पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२६३

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२४८ राष्ट्रीयता और समाजवाद मैं जानता हूँ, जमीनकी उपज बढ़ानेके लिए कई उपाय करने पड़ेगे जैसे अच्छे वीज, खाद और अच्छी नस्लके बैल । पर इतनेसे ही काम न चलेगा । जमीनकी उपज बढानेमें बहुत समय लगेगा । किसानोकी आमदनी वढानेका कोई दूसरा उपाय भी करना होगा। किसानोके इन छोटे-छोटे खातोको लाभजनक बनानेके काममें बडी कठिनाई है। पर मुझे स्मरण है कि एक बार युक्तप्रदेशकी प्रान्तिक कांग्रेस कमेटीने एक प्रस्तावके द्वारा उस समयकी सरकारसे यह सिफारिश की थी कि जो खाते लाभजनक नही है वे जव तक लाभजनक नहीं हो जाते तबतक उनपर कोई लगान न लगायी जाय । मेरी सूचना यही है कि हर उपायसे इन खातोको लाभजनक बनाया जाय । किसी हद तक यह काम बन सकता है, क्योकि हमारे प्रान्तमें बहुत-सी जमीन ऐसी पड़ी हुई है जो अभीतक जोती नही गयी है । खेती करने लायक जमीनमेसे १०० मे बीस हिस्सा जमीन जोती जा सकती है । सरकारका यह कर्तव्य है कि यह जमीन जोतनेके काममे लाये और यहाँ किसानी करनेवाले मजदूरोको वसाये । इस तरह उन्हे मौका दे कि वे अच्छे किसान वने । पर मेरा यह विशेष आग्रह है कि जबतक खाते लाभजनक नही बन जाते तबतक उनकी कुछ मदद की जाय । एक मदद यह है कि यदि इन्हे पूरी लगानकी छूट न दी जा सकती हो तो कमसे कम वह लगान बहुत कुछ घटा दी जाय । जमीदारी-उन्मूलन कमेटीका यह ध्यान है कि जमीदारवर्गका उन्मूलन होनेपर काश्तकार वही लगान देता रहेगा जो वह आज दे रहा है। अतः उसकी स्थितिमे कोई परिवर्तन नही होगा और न उसे कोई सन्तोष हो सकेगा। यदि जमीदारवर्ग उठा देना है तो किसान यह समझता है कि उसका स्थान हमलोग ग्रहण करेगे और जो रकम जमीदार मालगुजारीके तौरपर देते थे वही हमलोग दिया करेंगे । लगानका जो बोझ किसानोपर आज है वह यदि घटनेवाला न हो तो इससे देहातोमे असन्तोप फैलेगा। जमीदारी उठ जानेपर भी किसानोको वही लगान देना पडेगा, यह बात उचित नही मालूम होती। हमारी सिफारिश यह है कि जमीदार आज जो मालगुजारी दे रहे है उससे अधिक किसानोको कुछ न देना पडे । इस सम्बन्धमे यह प्रश्न उठता है कि तव मुनाविजेका बोझ कौन उठाये । सरकारने अब इसे लगान न कहकर मालगुजारी कहनेका तरीका इख्तियार किया है। इससे किसानोकी स्थितिमे कोई अन्तर नही पडता । सरकार यह कह सकती है कि जमीदारोको जो मुआवजा देना हैं उसका भार काश्तकार उठा. ले । हमलोग इसके विरोधी है, क्योकि इसे हम एक दूसरे प्रकार का शोपण ही समझते है । यदि यह भार उसके सिरोपर आगामी ४० वर्पतक बना रहा तो जमीदारके बदले सरकारके द्वारा उनका यह शोषण ही हुआ । हमारी सूचना यह है कि या तो यह बोझ स्वय सरकार उठा ले या अन्य शोषक वर्गाके कन्धोपर रखा जाय अर्थात् उद्योग-धन्धोके मालिकोपर करोका बोझ खूब बढाकर यह रकम वसूल की जाय । मैं तो यह भी पसन्द करूँगा कि ये काश्त या ये खाते किसानोको बेच दिये जायँ, क्योकि हमलोग यह नहीं चाहते कि किसानोमे जमीदार हो जाने की भावना भर जाय जवतक कि वे जमींदार माने जानेकी पुकार स्वयं न मचाये । उनपर लगानका वोझ यदि हलका हो जायगा तो उन्हें पर्याप्त सन्तोष होगा, साथ ही यदि