पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२४७

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२३२ राष्ट्रीयता और समाजवाद थी कि रूसी लोग जिन्होने फासिस्ट शक्तियोको पराजित करनेमें महत्त्वपूर्ण भाग लिया था, अपने घरको सँभालेगे और राज एव अपनी सामाजिक संस्थानोंको जनतान्त्रिक रूप देंगे । परन्तु ऐसी कोई भी बात नहीं हुई और इसलिए यह अनुमान करना अनुचित न होगा कि रूसी नेताको राजनीतिक लोकतन्त्रमे कोई प्रेम नही था और वे फासिज्मके विरुद्ध संघर्षमे ससारके जनतान्त्रिक राष्ट्रोको अपनी ओर घसीट लानेके लिए ही उनकी जनतान्त्रिक भावनाओंका उपयोग कर रहे थे। किन्तु जिन मानवीय मूल्योके रक्षार्थ संसारने अपना इतना खून बहाया उनको दृढताके साथ वचाना ही चाहिये और यदि अपनेको साम्यवादी या समाजवादी कहनेवाले इसमे असफल सिद्ध होते है तो वे जनहितके साथ गद्दारीके दोपभागी होगे। प्रान्तीयता एक दूसरा अभिशाप है जिसे हमारी जनताको भुगतना पडता है। भारतीय एकताको दृढ करनेके लिए अन्तर्घान्तीय वन्धुत्व और मेलका होना आवश्यक है । यह तभी सम्भव है जब हम एक दूसरेको समझने और एक दूसरेकी भापा और उनके साहित्यको जाननेका प्रयत्न करे । एकतान्त्रिक शासन-प्रणाली उसका उपचार नहीं है। भापाके आधारपर प्रान्तोके पुनर्निर्माणकी मांगको हम अब नहीं रोक सकते और समय रहते ही इस मॉगको स्वीकार कर लेनेमे ही कुशलता है । हमारा पुराना इतिहास और हमारी परम्परा दोनो ही इस माँगके अनुकूल रहे है और संघ-शासन विधान भारतीय स्थितिके लिए अति उपयुक्त है । निस्सन्देह हमारे इन अभीप्ट उद्देश्योकी पूर्तिके अन्य प्रकार भी है । उनमेसे एक प्रकार यह है कि समस्त प्रान्तीय भापायोके लिए एक ही लिपि अपनायी जाय । इससे इन भापायोके सीखनेके कार्यमे सुविधा होगी, क्योकि इनमेसे अधिकाशका पैतृक स्रोत एक ही है । जातीय और साम्प्रदायिक भेदोसे रहित एक सामान्य दीवानी- कानून और एक सामान्य आर्थिक सगठन, दूसरा अति अत्यावश्यक सुधार है जिससे अन्त- प्रन्तिीय बन्धनोको दृढ बनानेकी प्राणा की जा सकती है। पारस्परिक अविश्वास और विरोधके सभी कारणोको दूर करना चाहिये और एक प्रान्तके अन्तर्गत समस्त समुदायों- विशेपत. अल्पसंख्यको-को विश्वास दिलाना चाहिये कि उनके उचित स्वार्थोके लिए कोई खतरा नहीं रहेगा और समस्त वर्गोके हाथ सामाजिक न्याय होगा। जाति-व्यवस्था भारतका अभिशाप रही है । इसने हिन्दू-समाजको अभेद्य विभागोमे विभक्त कर दिया है। हालके चुनावोमे जाति प्रथाकी बुराइयाँ प्रत्यक्ष दिखायी पडी है। जातिगत आधारपर राजनीतिक गुट बनाये जा रहे है और कुछ विशेप स्थानोपर तो तथाकथित निम्न-जातियोने उच्च जातियोके विरुद्ध अपनेको सगठित कर लिया है । यह भारतीय स्थितिमे और जन्म और सम्पत्ति सम्बन्धी विशेपाधिकारोके विरुद्ध अकिञ्चनो और दलितोके संघर्पका द्योतक है । यह स्थिति हमारे लिए चाहे जितनी अप्रिय हो, पर मुझे भय है कि हमे इस अपरिहार्य अवस्थासे गुजरना ही पड़ेगा। अतीतमे साम्प्रदायिक निर्वाचन- प्रणालीको स्वीकृति और कुछ विशेष सम्प्रदायोके लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करना वर्तमान अवस्थाके लिए मुख्य रूपसे उत्तरदायी है। फिर भी मैं समझता हूँ कि हमारी राजनीतिमे यह केवल एक अस्थायी मंजिल है । किन्तु यह देखकर परेशानी होती है