१९८ राष्ट्रीयता और समाजवाद ससारके कम्युनिस्टोको फासिज्म और युद्धके खतरेके विरुद्ध जनतामे स्वतन्त्रता और गणतन्त्रके नामपर मोर्चे वनाने थे । युद्धकालमे कम्युनिस्ट यूरोपमे प्रतिरोधात्मक आन्दोलन चलाते थे उनके सम्बन्धमे अपने कार्यक्रममे कम्युनिज्मका नामतक नही लेते थे। तब वे केवल डिमोक्रेसीका दम भरते थे। असख्य जनसमूहको स्वतन्त्रता और गणतन्त्रके नाम- पर फासिज्मके विरुद्ध कार्यरत किया गया और अब जव युद्ध समाप्त हो गया है और फासिस्ट शक्तियोका दम टूट गया है तो युक्तिसंगत यही बात है कि इन उदात्त विचारोकी महान् सम्भावनाप्रोको चरितार्थ किया जाय और यह वात असंशयात्मक रूपसे सुस्पष्ट कर दी जाय कि हम लोग गणतन्त्रात्मक समाजवादके पक्षमे बद्धपरिकर है । जहाँतक कि कांग्रेसके समाजवादियोंका सम्बन्ध है हमलोग सदैव जनतन्त्र और स्वतन्त्रताके ही लिए प्रारूढ रहे है । हमने सदैव एक स्वयसिद्ध वातके तौरपर यह माना है कि समाजवाद ही पूर्ण जनतन्त्र है और यह कहा है कि समाजवाद एक सिद्धान्त है जो मानव व्यक्तित्वके स्वतन्त्र विकासपर उतना ही जोर देता है जितना आर्थिक स्वतन्त्रता पर । सोवियत रूसने मानव-क्रिया-कलापके विभिन्न क्षेत्रोमे जो सिद्धियाँ प्राप्त की है उनके हमलोग सदैव प्रशंसक ही रहे है, पर हम उसके मिन भावसे आलोचक रहे है और खेदके साथ यह कहते आये है कि उसने राजनीतिक स्वतन्त्रताके प्रश्नकी उपेक्षा की है। जो लोग यह समझते है कि मार्क्सके विचार (Teachings) जनतन्त्रके विरुद्ध है, वह गलती करते है । मार्क्स अपने युगका एक महान् मानवतावादी था। विचार प्रकट करनेकी स्वतन्त्रता ( freedom of expression ) का अधिकार वह मनुष्यकी सम्पत्तिमे सबसे पवित्र सम्पत्ति मानता था। कितने जोरके साथ उसने व्यकतिगत स्वतन्त्रताका समर्थन किया था, वह सुविदित है। उसका कम्युनिज्म पूर्ण जनतन्त्रको स्वीकार करके चला था। यही कारण था कि वह यह विश्वास करता था कि जन-तन्त्रवादी इंगलैण्ड और अमेरिकामे समाजवाद हिंस्र उपायोका उपयोग किये बिना ही स्थापित हो जायगा । उसका विचार था कि मनुष्योपर प्रतियोगिता एव सम्पत्तिके कारण जो नियमन और रोक-थाम चलाते है, वही सब अनर्थोका मूल है। एजिल्सने कम्युनिज्मकी यही व्याख्या की कि यह निम्नस्तरकी जनताको मुक्तिके लिए आवश्यक साधनोका सिद्धान्त है। निश्चय है कि मार्क्स किंवा एजिल्स ऐसे समाजवादका समर्थन कभी न करते जो जनताके लिए कामकी व्यवस्था करनेके साथ ही उसे दासत्वकी शृङ्खलामे बाँधे और उसकी सच्ची स्वतन्त्रताका अपहरण करे । मार्क्सके मतानुसार मानवके विकासक्रममे सामन्तशाही और पूंजीवादकी स्थितिमे व्यक्ति मानव रह ही नही गया था और निम्न स्तरकी जनतामे क्रान्ति कराकर ही व्यक्तिके लुप्त अस्तित्वका पुनरुद्धार किया जा सकता है। उसका यह विचार था कि निम्नवर्गका व्यक्ति ही मानवताका प्रतिनिधि है और उसकी विजयसे ही मानवताकी भावनाकी विजय होगी। अपनी व्यवस्थामे उसने सामाजिक मानवको केन्द्रस्थानमे रखा था। मार्क्सद्वारा स्थापित कम्युनिस्ट लीगके मुख-पत्न, कम्युनिस्ट जर्नलकी कोलोके कम्युनिस्ट ट्रायलवाली प्रति (सितम्बर १८४७) मे छपी हुई इस वातसे बहुत बातोका पता चल जाता है-'
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२११
दिखावट