पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२६२

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कृषिसुधार समितिके सामने वयान २४७ 'पतियोके फार्म धीरे-धीरे बनते जा रहे है । अत: अभीसे यदि इसकी रोक-थाम न हुई तो भविष्यमे देख पडेगा कि बडे-बडे फार्म बन गये है जिन्हे पूंजीपति अथवा व्यक्तिविशेष चला रहे है । कमेटीकी इन सिफारिशोमे जमीनके पुनर्वितरणकी कोई विधि नही है । मेरे विचारमें बहुसंख्यक गरीव किमानोकी दृष्टिसे सबसे पहला सुधार जो अत्यन्त आवश्यक है, यह है कि जमीनके पुनर्वितरणका अधिकार सरकारके हाथमे होना चाहिये और यह काम आजमे ही हाथमे लिया जाना चाहिये । दूसरी बात क्षतिपूत्तिके सम्बन्धमे है । हमलोगोका जहाँतक सम्बन्ध है, हमलोग सिद्धान्ततः क्षतिपूर्ति करना ठीक नहीं समझते, यद्यपि इस विषयमे मतभेद है । यूरोपके जो समाजवादी अपनेको मार्क्सवादी नही कहते, क्षतिपूर्तिकी रकम देना ठीक समझते है, पर उनका कहना यह है कि क्षतिपूर्तिका भार अन्य शोपक श्रेणियोपर रखा जाना चाहिये । उदाहरणार्थ, सरकार कोई उद्यम अपने हाथमे ले और उस उद्यमके जो लोग पहले मालिक थे उन्हे क्षतिपूर्ति देनी हो तो यह क्षतिपूर्ति अन्य उद्योग-धन्धेवालोको करनी होगी । यही उनका नियम है । उपस्थित प्रसंगमे हमलोगोकी यह राय तो नहीं थी कि जमीनके मालिक जानकर किसीको क्षतिपूतिकी रकम दी जाय, पर पुननिवासके आधारपर क्षतिपूर्ति कराना हमलोगोने स्वीकार किया था अर्थात् जिन लोगोकी जमीन ले ली जायगी उन्हे यह अधिकार है कि सरकार उन्हें फिरसे बसाये । इसी आधारपर हमने क्षतिपूरण माना है । और यही जव मानना है तव क्षतिपूर्ति पानेका अमीरोको तो कोई अधिकार नहीं रहता, पर गरीबोको अधिकसे अधिक रकम मिलनी चाहिये और उनके लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न की जानी चाहिये कि वे कोई नया उद्योग-धन्धा शुरू कर सके । यह दूसरा सिद्धान्त है । पर हमलोग देखते है कि हमारी सिफारिश सरकारको स्वीकार होनेवाली नही है, इसलिए हम क्षतिपूर्तिको एक मर्यादा निश्चित करना चाहते है । सरकार तो यह निश्चित कर हो चुकी है कि क्षतिपूर्ति की जाय और यह भी तय कर चुकी है कि जिन मालिकोको १०,००० रु० से अधिक मुनाफा मिलता रहा हो उन्हे उनके मुनाफेकी तिगुनी रकम दी जायः। हमलोगोने सबसे बड़ी मर्यादा यह रखी है कि एक लाख रुपयेसे अधिक क्षतिपूर्तिकी रकम किसीको भी न दी जाय । फिर, बहुत से गरीव जमीदार होगे जिनकी जमीने निकल जायँगी । सरकार उन्हे क्षतिपूक्तिके तौरपर जो कुछ देना चाहती है वह बहुत ही कम है । यह रकम भी उन्हें एक मुश्त नही मिलेगी बल्कि किश्त-दर-किश्त कई बरसोमे पूरी की जायगी। इससे उन्हें कोई नया उद्योग प्रारम्भ करनेकी सुविधा नही मिलेगी। अत. इसके हम विरोधी है । हमलोग यह चाहते है कि किसीके भी हाथमे ३० एकडसे अधिक जमीन न होनी चाहिये और यह बात अभीसे हो, आगेके लिए छोड न दी जाय । इस तरीकेसे सरकार बडे-बडे फार्मोको तोड़ सकेगी और जो जमीन इस तरह मिलेगी वह उन छोटे जमीदारोको बाँट दी जा सकेगी जो खेती करना चाहते है, दूसरोके परिश्रमका शोषण न कर स्वयं हल चलाना चाहते है । इन लोगोके फार्म बड़े किये जा सकते है और नयी शर्तोपर उनकी सख्या बढ़ायी जा सकती है । यह दूसरा सुधार है जो हमलोग सूचित करते हैं। हमारे प्रान्तमे सैकड़े ६० से भी अधिक खाते आर्थिक दृष्टि से लाभजनक नही है।