पटना अधिवेशन २३३ कि कुछ स्थानोपर काग्रेसके लोग अपने प्रभुत्वको कायम रखनेके लिए जातीय संगठनोके साथ गठवन्धन कर रहे है । मैं सोचता हूँ कि यदि हम निम्न जातियोको उचित रीतिसे शिक्षित करें और अपने आचरणसे उन्हे दिखा दे कि हम उनके सामाजिक और आर्थिक स्तरको ऊँचा करनेकी सचमुच इच्छा रखते है और हम उनके उचित राजनीतिक अधिकारो- को स्वीकार करने तथा अपने एकाधिकारकी प्रवृत्तियोको त्यागनेको तैयार है तो जात- पॉतके सकीर्ण आधारपर छोटे-छोटे गुट बनानेकी निरर्थकता हम उन्हें समझा सकते है । सोशलिस्ट पार्टीके लिए शोपितोके अधिकारोकी रक्षक होनेके कारण उनका विश्वास प्राप्त करनेका सबसे अधिक अवसर है । उन्हे पार्टीके सिद्धान्तो और नीतियोमे दीक्षित किया जा सकता है और राजनीतिमे जातिवाद तथा सम्प्रदायवादसे दूर हटाया जा सकता है। केवल एक समाजवादी समाजमे जो समता और सामाजिक न्यायके ऊपर प्रतिष्ठित होता है, उनकी सामाजिक और आर्थिक दशामे सुधार किया जा सकता है । दूसरा आवश्यक प्रश्न जिसपर मै विचार करना चाहूँगा कृपक-समस्या है। जमीदारी- निर्मूलन वहुत दिन पहले ही हो जाना चाहिये था, किन्तु अभीतक उसका अन्त दिखायी नही दे रहा है। किन्तु तर्कके लिए मै मान लेता हूँ कि यह निकट भविष्यमे खतम होने जा रही है। मेरे अपने प्रान्तमे जमीदारी-निर्मूलन समितिकी रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी है और सूचित किया गया है कि एक विलका मसौदा तैयार हो रहा है। इसके सुझाव प्रगतिशील नही है और वे धारा-सभाके, जिसने इस कमेटीको नियुक्त किया था, प्रस्तावका पूर्ण रूप से पालन नही करते । व्यवस्थापिका सभाका आदेश सरकार और खेतिहरके वीचके मध्यस्थ वर्गको समाप्त करनेका था। किन्तु इसे समितिके सुझावोका आधार नही बनाया गया है । समितिका सुझाव भिकमीदारोके एक बहुत बडे वर्गको अधिकार- विहीन कर देता है और उसकी सिफारिशोमे भूमिके पुनर्वितरणकी कोई भी गुञ्जाइश नही है। दूसरी वात जिसपर मैं जोर देना चाहता हूँ मुनाविजेकी अदायगीके सम्बन्धकी है। सत्त्वत सोशलिस्ट पार्टी इस सिद्धान्तको नही मानती। हम इस मतके है कि सामान्यतः स्वामित्वके आधारपर कोई भी मुनाविजा नही देना चाहिये, किन्तु पुनर्वासनके आधार पर गरीव भूस्वामियोको हरजाना दिया जा सकता है । इसका अर्थ यह हुआ कि धनिकोको किसी प्रकारका, हरजाना पानेका अधिकार नही है, पर गरीबोके लिए ऐसी सुविधाएँ प्रस्तुत की जायेगी, जिनसे वे नया-जीवन प्रारम्भ कर सके । किन्तु चूँकि सरकारने मुसाविजा चुकानेके सिद्धान्तको मान लिया है, अत हमने भी अपने प्रस्तावमे थोड़ा परिवर्तन करना स्वीकार कर लिया है। हमने मुआविजेकी एक क्रमिक योजना वनायी है और सबसे बड़ी रकम एक लाख तय की है। हमने यह भी सुझाव रखा है कि अधिकतम क्षेत्र जिसे रखनेकी अनुमति किसी खेतिहरको दी जा सकती है तीस एकडसे अधिक न होना चाहिये और यह नियम कानूनकी स्वीकृतिके साथ ही लागू होना चाहिये । यदि यह नियम मान लिया जाता है तो वडे खेतोको तोड देना पडेगा और किसानो और जमीदारो- के गरीव वर्गोके बीच वितरणके लिए भूमि प्राप्त हो सकेगी। इसके अतिरिक्त रिपोर्टमे उन लोगोके भाग्यका भी कोई विचार नही किया गया है जिनके खेत आवश्यकतासे भी
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