पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३४१

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३२६ राष्ट्रीयता और समाजवाद . और समृद्ध बना सकनेकी एक विशेप पाशा संचारित हुई । यही कारण है कि विज्ञान और प्रगति एक चीज समझे जाने लगे। विज्ञानके भरोसे स्वर्गतकको दखल कर लेनेकी वात लोग सोचने लगे। इससे एक नया आश्वासन मिला, एक नया विश्वास जाग उठा। फलतः धीरे-धीरे धार्मिक विश्वास क्षीण होने लगे और मठ-मन्दिरो या गिरजाघरोका पहलेका-सा प्रभाव मनुष्योके हृदयोपर नहीं रह गया । विज्ञानके प्रभावके अतिरिक्त और भी कई महत्त्वपूर्ण वाते ऐसी जुट गयी जिनसे ऐसी स्थिति बन गयी । नये सामाजिक वाद निकल पड़े और नये आर्थिक और राजनीतिक सिद्धान्तोने मनुप्योके मनोको अपने वशमे कर लिया । साधारण मनुप्यने अपनी दीर्घकालीन निद्रा पीर उदासीनता त्याग दी और नया जीवन पाकर वह सर्वत्र चलने-फिरने लगा। धीरे-धीरे कर्मक्षेत्रके केन्द्रपर उसने अपना प्रभाव डाला । इन सवसे एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गयी जिसमे उसकी कोई उपेक्षा नहीं कर सकता था। वह अब पारलौकिक जीवनको अपेक्षा इसी अपने ऐहिक जीवनकी वात अधिक सोचने लगा। स्वाभिमान और मानव-गौरवकी एक नवीन बुद्धि उसमे जागी और वह अपने अन्दर एक ऐसी शक्ति अनुभव करने लगा जिससे इस दुनियामे वह अपना जीवन अधिक सुखी बना सकता है । पर अनुभवसे उसने यह सीखा कि धार्मिक सस्थाएँ शोपितो और दलितोंका पक्ष करनेके बजाय यथावत् स्थितिका ही समर्थन किया करती है और जनताको आर्थिक तथा सामाजिक दु.स्थितिके आमूल परिवर्तनका सदा विरोध ही करती है । उसने यह भी देखा है कि धर्माचार्योके ये पीठ सरकारके महज पुछल्ले बन गये है और राष्ट्रोके पारस्परिक युद्धोमे ये अपनी-अपनी सरकारका ही पक्ष लेकर अपने अनुयायियोको दूसरे राष्ट्रवालोकी हत्या करनेका उपदेश किया करते है। इसके अतिरिक्त, लिखे-पढे लोग भी धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ आदि धर्मके वाह्य अंगोको अनावश्यक समझने लग गये । ये लोग अज्ञेयवादी बने और इलहाम अथवा ईसाकी ऐतिहासिकता जैसे प्रश्नोको चर्चा भी श्रद्धा विरहित तर्ककी कसौटीपर करनेगे इन्हें कोई सकोच नहीं होता था । ऐसी प्रतिकूल परिस्थितिमे धार्मिक विश्वासोका नष्ट होना ही अनिवार्य था । जिस किसी भी देशमे पाश्चात्य संस्कृति और विचारपद्धति घुसी, वहाँ एक नया सणयवाद उठ खड़ा हुआ और पुराने विश्वास उखडने लगे। हिन्दुस्तानमे जव ब्रिटिशोका राज्य हुआ तब यहाँ सार्वजनिक शिक्षाकी एक ऐसी पद्धति चलायी गयी जिससे धार्मिक शिक्षा पहले-पहल अलग कर दी गयी। शिक्षा अग्रेजीकी दी जाय या प्राचीन संस्कृतिकी इसके वाद-विवादमें अग्रेजोकी जीत हुई और ईस्ट इण्डिया कम्पनीने अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य विज्ञानसे हिन्दुस्तानके लोगोको लाभान्वित करनेका सकल्प किया । सार्वजनिक शिक्षालयोमे धार्मिक शिक्षा देनेकी कोई व्यवस्था नही की जा सकती थी, क्योकि विभिन्न धर्मसम्प्रदायोके लडके इन विद्यालयोमे पढने पाते थे। अत इन दुस्तर कठिनाइयोके कारण विदेशी सरकारने सार्वजनिक विद्यालयोमे केवल धर्म- निरपेक्ष शिक्षाकी ही व्यवस्था की। इस नीतिके कारण मुसलमान समाज वहुत कालतक इस नवीन शिक्षा-पद्धतिसे कोई लाभ नही उठा सका, कारण वह अपने धार्मिक विश्वासों और सिद्धान्तोका विशेप कायल था और इस सिद्धान्तको माननेवाला था कि धार्मिक