पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२२६

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कुछ गम्भीर प्रश्न २१३ निर्माण करे । मानना पड़ेगा कि यह कोई सरल कार्य नही और इस दिशामे प्रगति वड़ी धीमी रहेगी। सतत सचेप्ट रहकर, अनवरत चेष्टा करते रहनेपर ही हम प्रजातान्त्रिक जीवन-पद्धतिपर चलनेकी आशा कर सकते है। इसके अतिरिक्त, चूंकि हमारे देशमे आवश्यकतासे अधिक धार्मिक भावना है, इलिए उसको असाम्प्रदायिकताकी ओर मोडनेका प्रयत्न करना भी बहुत आवश्यक है । राष्ट्रीयताको तिलाञ्जलि आज देशकी जो दशा है, उसमे इस दोहरे कामका पूरा होना कठिन हो गया है । धार्मिक आधारपर देशका बँटवारा हो जानेसे, दोनो अोर साम्प्रदायिक घृणाका बोलवाला है और फलस्वरूप देशका वौद्धिक और भावनाशील वातावरण पूर्णतया परिवर्तित हो गया है । साम्प्रदायिक उपद्रवोने हत्या, ल्ट, आगजनी, वलात्कार और अपहरणका स्थान ले लिया है। साम्प्रदायिकता आज सवके सिरोपर चढकर बोल रही है, राष्ट्रकी विचारधारा- पर आज साम्प्रदायिकताकी अपनी विचारसरणियाँ हावी हो रही है। अन्य विचार- धाराअोके लिए अभी कोई स्थान नही । हमारा सारा सामाजिक जीवन आज भ्रष्ट हो गया है और हमारा राजनीतिक तथा बौद्धिक जीवन निम्न स्तरपर उतर आया है । इसका परिणाम यह हुआ है कि हमारा राजनीतिक चिन्तन अस्त-व्यस्त और हमारी उदार भावनाएँ सकुचित हो गयी है । हमारे नैतिक मूल्य बहुत नीचे गिर गये है और अब हम हर समस्याको एक सम्प्रदायके सकुचित दृष्टिकोणसे देखने लगे है । साम्प्रदायिकताका मतलव है फिरकापरस्तीकी ओर लौट जाना और उस मानेमे हमने अपनी राष्ट्रीयताको तिलाञ्जलि 'दे दी है। एक बार हमने यह सोचा था कि जव देशमे फिरसे शान्ति और व्यवस्था स्थापित हो जायगी, तब राष्ट्र अपने खोये हुए नैतिक संतुलनको पुन शीघ्रतासे प्राप्त कर लेगा और स्वतन्त्रता संग्रामोके दिनोमे हम जिन उच्च आदर्शोंके लिए लड़े थे, उनको पूरा करनेमे द्विगुणित उत्साहसे जुट पडेगे । लेकिन जब ऊपरी ढगसे सारी वाते व्यवस्थित हो गयी, तब भी एक न एक प्रश्न, जैसे पहले काश्मीरका, अव हैदरावादका–साम्प्रदायिक भावनाको उभारते रहते है और जन-जीवन अब भी अशान्त बना हुआ है । ऐसा लगता है कि जवतक ये प्रश्न हल नही किये जाते, राष्ट्रका नैतिक स्वास्थ्य गिरता ही जायगा । इसलिए आज यह वहुत आवश्यक हो गया है कि इन प्रश्नोका निपटारा शीघ्रताके साथ किया जाय 1 प्रतिक्रियावादियोंको प्रोत्साहन लेकिन यह कहते दुख होता है कि सार्वजनिक जीवनमे जिन लोगोको प्रमुख स्थान प्राप्त है वे परिस्थितिकी इस गम्भीरताको अनुभव नही करते । कहाँ तो वे वर्तमान परिस्थितिको वदलनेमे अपनी पूरी शक्ति लगाते और कहाँ वे ऐसे सार्वजनिक भापण तथा प्रचार करते है, जिनसे प्रतिगामी और प्रगति-विरोधी शक्तियोको अप्रत्यक्ष रूपमे उत्साह मिलता है । वे यह नही समझते कि ये प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ प्रभावशाली होकर