पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५६

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पटना अधिवेशन २४१ हम शासनारूढ़ नही है, किन्तु वे इस बातका पक्का आश्वासन चाहते है कि जब राजनीतिक शक्ति हमारे हाथोमे आ जायगी तो हम भ्रष्ट नही होगे और अपनी प्रतिज्ञाओके प्रति ईमानदार रहेगे । केवल मौखिक आश्वासनोसे उन्हे सन्तोष नही होगा । अकिंचन और शोषित वर्गोकी नि स्वार्थ सेवासे ही उनके सन्देह दूर हो सकते है । मजदूरोमे काम करनेका हमारी पार्टीमे अपना महत्त्व है, और यह देखकर सन्तोष होता है कि इस दिशामे काम आगे बढा है । मजदूरोमे हमारा एक व्यापक मंच तैयार हो गया है और अधिकाश व्यक्ति जो जनतन्त्र और समाजवादके समर्थक है, इसमे सम्मिलित हो गये है । सभी गैर-काग्रेसी और गैर-कम्युनिस्ट युनियन शीघ्र ही एक शक्तिशाली संघटनके रूपमे एकत्र हो जायेंगी जिसका नाम 'हिंद मजदूर सभा' रखा गया है । यह सघटन साढे छ लाखकी सदस्यतासे प्रारम्भ किया गया था और प्रभावशाली सघटनों द्वारा इसमे सम्मिलित होनेकी घोषणा की गयी है । विहार और युक्तप्रान्तमे वहुत-सी ऐसी युनियने है जो सोशलिस्ट पार्टीके प्रभावमे है और इस सघटनमे सम्मिलित होगी । आशा की जाती है कि "हिंद मजदूर सभा' की कुल सदस्यता शीघ्र ही १५ लाख हो जायगी जो कि भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड युनियन काग्रेसकी घोषित कुल सदस्यतासे कही अधिक है । उन सभी युनियनोसे भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड युनियन काग्रेस अलग हो चुकी है और अबतक हमारे नये सघटनमे सम्मिलित नही हुई है । मैं अपील करता हूँ कि वे हमारे साथ शामिल हो और हमे बल प्रदान करे ताकि इस देशमे सुदृढ ट्रेड युनियन आन्दोलनका निर्माण किया जा सके । मजदूरोमे काम करनेके हमारे ढगमे भी पर्याप्त सुधार करनेकी गुंजाइश है । हमे श्रमिक हितकारी कार्योमे भी लगना चाहिये और मजदूर-वर्गको उत्तरदायित्वकी भावना वढानेकी शिक्षा देनी चाहिये तथा उसे उसके उज्ज्वल भविष्यका भी ज्ञान कराना चाहिये। मैं आशा करता हूँ कि मैंने सभी मुख्य-मुख्य वातोपर प्रकाश डाल दिया है । मुझे इस बातका पूरा विश्वास है कि हमारी पार्टीका भविष्य महान् है । इसमे पर्याप्त शक्ति विद्यमान है और यदि हम यह जानते है कि अपने सामने आये हुए अवसरका उपयोग कैसे किया जाय तो हम जनताके हृदयमे अपने लिए स्थान बना लेगे और दिनपर दिन शक्तिशाली ही होते जायंगे । आज एक ऐसे दलकी आवश्यकता है जो जनतन्त्रवादी राज्यको सुदृढ बनानेके लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो, हिंसात्मक तरीकोके प्रयोगका विरोधी हो और जनतन्त्रवादी ढगसे उत्पादनके साधनोका समाजीकरण करना चाहता हो । हम क्रान्तिकारी युगमे रह रहे है, जब कि विशाल जन-समुदाय अधिकाधिक समाजवादी सिद्धान्तोंके प्रभावमे आ रहा है । सब जगह जनता शान्ति चाहती है, किन्तु यदि रोटीकी समस्या और किसी प्रकारसे हल न हुई तो लोग सघर्षका स्वागत करेगे । पूंजीवादी शक्तियोकी अदूरदर्शितापूर्ण नीतिने उन्हें अन्धा बना दिया है और वे परिस्थितिको नहीं समझ सकती। उनकी सर्वग्राही एकाधिकारको प्रवृत्ति उन्हे इस सत्यका अनुभव नही होने देती कि उनकी नीतियो तथा कार्योसे कम्युनिस्टोका प्रभाव समाप्त होनेके स्थानपर बढ़ता ही जा रहा है। केवल तभी शान्ति कायम रह सकती है और युद्ध टाला जा सकता