पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३४२

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क्या धार्मिक शिक्षा.. दी जानी चाहिये ३२७ शिक्षा शिक्षाका अविच्छिन्न अंग है। नवीन शिक्षाने पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियोके वीव संघर्प उत्पन्न कर दिया और इसके फलस्वरूप नये सास्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक आन्दोलन चल पड़े। हिन्दुस्तानकी बुद्धि बहुत अस्थिर हो गयी और हमारे सामाजिक तथा धार्मिक विश्वासोका नया मूल्याङ्कन होने लगा। पुरातन धार्मिक पद्धतियोपरसे गिक्षित लोगोका विश्वास उठ चला और पश्चिमके नये राजनीतिक और सामाजिक तत्त्वज्ञान हमारे पादर और मानफे पान हुए । मुसलिम समाजने धीरे-धीरे अपने आपको इस नवीन शिक्षापद्धतिके अनुकूल बहुत कुछ बना लिया, पर वह बार-बार सरकारसे यह आग्रह करता रहा कि मुसलिम विद्यार्थियों- के लिए धार्मिक गिक्षाका कुछ प्रबन्ध अवश्य होना चाहिये । सरकारने इस हदतक यह वात मान ली कि उसने ऐसे साम्प्रदायिक विद्यालय पृथक् रूपसे स्थापित करनेको प्रोत्साहन देना स्वीकार किया जहाँ धार्मिक शिक्षा दी जा सके। पर सार्वजनिक विद्यालयोका धर्म- निरपेक्ष स्वरूप ज्योका त्यों बना रहा । लोकमतके आदरार्थ थोड़ी रियायत अवश्य ही की गयी और अब जो नियम प्रचलित है वह यह है कि सरकारी स्कूलो और कालेजोमें धर्मनिरपेक्ष गिक्षाके बंधे हुए समयको छोडकर अन्य समयमे निम्नलिखित शर्तोपर धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है- १- स्कूल या कालेजका कोई अध्यापक धार्मिक शिक्षाका काम नही कर सकता, पर धार्मिक गिक्षक जो कोई होगा, संस्थाके मुख्य चालकके अधीन रहेगा। २-जिन सम्प्रदायकी बात हो उसी सम्प्रदायको इसकी समुचित व्यवस्था करनी होगी और इन शिक्षाके लिए होनेवाला खर्च चलाना होगा। ३-~-अपने बच्चोको धार्मिक शिक्षा दिलाना या न दिलाना वच्चोके माता-पिताकी मर्जीपर होगा। सहायताप्राप्त गिक्षा-गंस्थाएँ चाहें तो अपने यहाँ इस शर्तपर धार्मिक शिक्षा दे सकती है कि विवेक-बुद्धिके सर्वमान्य अधिकारोका आदर बना रहे । स्कूलोमें धार्मिक शिक्षा प्रश्नपर समय-समयपर सरकारद्वारा नियुक्त कमेटियोने वार-चार विचार किया है, पर इस विषयमे कोई साग्रह और सार्वधिक मांग नहीं देख पड़ती। १९३८ मे युक्त प्रदेशको सरकारने प्रारम्भिक और उच्च शिक्षाके पुनस्सघटनका विचार करनेके लिए जो कमेटी नियुक्त की थी उसने इस प्रश्नका विचार किया था । उसकी मुख्यतः यही राय रही की इसकी कोई आवश्यकता नही है । पर मतैक्यके लिए उसने इसका निर्णय सरकारपर छोड दिया, क्योकि राज्यको नीतिके साथ यह प्रश्न सम्बद्ध है ।. जबसे राष्ट्रीय सरकार स्थापित हुई है तबसे इस प्रश्नका फिरसे विचार होने लगा है और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जैसे महान व्यक्ति जो न केवल हमारे शिक्षा मन्त्री है प्रत्युत उदार भाव और प्रगतिशील विचारके पूर्ण और गतिमान् विद्वान् है उनका भी समर्थन हालमे ही इसे प्राप्त हुआ है । नये जमानेकी बुराइयोको दूर करनेके लिए ग्रामतौरपर धार्मिक शिक्षाका ही उपाय