पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५१

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२३६ राष्ट्रीयता और समाजवाद छीन लिया जा रहा है । सरकार उत्पादनमें वृद्धि करनेके लिए मजदूरोंसे अपील करती है, किन्तु प्रतिनिधि तथा प्रभावशाली संघटनोंकी उपेक्षा करके और मजदूरोके सिरपर अनुचित ढंगसे एक ऐसे संघटन को लाद करके जो वस्तुतः अत्पसंख्यक मजदूरोका ही प्रतिनिधित्व करता है, वह उत्पादन-वृद्धि कार्यमे सहयोग देनेसे मजदूरोको हतोत्साहित करती है । ऐसा नात होता है कि सरकारका एकमात्र उद्देश्य मजदूर आन्दोलनको छिन्न- भिन्न कर देना और काग्रेस नियंत्रित भारतीय राष्ट्रीय मजदूर संघको अप्रत्यक्ष सहायता पीर स्वीकृति प्रदान कर मजदूरोको उसके कब्जेमे आ जानेके लिए विवग करना तथा हड़ताल करनेके अधिकारने मजदूरोको वञ्चित करना है। यह ध्यान देनेकी बात है कि भारतीय राष्ट्रीय मजदूर संघ समझौता-वार्ता तथा पचायतपर ही विश्वास करता है और किसी भी स्थितिमे हड़ताल करना उसे स्वीकार नहीं है । यह स्पष्ट है कि सरकार जो अन्य दलोंपर राजनीतिक उद्देश्योकी पूर्तिके लिए मजदूरोको बरगलानेका दोपारोपण करती है, वस्तुत इसके लिए वह स्वयं दोपी है । गैर-काग्रेसी मजदूर संघटनोको वैधानिक काररवाइयोंके लिए साधारणत अनुमति नहीं दी जाती है और उनके कार्यकर्ता गिरफ्तार और निष्कासित कर दिये जाने है । इन वातके अनेक प्रमाण दिये जा सकते है कि भारतीय राष्ट्रीय मजदूर- संघमे सम्मिलित न होनेके कारण गैर-कांग्रेसी युनियनोके सदस्योको उनके उचित अधिकारी से वञ्चित किया गया है । डालमियाँनगरकी शान्तिपूर्ण हड़तालको भङ्ग करनेके लिए फौजका उपयोग किया गया और निकटस्थ ग्रामोके निवामियोंको हड़तालियोंसे महानुभूति रखनेके कारण आतंकित किया गया । हड़तालियोके नेता साथी बसावनसिंहको गिरफ्तार कर लिया गया । जमशेदपुरमे सोगलिस्ट पार्टीकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी (नेशनल इक्जि- क्यूटिव) के सदस्य मुणी अहमददीनको गिरफ्तार कर लिया गया और पार्टीके अनेक कार्यकर्ताओंको निष्कासित भी कर दिया गया है। उपयोगी वस्तुओके मूल्योमें वृद्धिके कारण वास्तविक मजदूरीमे कमी तथा मजदूरोके प्रति सरकारके तानाभरे व्यवहारके फलस्वरूप मजदूर उद्विग्न हो रहे है और इससे उनमे संघर्पकी भावना बढ़ रही है। हड़ताल करनेके अधिकारकी अमान्यता तथा सघटित रूपसे उचित मजदूरी मांगनेके अधिकारपर विभिन्न प्रतिबन्धोके परिणामस्वरूप शान्तिपूर्ण तरीकोपरसे स्वभावत मजदूरो- का विश्वास हट जायगा । अनेक मजदूर-संघोने अभी हालमे ही कम्युनिस्टोको तिरस्कृत किया है और कम्युनिस्ट-नियन्त्रित अखिल भारतीय ट्रेड युनियनने काग्रेससे सम्बन्ध विच्छेद कर लिया है । यदि इस प्रगतिको जारी रखना है तथा भारतीय मजदूर आन्दोलनको सुदृढ माँगोपर बढ़नेका अवसर देना है तो सरकारको पक्षतपातपूर्ण नीतिका परित्याग करना पड़ेगा और यह जानना होगा कि कौन शान्तिपूर्ण लोकतान्त्रिक तरीकोपर विश्वास करता है तथा कौन हिंसात्मक तरीकोपर विश्वास करता है तथा अपना मुख्य उद्देश्य समझता है । असन्तोष उत्पन्न करना विद्रोहको अग्नि भड़काना है, किन्तु खेदका विपय है कि सरकार मजदूरोके असन्तोपके आधारभूत कारणोका अन्त न करके पूंजीपति- वर्ग को प्रसन्न करनेकी नीति अपनाये हुए है । सरकारको पूंजीपतियोंसे यह आशा है कि प्रोत्साहन देनेसे वे उद्योग-व्यवसायोकी उन्नतिमे अधिकसे अधिक पूंजी लगायेगे और इसी