पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२१५

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२०२ राष्ट्रीयता और समाजवाद अधिकारी कभी नही स्वीकार किये जाते थे। उसका अधिकारी तो किसान अथवा ग्राम पचायतें ही होती थी। सम्राट अशोकने जव स्वयं अपनी सीर और खुदकाश्तके अतिरिक्त अन्य भूमि भी भिक्षुप्रोको दानमे देदेनेकी इच्छा प्रकट की तो उन्हें मन्त्रियोंने बताया कि उन्हें ऐसा करनेका अधिकार नही है । हमारे प्रान्तके अवधके तालुकेदारोने तो जमीदारी पानेके लिए एक कोडी भी खर्च नही की। सन् १८५७ के स्वाधीनता-सग्राममे विद्रोही जमीदारोकी जमीने छीनकर अग्रेजोकी मदद करनेवालोको दे दी गयी। अवधके तालुकेदारोकी जमीन इसी प्रकार मिली हुई है । अत. न्यायकी दृष्टिसे उन्हे मुग्रावजा पानेका कोई हक नही है । जब कि जमीदारी प्रथाका अन्त करनेके लिए सरकारको कानूनन् मुआवजा देना ही पड़ेगा ऐसी हालतमे यह रकम थोडीसे-थोडी होनी चाहिये । जमींदारोंकी धांधली सरकारकी पोरसे जमीदारी प्रथाका अन्त करनेमे जो सुस्ती दिखायी जा रही है उसके कारण किसानोपर इस समय एक जवर्दस्त ग्राफत पायी हुई है । जमीदार यह सोचते है कि जमीदारी तो जानेवाली है इसलिए इस समय उसके जरिये ज्यादासे ज्यादा जो भी वसूल किया जा सके वसूल कर लिया जाय । साथ ही वे नजराना लेकर तालाबो, चारागाहो और सार्वजनिक रास्तोकी जमीनको भी जोतपर उठा रहे है जिससे आगे चलकर अपनी जमीदारीकी खेतीके वढे हुए रकवेके मुताविक वे मुगावजेकी भी अपेक्षाकृत बड़ी रकम वसूल कर सके । शिकमी काश्तकार बड़ी तादादमे वेदखल किये जा रहे है । प्रान्तीय सरकारका कर्तव्य है कि वह जल्द-से-जल्द जमीदारी प्रथाको समाप्त करे । साथ- ही इस बीच जमीदारोद्वारा जो जुल्म हो रहे है उनसे किसानोकी रक्षा होना भी अत्यन्त आवश्यक है । यह प्रसन्नताकी वात है कि प्रान्तीय सरकारने इस आशयका एक कानून पास किया है कि जिन जमीदारोके अत्याचारोसे किसान वहुत तंग आ गये है उनकी जमीदारी सरकार 'कोर्ट पाव वार्ड्स' की देख-रेखमे ले ले । आशा है, यह कानून केवल कागजी ही नही रह जायगा, सरकारकी अोरसे कडाईके साथ इसको पालन करनेका प्रवन्ध किया जायगा । जगलो, चारागाहो, सार्वजनिक मार्गो आदिकी रक्षाके लिए भी शीघ्र एक कानून बनाये जानेकी आवश्यकता है। जमींदारोंके अन्तके पश्चात् जमीदारी प्रथाका अन्त हो जानेसे ही किसानोकी वर्तमान दुरवस्थाका अन्त नहीं हो जायगा । जमीनपर बढ़े हुए वेहद भारको हटाने तथा उसकी पैदावार बढ़ानेके लिए सरकार तथा स्वयं किसानोंको साहसपूर्ण कदम उठाने होगे । उद्योग-धन्धोका उचित विकास न होनेके कारण भूमिपर भार वेहद बढ़ गया है और वह छोटे-छोटे असंख्य अलाभकर टुकड़ोमे वॅट गयी है । भूमिपर इस भारको दूर करनेके लिए सरकारको उद्योग-धन्धोंका तेजीसे विस्तार करनेकी नीति अपनानी चाहिये । छोटी-छोटी टुकड़ियोमे बँटी हुई जमीन- को लाभकर बनाने और उससे पूरा फायदा उठानेके लिए हमे चकबन्दीकी नीति अपनानी