पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३४३

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३२८ राष्ट्रीयता और समाजवाद वतलाया जाता है । पाश्चात्य देशोमें लोगोका विश्वास विज्ञानपरसे और इसलिए इस उन्नतिपरसे भी उठ चला है, क्योकि विज्ञानका दुरुपयोग हो रहा है और कुपथमे उसकी प्रवृत्ति है । उन देशोमे आजकल धर्म और गुप्त विद्याकी अोर लोगोकी रुचि फिरसे हो रही है। लोग कोई ऐसी चीज चाहते है जिसपर वे अपना विश्वास टिका सकें, पर पुराने धर्म-सम्प्रदायोसे उन्हे सन्तोप नही होता । वे कोई नया धर्म, नया इलहाम ढूंढ़ रहे है, पर यह धर्म या इलहाम उन्हे मिले, इससे पहले वे निराशावादी तत्त्वज्ञानोसे घिर रहे है। कुछ जीवनकी कठिन वस्तुस्थितियोसे भागकर गुप्त विद्या और पुराने धार्मिक विश्वासोका आश्रय ढूंटते है, कुछ जीवनको दुखमय देख निराश होकर बैठ जाते है । किसीमें वह जीवन-विश्वास नही रह गया जिसकी जीवनके लिए सबसे अधिक आवश्यकता है। मनुष्य केवल तर्कसे नही जी सकता; उसे धारण करने और प्रेरणा पानेके लिए विश्वासकी आवश्यकता होती है । पर यह विश्वास धर्म-निरपेक्ष होना चाहिये और उससे भविप्यके लिए आध्यात्मिक पाश्वासन मिलना चाहिये । परन्तु हमारे देशकी हालत अभी इस दर्जेतक नहीं पहुंची है। हम अभी-अभी स्वाधीन हुए है और अभी हमने अपनी यात्राका प्रारम्भ किया है । हमे कई नवीन प्रश्न हल करने है और निर्माणका काम हमारे सामने है । हमे स्वाधीनता और प्रगतिपर विश्वास है। निराशा या संशयसे हम ग्रस्त नही है । पर एक भिन्न प्रकारके सांस्कृतिक संकटने हमे घेरा है। हमारी समाज-नीतिके पुराने रोग पहलेसे बहुत ही अधिक उग्ररूपमे उभड़ पड़े है और हमे नष्ट किया चाहते है । ये रोग है दलवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद और प्रान्तवाद । गैरसरकारी सेनामोको गैरकानूनी करार देने और सम्प्रदायमूलक राजनीतिक सघटनोपर रोक लगाने मानसे यह बुराई समूल नप्ट होनेवाली नही है । बीमारी अस्थि- मज्जाके अन्दर घुसी वैठी है । हमे अपने वच्चोको नवीन शिक्षा देनी होगी और समस्त जनताका मन ही बदलना होगा। तभी कोई महान् कार्य बन सकता है । अपने नवयुवको- को हमे ऐसा बनाना होगा कि धार्मिक द्वेष और शत्रुताका सम्प्रदाय उनपर अपना कोई असर न डाल सके । उन्हे लोकतन्त्र और अखण्ड मानवताके आदर्शोंकी दीक्षा देनी होगी, तभी हम साम्प्रदायिक सामञ्जस्य और सद्भाव चिरन्तन प्राधारपर स्थापित कर सकेंगे। साम्प्रदायिक मेल उत्पन्न करनेकी सदिच्छासे ही कदाचित् स्कूलोके पाठ्यक्रममे धार्मिक शिक्षाके समावेशकी वात कही जाती है । पर लोग क्षमा करे, मुझे यह कहना ही पड़ता है कि यह दवा बीमारीसे भी अधिक घातक सावित होगी। धार्मिक शिक्षाके समर्थनमे यह कहा जा सकता है कि सभी धर्म मूलतः एक है और सही दृष्टिसे देखा जाय तो ऐसा धर्म एकत्व-साधनकी ही एक शक्ति है । मैं मानता हूँ कि कुछ सर्वव्यापक तत्त्व ऐसे है जो सव धर्मोमे समान है । पर ऐसे भी कुछ तत्त्व है जो एक-एक सम्प्रदायके अपने-अपने विशेप है । जनता जिस धर्मको समझती और पालन करती है वह तो विशिष्ट विधियुक्त कर्म और पूजा-पाठ ही है और ये सव सम्प्रदायोके अलग-अलग है । सीधी और सच्ची बात यही है कि धर्म समाजकी एक घातक शक्ति है । राष्ट्रीय सरकारका काम यह है कि वह इन विभिन्नताओको पीछे कर दे और सबके