जन-शिक्षा ३३१ सभी गुण युवकोमे यथेष्टरूपसे मिलते है । बुद्धिमत्ता भी प्राप्त करनेका युवक यत्न करेगे जव वे विश्वास और उत्तरदायित्वके पदोपर वैठाये जायेगे । अत इस सम्मेलनमे उपस्थित प्रतिनिधियोसे मैं यह अनुरोध करूँगा कि वे राजनीतिक सघर्पकी प्रोर आवश्यकतासे अधिक ध्यान न दे। उन्हे यह स्मरण रहे कि राजनीतिक स्वाधीनता प्राप्त कर लेनेसे ही क्रान्ति पूर्ण नहीं होती। युवक-अान्दोलनके उद्देश्य इतने विशाल हो कि उनमे ऐसे सास्कृतिक और सामाजिक आन्दोलनका भी समावेश हो जाय कि जिससे सामाजिक न्याय और वौद्धिक उन्नतिका राज्य प्रतिष्ठित हो। इस नये ढग और ढाँचेमे युवक अपना काम तभी बखूबी कर सकते है और राष्ट्रके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में अपना रुतवा वढा सकते है जव कि वे अपनी नीति नये ढगपर सुधार ले और अपनी रचनात्मक क्षमताका प्रमाण दे । दक्षिण पूर्व एशियामे स्वाधीनताके उद्योगके फलस्वरूप जो नवीन राज्य निर्मित हो रहे है उनपर अपने जन्मकालसे ही बहुत बंडी कठिनाइयोका सामना करनेका दु सह भार या पड़ा है। इन कठिनाइयोको पार करनेके लिए राज्यके अधिकारोकी महत्ता व्यक्तिके अधिकारोको दबाकर बढायी जा रही है। संकटका सामना करनेके लिए राज्यको वलवान् तो बनाना ही होगा, पर जनताको और भी अधिक बलवान् वनाना होगा, यदि हम चाहते है कि लोकतन्त्र सुदृढ अधारपर प्रतिष्ठित हो। इन नवीन सकटोका सामना सफलताके साथ तभी किया जा सकता है जव हम जनताके अधिकारोको माने और उसमे स्वाभिमान और आत्मगौरवकी नयी चेतना जगाकर उसे प्रतिक्रियाकी शक्तियोके विरुद्ध सघटित करे । हिन्दुस्तानमे इस समयकी सबसे बड़ी आवश्यकता साम्प्रदायिकता और दलवादिताको जडमूलसे उखाड फेकना है । हिन्दुस्तानके युवकोको धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र राज्यके हकमें अपना सघर्ष जारी रखना है । जो युवक अपने इस नवप्राप्त स्वाधीनतापर उपस्थित संकटको देख रहे है उनका यह कर्तव्य है कि सुसवटित होकर प्रतिक्रयाकी अन्धशक्तियोको परास्त करनेका पूरा प्रयास करे । युवकोमेसे ही एक दल पथभ्रष्ट हो चुका है और युवक- सस्थानोका यह सर्वप्रधान कर्त्तव्य है कि अपने उन पथभ्रष्ट भाइयोको फिरसे अपने अन्दर ले आये । यदि यह सीमित कार्य पूरा हो गया तो मुझे विश्वास है कि लोकतन्त्रका भविष्य उज्ज्वल है। युवकोको एक बहुत वडे उत्तरदायित्वका निर्वाह करना है। मुझे अाशा और भरोसा है कि वे अवसरको समझकर ऊपर उठेगे और अपने कर्तव्य-पालनमे उत्तीर्ण होगे। मैं सम्मेलनकी हर तरहसे सफलता चाहता हूँ। जन-शिक्षा 1 लोकतन्त्र केवल एक शासन-पद्धति ही नहीं है, बल्कि वह एक जीवन-प्रणाली है। अतएव लोकतान्त्रिक आदर्शोको केवल राजनीतिक क्षेत्रतक ही सीमित नहीं रखा जा सकता,
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