पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३५

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२२ राष्ट्रीयता और समाजवाद वक्तव्य देना पड़ा । इस वक्तव्यमें उन्होने यह घोपित किया कि भारतको ब्रिटिश साम्राज्य- के अन्तर्गत क्रमश. दायित्वपूर्ण शासन प्रदान करना ब्रिटिश नीतिका उद्देश्य है। इस यात्रामे कितने विश्रामस्थान होगे, इसका निर्णय करनेका अधिकार त्रिटिश गवर्नमेंटके अधीन रहेगा । अंग्रेजोकी पोरसे यह कहा जाता था कि वे सत्य, न्याय और नगारकी स्वतन्त्रताके लिए लड रहे हैं । ब्रिटिश सरकार इस युद्धमें अमेरिकाको अपने पक्षमें करना चाहती थी। सयुक्तराष्ट्र अमेरिकाके प्रेसीडेंट उटरो विलसन उदार विचारक एका व्यक्ति थे। वह छोटे राष्ट्रोंकी रवतन्त्रताको रक्षा करना चाहते थे और उनका यह विचार था कि ऐसे उपायोको काममें ताना चाहिये जिसमें युद्ध गदाके लिए बन्द हो जावें और राष्ट्र अपने झगोंका निपटारा तलवारमे न कर किसी ऐमी पनागत द्वारा करावें जिमका निर्णय सबको मान्य हो । यदि अंग्रेज केवल उनकी मौखिक घोषणा करते रहते कि वह छोटे राष्ट्रोकी स्वतन्त्रताके लिए लड़ रहे है और अपने ही गाग्राज्यके अधीन देगोक नाय न्यायका व्यवहार न करते तो उनको कोन सन्चा मानता । उन्हे मसारको विश्वास दिलाना था कि वह इस नीतिको जहांतक उनका सम्बन्ध है कार्यान्वित करनेके लिए तैयार है । सन् १९१८मे मांटेगू साहब भारतवर्ष आये और सबसे परामर्श कर उन्होने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट के अाधारपर सन् १९१६में पार्लमेटने एक कानून बनाया । इसके द्वारा भारतीय व्यवस्थापक समाके सदस्योको संख्यामे वृद्धि की गयी । सब व्यवस्थापक सभागोमे गैर-सरकारी चुने हुए सदस्योका बहुमत हो गया। पार्लमेण्टका भारतीय गाननपर जो नियंत्रण था वह कुछ ढीला कर दिया गया । भारतीयोको कुछ और ऊँचे पद प्रदान किये गये । एक खास बात यह हुई कि प्रान्तीय शासन दो भागोमे विनस्त कर दिया गया। कुछ विषय सरकारके अधीन रखे गये । इन्हें सुरक्षित विषय कहते है । कुछ विषयोका कार्य-भार भारतीय मन्त्रियोके सुपुर्द किया गया। इन विपयोको हस्तान्तरित-विषय कहते है । गैर-सरकारी निर्वाचित सदस्योमेसे ही मन्त्रियोका तिया जाना निश्चित हुा । ऐसे शासनको द्विचक्र शासन ( डायरकी ) को संज्ञा दी गयी है। केन्द्रीय शासनमे ऐसा कोई विभाग नहीं किया गया । इस नवीन योजनाकी कल्पनाके मूलमें यह विचार काम करता है कि जहाँतक प्रान्तके शासनका सम्बन्ध हे भारतवासियोको छोटा हिस्सेदार बनाना चाहिये । सुधारकी इस योजनाके साथ-साथ हमको सरकारको इस समयकी प्रौद्योगिक नीतिपर भी विचार करना चाहिये । पालोचना करनेपर हमको यह मालूम होगा कि राजनीति तथा उद्योगके क्षेत्रमे समान रूपमे एक ही विचार काम कर रहा था। जिस प्रकार बड़े-बडे मारवाडी व्यापारियोके मुनीम अपने मालिकके कारोबारमे कभी-कभी छोटे-मोटे हिस्सेदार भी हो जाते है वैसे ही यूरोपीय युद्धके प्रारम्भ होनेके वाद सरकारने यह निश्चय किया कि हिन्दुस्तानियोको सरकारी कारोबारमे छोटा-मोटा हिस्सेदार बना देना चाहिये । सन् १९१६मे होमरूलका जो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ उसके पहले ही विना किसी दवावके लार्ड हाडिजने सन् १९१५मे अपने एक खरीतेमे भारत-मंत्रीको यह लिखा था कि यह वात अधिकाधिक स्पष्ट होती जाती है कि युद्धके