्त्रीय भावनानोको राज्यव्यवस्था-प्रवन्धकी सीमाके वाहर भी ले पाना, अर्थसम्बन्धी व्यस्थाका विकेन्द्रीकरण, ऐसी गैर-सरकारी संस्थानोकी स्थापना जो खास-खास उद्योग-धन्धे चलवाये और स्वतन्त्र मजदूरवर्गके सघटनोद्वारा समाजकी आर्थिक व्यवस्थाका नियमन इत्यादि ऐसे उपाय है जिनसे खतरा दूर किया जा सकता है। एक बात और है जिसके कारण कम्युनिज्मकी निन्दा की जाती है । कम्युनिस्ट उसके षड्यन्त्र और द्विविधामूलक व्यापार, उसकी सुस्पष्ट अवसरवादिता और दूसरोके साथ व्यवहारमे नैतिक मान्यताप्रोकी नितान्त अवहेलनाप्रोके कारण सोशलिज्म बदनाम हो गया है । जब कभी कम्युनिस्ट पार्टीने दूसरी राजनीतिक पार्टियोके साथ कन्धासे कन्धा मिलाया है तो उसने अपने लाभ और सुभीतेके लिए ही ऐसा किया है और जव कभी इसने दूसरी सस्थानोके साथ सम्बन्ध जोड़नेका प्रयत्न किया है तो उसका उद्देश्य या तो उसे हथिया लेनेका रहा है या उसे छिन्न-भिन्न कर देनेका । उनके सिद्धान्त और चालोमे जो कौतूहलपूर्ण सतत परिवर्तन हुआ करते है उनके साथ चल सकना दुल्ह वात है । यह सत्य स्वीकार ही करना पड़ेगा कि सोशलिज्मके उद्देश्यको. कम्युनिस्ट दलोके सिद्धान्तशून्य व्यापार और उनकी सन्दिग्ध नैतिकताके कारण अत्यन्त हानि पहुँची है। मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है कि यदि इनके व्यवहारका मापदण्ड दूसरे प्रकारका हुआ होता तो वामपक्षीय एकता सम्भव हो गयी होती। विचारणीय बात है कि यद्यपि वे आज गणतन्त्रका समर्थन करते है तथापि यही प्रतीत होता है कि कुछ सामयिक सुविधाएँ प्राप्त करनेकी उनकी यह एक चालमात्र है । वह जो कहते है वही उनकी सच्ची भावना नही रहती यह तो इसी वातसे सिद्ध हो जाता है कि सोवियत रूसमे जनताको राजनीतिक स्वतन्त्रता देनेके लिए कुछ भी नहीं होता। वल्गेरियाका सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट डिमीट्राफ तो अपनी पार्टीसे छिपाता ही नहीं कि यह सब कुछ इतर उद्देश्योकी सिद्धिका छद्म उपाय है । उसके शब्द है "अभी तो कम्युनिस्ट पार्टीको एक साधारण गणतन्त्रीय दलका ही रूप धारण करना है। ऐसे कम्युनिस्ट जिन्हें इस प्रकारके व्यर्थक दृष्टिकोणके कारण कष्ट पहुंचता है या तो मार्क्सवादी ही नहीं है या वे केवल उत्तेजनावादी ( Provocateurs ) है ।" भला ऐसे वक्तव्यके समक्ष गैरकम्युनिस्टोसे कैसे आणा की जा सकती है कि वे उनके साथ मिलकर कोई कार्यक्रम वनावे ।