पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५७

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२४२ राष्ट्रीयता और समाजवाद है जब कि हितकारी योजनानोको व्यापक रूपमे कार्यान्वित किया जाय, आयोजित आर्थिक प्रणालीके द्वारा मजदूरोके रहन-सहनका दर्जा ऊँचा उठाया जाय और उत्पादनके साधनोपर क्रमशः समाजका स्वामित्व स्थापित हो । आज कीमते ऊँची चढती जा रही है और मुद्रा- म्फीति घटानेके प्रयत्नोका कोई प्रभाव नहीं पड रहा है । आर्थिक दुरवस्था जनताको उत्तेजित कर रही है और अव्यवस्थाकी स्थितिमे पनपनेवाले लोग इसका पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए सन्नद्ध है । किन्तु फिर भी सरकार उस खतरेसे भलीभाँति अवगत नही है जो कि उसके सामने विकट रूप मे खडा है । जब उसके विरुद्ध यह आरोप लगाया जाता है कि वह पूंजीपतियोको प्रसन्न रखनेकी नीति अपना रही है और स्थिर स्वार्थियोद्वारा प्रभावित है तो उसके सूतधारोको बुरा लगता है । परन्तु भेरी समझमे नही आता कि कि उनकी इस नीतिकी और कौनसी दूसरी व्याख्या की जाय जो दिनपर दिन पूंजीपतियोके सूक्ष्म प्रभावमे जा रही है। हमें इस बातको समझना चाहिये कि हम इतिहासके साथ खिलवाड नही कर सकते । हमे अपनेको यह धोखा नही देना चाहिये कि भारतवर्प दक्षिण- पूर्वी एशियाके देशोसे भिन्न है । सकटकालमे एकाएक उथल-पुथल होती है और उसी प्रकार जनमतमे आत्यन्तिक परिवर्तन हो जाते है । ऐसी दु.खद स्थितिमे हमारा कार्य और भी कठिन हो गया, किन्तु इस कठिनकालमे मारे कार्यकर्तायोमे हतोत्साह और निराशा नही आनी चाहिये, प्रत्युत इससे हमे प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिये । यदि हम अपनी 'पार्टी' को विरोधी दलके रूपमे सघटित कर सवे तो हम इस मन स्थितिका उपचार कर सकेगे। किसी उत्कट कार्यक्रमकी आवश्यकता नहीं है। केवल ऐसे सक्रिय कदम उठाये जाने चाहिये जो बुद्धिजीवी-वर्गकी उदासीनताको दूर कर सके और उसमे नये उत्साह और नयी आशाका सचार कर सके । हमारी जनता अज्ञानं और निर्धनतामे डूबी हुई है, वह निष्क्रिय और निरुत्साह हो गयी है और उसकी सारी आशाएँ और अभिलापाएँ समाप्त हो चुकी है। किन्तु यदि हम उनके उत्साह तथा खोये हुए आत्म-विश्वासको पुनर्जाग्रत कर सके तो हम उन्हे पुनः सक्रिय रूपमे ला सकते है और यह तभी सम्भव है जव कि 'पार्टी' चरित्रवान कार्यकर्तायोको उत्पन्न कर सके जिनका 'पार्टी' के सिद्धान्तो और उसकी नीतिमें दृढ़ विश्वास हो । केवल इसी प्रकारका विश्वास ही नवजीवन प्रदान कर सकता है और भयंकर सकटकी घड़ियोमे, जब कि उनके विश्वासका परीक्षणकाल है, उन्हे दृढ और अविचल रख सकता है । 'पार्टी' के समक्ष यही प्रमुख कार्य है और हमे अपनी सम्पूर्ण शक्ति इसकी पूर्ति लगा देनी चाहिये । इतिहास हमारे पक्षमे है। आज मानव-समाजको एक नवीन सामंजस्य और समन्वयकी आवश्यकता है । चारो ओर प्राचीन और अर्वाचीनमें तीव्र सघर्प हो रहा है । यह नवयुगका उषाकाल है और हमलोग मुक्तिके द्वारपर खडे है । किन्तु सामाजिक स्वतन्त्रताके सूर्योदयसे पूर्व हमे अपनेको उस नव-सस्कृतिके योग्य सिद्ध करना है । वर्तमान युगमे लोकतन्त्रको प्रतिष्ठित करनेके लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी अर्थनीति- को जनहितकी दृष्टिसे सुनियोजित करें। यदि हम दृढ़ता और विश्वासके साथ अपने लक्ष्यकी ओर अग्रसर होते रहें तो सभ्यताकी अगली मजिलको अवश्य प्राप्त करेंगे।