पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२२५

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२१२ राष्ट्रीयता और समाजवाद यह वर्ग मुख्यत गरीव किसान और मजदूरवर्ग ही हो सकता है। शिक्षित वर्गका तो प्रत्येक दलके लिए महत्त्व है। विशेपज्ञोकी सहायताके बिना कोई शासन नही चल सकता । समाजवादी पार्टीको तो यह सहायता और भी अपेक्षित है, क्योकि वह निश्चित आर्थिक योजनाके महत्वको स्वीकार करना चाहते है। इसीलिए हम व्यवस्थापकोकी और विशेषज्ञोकी उपेक्षा नही कर सकते । इनमेसे जो हमारी नीतिको स्वीकार करते है उन्हें अपने दलमे सम्मानपूर्वक प्रविष्ट करना है। उनकी सहायतासे हमको अपनी नीति और कार्यक्रमको भी सुस्पष्ट बनाना है । हमारे कार्यक्रमका विविध रूप होगा। हम मुख्यत किसान और मजदूरोकी सेवामे रत रहेगे । सामाजिक शक्तिका उद्गमस्थान इन्ही वर्गोमे है । इन्ही वर्गोसे शक्ति लेकर हम समाजवादकी स्थापना कर सकते है । यही वर्ग समाजवादके मुख्य आधार है । साथ ही पार्लमेण्टरी प्रोग्रामकी भी उपेक्षा नही की जा सकती। ग्राजकी स्थितिमे उसका अपना विशेप महत्त्व है। इस प्रकार हम देशकी समस्याग्रोका भी अध्ययन कर सकेगे और उनके सम्बन्धमे अपना मत देशवासियोके सम्मुख रख सकेगे । इस कार्यसे रचनात्मक मनोवृत्तिके बननेमे भी सहायता मिलेगी। किन्तु हम यह नही भूल सकते कि हमको पार्लमेण्टरी प्रोग्राममे तभी सफलता मिलेगी जब हमारी जडे जनतामे फैल जाये। इस सम्बन्धमे यह कहना आवश्यक है कि हम रचनात्मक कार्यक्रमको ऊँचा स्थान देगे। लोकतन्त्रको स्थापनाके लिए सर्वत्र सहकारिताकी भावनाको उत्तेजित करना है। यही काम अकेले गवर्नमेण्ट नही कर सकती। इस ओर हम विशेष ध्यान देना चाहते है। कार्य महान् है और हमारे साधन कम है । यदि हमारे उद्देश्य और कार्यक्रम देशकी आवश्यकताको पूरा करनेवाले है और यदि विद्याचरण सम्पन्न लोकसेवक इस आन्दोलनका नेतृत्व करे तो इसका सामाजिक आधार विस्तृत होगा और कार्यमे सफलता मिलेगी। . कुछ गम्भीर प्रश्न . भारतीय विधानका प्रारम्भ ही इस घोपणाके साथ होता है कि 'भारत एक प्रजातान्त्रिक और असाम्प्रदायिक राज्य है ।" हम सभी जानते है कि प्रजातन्त्र और असाम्प्रदायिकताकी भावनाएँ वैज्ञानिक, वौद्धिक तथा नयी चेतनावाले युगकी उपज है । इसलिए यह बुद्धि- सगत है कि इन विचारोको भारतीय भूमिमे पनपने देनेके लिए विचारो और भावनाओका अनुकूल वातावरण तथा इनकी पुष्टि और जीवनके लिए पोपक पदार्थ प्रचुर मात्रामे हो । जादूकी छडी घुमाते ही प्रजातन्त्रका वातावरण उपस्थित नही हो जाता, उसके पीछे एक परम्परा होती है और व्यक्तिको अपने स्वभावमे उसे लाना पडता है । सत्य तो यह है कि भारतीय जनता प्रजातान्त्रिक विचारोकी नही है । इसलिए आज इस बातकी बड़ी आवश्यकता है कि हम अपनी पुरानी आदतको बदलकर अपने चरित्रका नये रूपमे