मार्क्सवाद और पूंजीवादी विज्ञान २९६ और ग्रन्थोके प्रकाशनकी आशा नही है । धनकी विशेष कमी है । जनताको अभिरुचि विकृत हो गयी है । व्यापारकी मनोवृत्ति यहाँ भी काम करती है । फ्रासमें अनेक लेखक इतिहासको उपन्यासके रूपमे लिखते है। इन ग्रन्थोमे प्रायः सत्यका ख्याल नही रखा जाता । समाजविज्ञानकी आज जो दुर्दशा हो रही है उसका ठीक अन्दाज तभी लग सकता है जब हम पिछली एक शताब्दीके इतिहासका सिंहावलोकन करे । यह दुरवस्था आज नही शुरू हुई है । फ्रासकी राज्यक्रान्तिका युग पूंजीवादी समाज-शास्त्रके सबसे अधिक विकासका काल था । उस समय उसका अनुसन्धान सामाजिक विकासके नियम और क्रमके वहुत नजदीक पहुँच गया था । मार्क्सने अपने पुरोगामी पूंजीवादी वैज्ञानिकोसे बहुत कुछ सीखा था। अपनी पूर्ण पद्धतिका निर्माण करनेमे मार्क्सने पूंजीवादी विद्वानोकी प्रणालियोके स्वास्थ्यकर, जीवनप्रद और क्रान्तिकारी तत्त्वोको सर्वहारा मजदूरकी विचार-पद्धतिमे परिवर्तित कर पूँजीवादी पद्धतिका विरोध करनेके लिए एक तीक्ष्ण शस्त्रका निर्माण किया था। मार्क्सवादके कतिपय मौलिक सत्योकी घोषणा मार्क्सने पहले पहल नहीं की थी, किन्तु पूंजीवादी वैज्ञानिकोने सर्वप्रथम उनकी सत्यता स्वीकार की थी। सार्वभौमिक दृष्टिका भौतिक आधार वर्ग और वर्गसंघर्ष द्वन्द्ववाद आदि सिद्धान्तोका निरूपण पहले ही हो चुका था। क्रान्तिके जमानेमे ही इन विचारकोने समाज तथा सामाजिक विकासके सम्वन्धमे अपने विचारोंको स्पष्ट और विशद कर पाया था। इसके विपरीत १७वी शताब्दीकी विचारधारा प्राकृतिक विज्ञानके रंगमे रंगी हुई थी । नये युगके आर्थिक विकासका तकाजा था कि प्राकृतिक विज्ञानका विकास हो, क्योकि पूंजीवादी उत्पादन प्राकृतिक शक्तियोका उपयोग किये विना सम्भव न था। प्राचीन युगकी विचारधाराकी विशेषता उसका दार्शनिक दृष्टिकोण था । मध्ययुग पण्डितो और टीकाकारोका युग था जो प्राचीन ग्रन्थोका भाप्य करनेमे अपनेको कृतकृत्य मानते थे। इन सवसे भिन्न नवीन युगके पूंजीवादियोका दृष्टिकोण व्यावहारिक था । वेकन ( Bacon ) प्राचीन और मध्ययुग दोनोकी विचार-पद्धतिसे समानरूपसे प्रहार करता है । वेकन ( Bacon ) का कहना है कि हमारे समाजका उद्देश्य प्रकृतिको आन्तरिक शक्तियो और प्रेरक कारणोको समझना . तथा प्रकृतिपर मनुष्यकी शक्तिका अत्यन्त विस्तार करना है । उस समय प्राकृतिक विज्ञानकी अोर सामान्यत. आकर्षण था। उस समय समाजशास्त्रका स्वतन्त्र अस्तित्व न था। उस समय समाज और मनुष्य-सम्वन्धी विचार पूर्णतया इस एकागी वैज्ञानिक विचारके प्रभावमे थे । कानून-विज्ञानकी बुनियाद एक ऐसा प्राकृतिक नियम समझा जाता था जो मानव-स्वभावसे उद्गत हुआ था और जो देश तथा कालके अवस्थाप्रोसे सर्वथा स्वतन्त्र तथा सब मनुष्यो ओर राष्ट्रोके लिए सामान्य था । अठारहवी शताब्दीका भौतिकवाद ससारको एक प्रक्रियाके रूपमे नही देखता था । उसको यह मान्य नही था कि संसार एक ऐसा पदार्थ है जिसमे निरन्तर विकास होता रहता है । उस युगमे प्रकृतिका उपयोग करनेके लिए यह काफी था कि प्रकृतिकी वर्तमान अवस्थाका अनुसन्धान किया जाय । इस कामके लिए उसको अतीत जाननेकी कोई जरूरत न
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