पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३४८

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जन-शिक्षा ३३३ प्रवंचक अपने संकुचित राजनीतिक स्वार्थोकी सिद्धिके लिए प्रचारके ऐसे हथकण्डोका उपयोग करते है जिससे विभिन्न राष्ट्रोके बीच घृणा और द्वेष उत्पन्न हो । किसी भी राष्ट्रकी जन-शिक्षामे पत्रोका महत्त्वपूर्ण स्थान है । पत्रोके द्वारा ही साधारण जनताको सार्वजनिक घटनाओकी जानकारी प्राप्त होती है और जनमत तैयार होता है । स्वतन्त्र राष्ट्रोमे विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ अपने सिद्धान्तो और कार्यक्रमका प्रचार करनेके लिए अपना पत्र प्रकाशित करती है। इनका उद्देश्य मतदाताओको शिक्षित करना होता है, न कि मुनाफा कमाना । अक्सर उनसे काफी घाटा होता हे जिसे चन्दा या पार्टीके कोषसे पूरा किया जाता है। किन्तु जब जनता साक्षर हो जाती है तो समाजमे कुछ ऐसे समाचारपत्रोका भी आविर्भाव होता है जिनका उद्देश्य जनताको शिक्षित करना नहीं, बल्कि अपनी अर्थ- सिद्धि होता है । वे प्रेम, हत्या तथा अन्य अपराधोके उत्तेजनापूर्ण और सनसनीदार समाचार प्रकाशित करते है और इस प्रकार मनुष्यकी दुष्प्रवृत्तियोको जगाकर अपना घृणित स्वार्थ-साधन करते है। ऐसे पनोसे भयकर प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। इससे मानव- प्रकृतिका पतन होता है, न कि उत्थान और उद्दात्तीकरण । जन-शिक्षामे उन्हें कोई दिलचस्पी नही होती है और न उनका यह उद्देश्य ही होता है । ये मानव-प्रकृतिकी कमजोरियोसे अपने राजनीतिक उद्देश्योकी पूर्ति करना चाहते है । यद्यपि अभीतक . हमारे देशमे ऐसे पत्रोका उदय- नही हुआ है, किन्तु इसमे अधिक समय नहीं लगेगा। एक दूसरे प्रकारके पन्नोका भी हमारे देशमे आविर्भाव हो रहा है जो प्रौद्योगिक वर्गके स्वार्थोका प्रतिनिधित्व करते है। हमारे राष्ट्रके उद्योगपति अपना कोई राजनीतिक सगठन नही बनाते है । समाचारपत्रोको अपने हाथमे रखना ही उनके लिए अधिक लाभ- दायक होता है इस प्रकार वे प्रत्यक्ष या परोक्ष, अनेक रूपोमे सरकार और जनताको प्रभावित करते है । यहाँके उद्योगपतियोकी ओरसे इधर बहुतसे समाचारपन्न प्रकाशित हुए है और राजनीतिक पार्टियोके लिए अब अपने पत्रोका सचालन दिन-प्रति-दिन कठिन होता जा रहा है । विज्ञापनदाताओमे भी वर्ग-चेतना बढ़ती जा रही है और अब वे वामपक्षी पत्नोको विज्ञापन देना पसन्द नही करते । जनताको राजनीतिक विपयोकी शिक्षा तभी समुचित रूपसे प्राप्त हो सकती है, जंव कि उसे विभिन्न प्रकारकी विचार-धारायोको भलीभांति समझने और उनमे निर्णय करनेका अवसर मिले । राज्यका कर्तव्य है कि वह जनताको ऐसी मौलिक शिक्षा प्रदान करे जिससे उसके अन्दर विवेचनात्मक शक्तिका विकास हो और उसमे आत्मनिर्माणकी क्षमता आ सके । इसमे नागरिक शिक्षाका सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है जिसमे न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय कर्तव्योका पालन करनेकी भी शिक्षा दी जानी चाहिये । स्मरण रहे कि हमलोग अब विश्व-सघकी ओर अग्रसर हो रहे है और हमारी सभी शिक्षा- योजनामे वह दृष्टिकोण निहित रहना चाहिये । हमलोग विश्वके अन्य भागोमे होनेवाली घटनाअोके प्रति आँखे मूंदकर अकेले नहीं रह सकते । हमारी शिक्षा-पद्धति ऐसी होनी चाहिये कि हम आजके विश्वमे सुरक्षा और सुखके साथ जीवन व्यतीत कर सके । हमें अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, सद्भाव और भ्रातृत्वकी स्थापना करने तथा अपने दायित्वका निर्वाह