पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२१७

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२०४ राष्ट्रीयता और समाजवाद ग्राम और नगरका फर्क मिटे आज हमारे ग्रामोका जीवन इतना नीरस और कठोर है कि ग्रामोके जो नवयुवक थोड़ी-बहुत शिक्षा प्राप्त कर लेते है वे शहरमे ही रहना चाहते है, गांवको लोटना उन्हे खलता है । हमे ग्रामोमे भी नगरोमे प्राप्त होनेवाले विज्ञानकी विभूतियोका प्रचार करना है और अन्ततोगत्वा ग्राम और नगरके भेदको ही मिटा देना है । यह कार्य तभी पूरा होगा जव कि शोपणपर आधारित सामन्तवाद तथा पूंजीवादका अन्त कर दिया जाय, बहुतोकी मिहनतकी कमाईपर गुलछर्रे उडानेवाले कुछ न रहें, सभी लोग एक दूसरेके साथ सहयोग करते हुए परिश्रम करें और व्यक्ति की भलाई सवकी भलाई और समूहकी भलाई व्यक्तिकी भलाई समझी जाय इस शोपणमुक्त समाजकी स्थापनाके लिए किसान-सभाओंको मजदूर-सभाअोके साथ घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित करके अान्दोलन करना होगा। कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टी मैं अवतक इस बातका समर्थन करता रहा कि हमे काग्रेस नही छोड़ना चाहिये। आज मैं आपसे यह कहता हूँ कि हमे काग्रेस छोड़ देना चाहिये । कांग्रेस छोड़ना कोई खुशीकी बात नहीं है। मैं तीस सालसे कांग्रेसका कार्यकर्ता हूँ। मैं इन सव वर्षाका सम्बन्ध छोड़ रहा हूँ। मै अच्छे मित्रोको छोड़ रहा हूँ। राजनीति भी अजीव चीज है । राजनीतिमे मित्र दुश्मन बन जाते है । मैं तो सन् १९३४ से कहता रहा हूँ कि काग्रेस समाजवादका अस्त्र नही बन सकती। हमे काग्रेस छोड़नेकी जल्दी नही थी। काग्रेस हमे उसे छोड़ देनेके लिए बाध्य कर रही है। एक बार काग्रेसके अध्यक्षने हमसे कहा था कि हम अपनी पार्टीके नामसे 'काग्रेस शब्द निकाल दे। दूसरे काग्रेसने हमसे यह भी कहा कि हम अपनी पार्टीका द्वार गैर- काग्रेसियोके लिए भी खोल दे। हमने कानपुरमे यह सब कुछ किया। अव उन्होने एक ऐसा विधान बनाया है कि अब हमारे पास कोई दूसरा चारा ही नहीं । गाधीजीने काग्रेसके लिए अधिक सुन्दर भविष्य सोचा ( Visualise ) था । वह कांग्रेसको जन-सेवकोका समूह ( bechives ) बनाना चाहते थे। वह उसे लोक- सेवक-सघ बनाना चाहते थे । गाधीजी अब नही है और उन्होने काग्रेसको एक राजनीतिक दल बना डाला है। काग्रेसके अन्दर जन-तान्त्रिक कार्यवाही ( functioning ) नामुमकिन हो गयी है। उस सस्थामे रहना असम्भव हो गया है। माउन्टवेटन प्लैन मजूर कर, काग्रेसने अपने बुनियादी वसूलोको छोड़ दिया है । देश वेशक आजाद हो गया है, लेकिन आजादी मृत्यु और तबाहीका पैगाम लेकर आयी। पुरानी बुराइयाँ उभर आयी । इतिहासने वह चीज कभी नही देखी जो वात हमने आजादीके फौरन बाद देखी। साम्प्रदायिक वैरने सामूहिक हत्याअोका भयंकर रूप धारण कर