पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२१६

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किसानोका उद्धार कैसे हो २०३ पड़ेगी। चकबन्दी हो जानेपर भी एक परिवारके हिस्सेमे जमीनका जितना बडा टुकड़ा आता है उसपर आधुनिक यन्त्रोका लाभकर प्रयोग नही किया जा सकता । खेतोमे आधुनिक यन्त्रोके प्रयोगके लिए वडे-बडे खेतोका होना जरूरी है। अत. आवश्यकता इस बातकी है कि समूचे गाँवके लोग मिलकर सहकारी कृषिकी प्रथाको अपनावे, सवकी जमीन एक साथ जोती और वोयी जाय, फसलके काटनेके वक्त क्षेत्रफलके हिसाबसे पैदावार वाँट ली जाय । सिंचाईके लिए सरकारको विजलीका प्रवन्ध करना चाहिये । वहुतसे किसान आज कर्जके भारसे बुरी तरह पिस रहे है। सरकारका कर्तव्य है कि वह उन्हे सस्ते दरपर सूद देनेवाली सरकारी बैक खोलकर साहूकारी-पाशसे मुक्त करे । किसान सस्ती दरपर अच्छी खाद और बीज वगैरह प्राप्त कर सके और अपनी पैदावारका उन्हे. पूरा मुग्रावजा मिल सके इसके लिए जरूरी है कि बीचके दलालोको दूर किया जाय तथा खरीद और विक्रीका सारा कार्य सहकारी समितियोके जरिये किया जाय । इस प्रसगमे किसानोको प्रान्तीय सरकारके गाँव हुकूमत विलके द्वारा जो अधिकार मिलनेवाले है उनका पूरा इस्तेमाल करना चाहिये। किसान-सभाओंका कार्य अवतक किसान-सभासोका कार्य मुय्यत. प्रचारात्मक रहा है, वे किसानोकी शिकायतोको सरकारके सामने रखकर उन्हें दूर करनेके लिए आन्दोलन करती रही है। किन्तु अव जव कि जमीदारी प्रथाका अन्त निकट है और राज्यसत्ता भारतीयोको हस्तान्तरित होनेवाली है तब उन्हे किसान-मजदूर राज्यकी स्थापनाके ध्येयको लेकर रचनात्मक कार्यमे लगना है । जमीदारोके लठैतो तथा साम्प्रदायिक उपद्रवकारियोसे किसानोकी रक्षाके लिए ग्राममे किसान-सेना अर्थात् स्वय सेवक दलके संघटनकी आवश्यकता है । सबसे बड़ी बात किसान कार्यकर्तामोको जो करनी है वह है किसानोको आपसमे मिल-जुलकर काम करना सिखाना । गाँवके मुकदमोका निपटारा, गाँवकी शिक्षाका प्रवन्ध, किसानोकी आवश्यकताकी वस्तुओकी खरीद और विक्री इन सवको किसानोको अपनी पचायत और सहयोगसमितियोके द्वारा करना चाहिये । किसान कार्यकर्तामोका कर्तव्य है कि वे रूस, अमेरिका आदि भारतके बाहरी देशोमे होनेवाले कृपि-सम्बन्धी प्रयोगोका अध्ययन करे और मालूम करे कि उनसे भारतीय किसान क्या शिक्षा ग्रहण कर सकते है। किसान-सभाप्रोको एक ओर सरकारपर जोर डालकर उससे किसानोके हितके कानून बनवाना है, दूसरी ओर स्वय किसानोकी मनोवृत्ति बदलनी है। अमेरिकाके किसानके पास अच्छा घर, बगीचा, और मोटर है, किन्तु हमारे देशका अन्नदाता किसान अपना ही पेट भरनेमे असमर्थ रहता है । इसके लिए वह अपने भाग्यको दोप देकर प्रायः सन्तोष कर लेता है । पर किस्मतकी यह मार हमारे ही देशके किसानोपर ही क्यो है, अमेरिकाके किसानोपर क्यो नही ? हमे किसानोके मस्तिष्कसे भाग्यवादको निकाल फेंकना है, उन्हे अपने पैरोपर खडा होना सिखाना है, एक दूसरेके साथ सहयोग करना सिखाना है।