पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२२७

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२१४ राष्ट्रीयता और समाजवाद हमे उस नयी जीवन-पद्धतिको अपनानेसे रोकेगी, जिसका अपनाया जाना राष्ट्रको रक्षा पौर विश्वकी प्रगतिके लिए अत्यन्त आवश्यक है । ऐसी शक्तियां अपने राजनीतिक उद्देश्योकी प्राप्तिके लिए मनुष्यकी बुद्धिसे अपील करनेके बजाय परम्परागत विश्वासी और रीतिरिवाजोकी दुहाई देती है । जनताका ज्ञानवर्द्धन न करके वे उसमे मति भ्रम फैलानेकी चेष्टा करती है। राजनीतिक विवादगे वे हर तरहकी ऊलूल-जलूल बातें घसीट लाती है । ऐसा लगता है कि चुनावोका मूल उद्देश्य ही वे अाँखोसे ग्रोझल कर बैठती है । येनकेन प्रकारेण चुनाव जीत लेना ही उनका मुख्य उद्देश्य मालूम होता है । चुनावोके सिलसिलेमे मतदाताप्रोकी ज्ञान वृद्धि भी होनी चाहिये, इसकी अोर शायद उनका ध्यान नही जाता। धर्मके नामपर चुनावका समय ऐसा समय है जव राजनीतिक विवादको उच्च धरातलपर रखकर स्वस्थ राजनीतिक वातावरण उत्पन्न किया जा सकता है। इस सिलसिलेमे लोगोकी धार्मिक भावनायोको भी असाम्प्रदायिक बनानेकी चेप्टा की जाती है और राजनीतिक तथा सामाजिक समस्यायोकी ओर उसका ध्यान आकर्षित किया जाता है। लेकिन जव हमारे सार्वजनिक नेता धार्मिक मंचपर खडे होकर जनतासे वोट देनेके लिए अपील करते है, तव जादू और अन्धविश्वासका वातावरण उत्पन्न न हो तो क्या हो ? जब कोई नेता मतदाताअोसे कहता है कि अमुक व्यक्तियोको ही वोट दो, अन्यथ ईश्वर तुमपर कुपित हो जायगा, तब ऐसा लगता है मानो वह ईश्वरको औरोसे अधिक जाननेका दावा रखता है । यह स्पष्ट है कि इस प्रकारके दावेमे कोई तश्य नही है, लेकिन इससे तो इतना होता ही है कि जो लोग ईश्वरमे विश्वास करते है, उनके दिलमे झूठमूठ एक भय घर कर जाता है। संस्कृतिके नामपर भारतीय सस्कृतिको कई वाते प्रशंसा और रक्षाके योग्य है, लेकिन हमारी परम्परागत संस्कृतिके नामपर जितनी चीजें चलती है, उन सवकी प्रशंसा और रक्षा नही होनी चाहिये । घिसे-घिसाये विचारो, जीर्णशीर्ण सामाजिक सिद्धान्तो और मतवादोसे हमे हानि ही पहुँच सकती है । परम्परासे चले आनेवाले कुछ विचार तो अाजकी परिस्थितिमे विलकुल असगत हो गये है और उनका तिरस्कार आवश्यक है । सावधानीसे हमें अपनी प्राचीन सस्कृतिके उन अगोको चुनना है जो हमारी वर्तमान समस्याग्रोको सुलझानेमे समर्थ हो । लेकिन यदि कोई प्रमुख सार्वजनिक नेता प्राचीन भारतीय संस्कृतिके नामपर अपना चिन्न रखे विना, वोटरोसे अपील करता है तो वोटरोपर निस्सन्देह यही प्रभाव पड़ेगा कि नेता प्राचीन भारतीय संस्कृतिके उन सभी परम्परागत विश्वासो तथा रीति-रिवाजोकी प्रशसा कर रहा है, जो साधारण जनको बहुत प्रिय है और जिनको वे वहुत आदरकी दृष्टिसे देखते है । ये सारी बाते केवल इसलिए कही जाती है कि अपने राजनीतिक विरोधी- को नीचा दिखाया जा सके और जनताके सामने उसे भौतिकवादी तथा अपनी संस्कृतिको घृणा करनेवालेके रूपमे चित्रित किया जा सके। इस तरहकी अपील एक प्रतिगामी नारा