पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२१३

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२०० राष्ट्रीयता और समाजवाद प्रजातन्त्र और सोशलिज्मके एक प्रश्नपर ही अपने विचार प्रकट करनेकी स्वतन्त्रता मैंने ली है, क्योंकि इस समयका यह एक मौलिक प्रश्न हो गया है । हमे जनतन्त्र और स्वतन्त्रतामे अपना विश्वास फिरसे घोषित करना है । आज इस घोपणाकी आवश्यकता सबसे अधिक है, क्योकि यदि विगत महायुद्धने कोई बात प्रमाणित की है तो वह यह है कि साधारण मानव अपने लिए काम और उसे करनेके लिए अनुकूल और अच्छी परिस्थिति सुनिश्चित कर लेनेके बाद निश्चय ही अपने लिए स्वतन्त्रता और जनतन्त्रकी मांग करेगा ताकि वह पूर्ण रूपसे अपना विकास कर सके । सम्मेलन तो अपनी नीतिके विपयमे एक सुस्पष्ट घोपणा करेगा ही और पार्टीका संगठन-सम्बन्धी कार्यक्रम भी निर्धारित करेगा ही। एक बात और है जिसकी चर्चा अपना वक्तव्य समाप्त करनेके पूर्व मैं कर देना चाहूँगा- -इस समय कुछ दलो द्वारा यह पुकार हुई है कि वामपक्षियोको एक हो जाना चाहिये । उनकी मांग है कि वामपक्षी दलोंको चाहिये कि एकत्र होकर एक संयुक्त मोर्चेका निर्माण करे । इसमे सन्देह नही कि यदि सभी क्रान्तिमूलक समाजवादी शक्तियाँ एकीभूत हो जायँ तो वह प्रतिक्रियावादी मोर्चेके विरुद्ध एक अभेद्य शक्ति हो जायगी। किन्तु खेदकी बात है कि सुविदित कारणोसे, जिनकी ओर ऊपर संक्षेपमे संकेत किया जा चुका है, निकट भविष्यमें ऐसा एकीकरण सम्भव नही प्रतीत होता । हम काग्रेसके सोशलिस्ट अपने तई वहुत हानि उठाकर भी इस देशमे सोशलिस्ट ऐक्य स्थापित करनेका अधिकसे अधिक प्रयत्न कर चुके है और अन्तमे हमे पता चला है कि हमलोग केवल मृगतृष्णाके फेरमे पड़े रहे है और जो लोग हमारे साथ मिलनेकी उत्सुकता प्रकट कर रहे थे, वे केवल अपनी पार्टीके सुभीतेके लिए वैसा कर रहे थे । आन्दोलनको सवक बनाना उनका उद्देश्य नही था। आश्चर्य तो यह है कि भारतवर्पमे ही यह वात नही हुई। वामपक्षियोमे एकताका अभाव एक सर्वव्यापी रोग है । कम्युनिस्टोकी व्यवहार-व्यवस्थामे कोई महत्त्वपूर्ण कमी है जिसके कारण सोशलिस्टोमे इतना पारस्परिक अनक्य है। जवतक इनमे आमूल परिवर्तन नही हो पाता, ऐक्यकी कोई आशा नही । सभी वामपक्षियोके लिए और विशेषत. कम्युनिस्टोके लिए मैं कम्युनिस्ट-लीगके मुख-पत्र (सितम्बर १८४७) मेसे निम्नांकित अश देना चाहता हूँ- 'यहाँ हमे थोडे शब्द निम्नवर्गके केवल उनलोगोसे कहना है जो अन्य राजनीतिक अथवा सामाजिक दलोमे है । हम सबको आजके समाजसे लोहा लेना है, क्योकि यह हमे दबाता है और दीनता और घृणित दशामें सडने देता है। खेद है कि यह समझने और आपसमे ऐक्य स्थापित करनेके बजाय हम आपसमे लडने झगड़नेके लिए ही उद्यत रहते हैं, जिससे हमे दबानेवालोको आनन्द मिलता है। ऐसी जनतन्त्रीय राज्यव्यवस्थाके प्रतिष्ठापनके निमित्त जिसके अन्तर्गत प्रत्येक दल वक्तव्यो एव लेखोद्वारा अपने आदर्शोके लिए वहुमत अपने पक्षमे करनेमे समर्थ हो सके, एक ही व्यक्तिकी भाँति हम सब एक हो जानेके बजाय आपसमे ही इस बातके लिए झगड़ते रहते है कि जब हमलोग विजयी हो जायँगे तब क्या होगा और क्या नही होगा।