पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३३९

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३२४ राष्ट्रीयता और समाजवाद प्रवन्ध हो सका है, वह नहीके बराबर है। अधिकतर इन बच्चोकी पढ़ाई अधूरी होगी और वह अपना समय बहुत कुछ वरवाद ही करेगे। समझा जाता है कि अवस्था और भी बिगड़ती चली जायेगी। 'न्यूयार्क टाइम्स' अखवारके शिक्षा-सम्पादक बेजामिन फाइन ( Benjamin Fine ) ने ६ महीने खर्च करके इसकी जाँच की हे और एक लेखमाला प्रकाशित की है जिससे इस प्रश्नपर काफी रोगनी पडती है। उनका निष्कर्ष यह है कि यद्यपि हमारे पब्लिक स्कूलोपर एक भी हवाई आक्रमण नहीं हुआ है तथापि “वह उसी प्रकार नष्ट-भ्रष्ट हो रहे है जैसे भारी बाम्बरोसे वह हो सकते थे।" बेजामिन फाइन लिखते है कि सामान और इमारतकी स्कूलोमे नितान्त कमी है । पुनः सन् १९४० से ७०,००० प्रतिवर्पके हिसाबसे अध्यापक अपना पेशा छोड़ रहे है। मिसूरी राज्यमें केवल २ प्रतिशत अध्यापक वच गये है और यदि सारे देशका हिसाब लगाया जाय तो सन् १९४१ का आधा स्टाफ रह गया है । इनका स्थान जिन लोगोने लिया है वह बिलकुल निकम्मे है । हर जगह यही शिकायत सुननेमे आयी कि अध्यापकोकी नितान्त कमी है। कई जगहोमे कई मुख्य विषयोकी पढाई बन्द करनी पड़ी है। कही-कहीं तो अध्यापक केवल हाजिरी लेते है, इससे ज्यादा कुछ करनेकी उनकी योग्यता ही नहीं है । एक ओर तो अध्यापकोकी मांग बढ रही है और दूसरी ओर अध्यापकोकी सख्या घटती जाती है। कालेजके विद्याथियोमेसे केवल ७ प्रतिशत अध्यापक होना चाहते है, जहाँ एक समय २२ प्रतिशत कालेजके विद्यार्थी अभयपककी शिक्षा लिया करते वेजामिन फाइनका कहना है कि इस संकटका कारण अध्यापकोका कम वेतन है । अमेरिकामे अध्यापकका औसत साप्ताहिक वेतन ३७.०२ डालर है, वाशिंगटन नगरमें कूडा जमा करनेवाला जो मजदूरी पाता है उससे यह ३.३७ डालर अधिक है । टैक्सी ड्राइवरोका पुरस्कार अध्यापकके पुरस्कारसे अधिक है। डिट्राओ ( Detroit ) में कुत्ते पकड़नेवालोका वेतन २४८४ डालर वार्पिक है जब कि उसके अध्यापक २०६४ डालर ही वर्पमे पाते है। मिस्टर फाइनका कहना है कि अनपढ जनताकी सहायतासे लोकतन्त्रका काम नही चल सकता । जनता इस समस्याकी गम्भीरताका धीरे-धीरे अनुभव करने लगी है और कई स्टेट अध्यापकोके पुरस्कारमे वृद्धि करनेका प्रस्ताव कर रहे है । ऐसी अवस्थामे अध्यापकोका अपनी युनियन बनाना स्वाभाविक है। कही-कही अध्यापक हड़तालकी धमकी दे रहे है । मिस्टर फाइन कहते है कि जबतक उनके पुरस्कारमे वृद्धि नहीं होती तवतक वह लड़कोका पढाना छोडते ही जायेंगे और कोई दूसरा काम तलाश कर लेंगे । अमेरिकामे तो दूसरे काम भी मिल जाते है । वहाँ भी अभीतक इस समस्याको ठीक-ठीक हल करनेका प्रयत्न नहीं किया गया है । जब धनी अमेरिकाका यह हाल है तो 'निर्धन भारतका क्या कहना । हमारे यहाँ भी अध्यापकोके वेतनमे कुछ वृद्धि हुई है, किन्तु वह पर्याप्त नही है। गवर्नमेण्टकी कठिनाइयोसे हम परिचित है । प्रश्न ऐसा सुगम नही है, किन्तु हमको उसे भुला नही देना चाहिये । सहानुभूतिके साथ हमको इस प्रश्नपर 1