पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास २३ पश्चात् भारतके उद्योग-व्यवसायको उन्नत करनेके लिए किसी एक निश्चित नीतिका अनुसरण करना पड़ेगा । उस समय भारतवासी एक स्वरसे सरकारसे इस औद्योगिक उन्नतिके लिए पूरी सहायता चाहेगे । वाइसरायकी इस सिफारिशपर ब्रिटिश सरकारने सन् १९१६ मे 'इण्डियन इण्डस्ट्रियल कमीशन' को नियुक्त किया और उसको आदेश दिया कि वह इस बातकी जाँच करे कि भारतके उद्योग-व्यवसायकी उन्नतिके लिए देशमे कौन-कौन साधन उपलब्ध है और किन-किन बातोके करनेकी आवश्यकता है । इस कमीशनने सन् १९१८ मे अपनी रिपोर्ट पेश की और सरकारसे सिफारिश की कि सरकारका कर्तव्य है कि वह देशके उद्योग-व्यवसायकी उन्नतिके लिए पूरा उद्योग करे । उन्होने यह भी सिफारिश की कि नये उपायोका प्रयोगकर कृपिकी उन्नति करनी चाहिये और प्राथमिक शिक्षा सर्वसाधारणके लिए अनिवार्य कर देनी चाहिये । हम ऊपर कह चुके है कि पहले सरकारको नीति यह थी कि भारत कृपिप्रधान देश बना रहे, पर यूरोपीय युद्धके कारण इस नीतिमे परिवर्तन हुआ । इस नीति-परिवर्तनके अन्य भी कई कारण थे। ब्रिटिश सरकारने यह देखा कि युद्धकी अवस्थामे भारत साम्राज्यको रक्षामे तभी विशेष रूपसे सहायक हो सकेगा जब उसके उद्योग-व्यवसायकी काफी उन्नति की जायेगी। इङ्गलैण्डके पूंजीपतियोके लाभके लिए भी भारतके उद्योगोकी वृद्धि करना आवश्यक था । व्यापार-व्यवसायके क्षेत्रमे इङ्गलैण्डका वह पुराना एकाधिकार अव नही रहा था । कई नये राष्ट्र उससे प्रतियोगिता करने लग गये थे । सयुक्तराष्ट्र अमेरिका, जर्मनी और जापानकी प्रतिस्पर्द्धासे इङ्गलैण्डको भारी क्षति पहुँची और एशियाके देशोके कई बाजार उसके हाथसे धीरे-धीरे निकलने लगे । यूरोपीय महासमरमे सलग्न रहनेके कारण इङ्गलैण्ड अपने व्यापारकी रक्षाके लिए कोई प्रवन्ध न कर सका । इस समय वह विदेश भेजनेके लिए माल तैयार न कर ज्यादातर युद्धकी सामग्री तैयार करनेमे लगा हुआ था । इङ्गलण्ड- की इस परिस्थितिसे सयुक्तराष्ट्र अमेरिका और जापानने अच्छा लाभ उठाया । युद्धकी समाप्तिपर इङ्गलैण्डकी पूंजी घट गयी थी और प्रौद्योगिक उन्नति इस दर्जेतक पहुँच गयी थी कि पूंजी अच्छे मुनाफेके साथ देशमे लगायी भी नही जा सकती थी। इसलिए उनको इस वातकी आवश्यकता प्रतीत हुई कि ऐसे देशोमे अपनी पूंजी लगाये जहाँ कि मजदूरी सस्ती हो, कच्चा माल भी बहुतायतसे मिल सके और एक जगहसे दूसरी जगह माल लाने-ले जानेका खर्च भी बर्दाश्त न करना पडे । इसलिए ब्रिटिश व्यवसायियोको इसी प्रकार सहायता पहुँचायी जा सकती थी कि औद्योगिक नीतिका अवलम्बनकर ब्रिटिश पूंजी- पतियोको भारतमे पूंजी लगानेके लिए प्रोत्साहित किया जाय । भारतमे सव प्रकारकी सुविधाएँ उपलब्ध थी और यह आशा की जाती थी कि इस प्रकार ब्रिटिश पूंजीपति अपने व्यापारकी फिरसे प्रतिष्ठाकर अपनी अवस्थाको उन्नत करनेमे समर्थ होगे। भारतीय सरकारने यह भी निश्चय किया कि उसके विविध विभागोके लिए जिस-जिस सामग्रीकी आवश्यकता हो वह जहाँतक सम्भव हो भारतमे ही खरीदी जाय । इस निश्चयसे भी ब्रिटिश पूंजीपति भारतमे नये-नये व्यवसाय खोलनेको प्रोत्साहित हुए । युद्धके समाप्त होनेके वाद ही कई लोहे और फौलादके कारखाने खुल गये। धीरे-धीरे भारतमे बहुत-सी