राष्ट्रीयता और समाजवाद आगरा विश्वविद्यालय उपकुलपतिजी, स्नातकवृन्द, देवियो और सज्जनो, मैं आगरा विश्वविद्यालयके अधिकारियोका कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मुझे अाजके समारम्भके अवसरपर स्नातकोको सम्बोधितकर भापण देने के लिए आमन्त्रित किया है। प्रत्येक विद्यार्थीके जीवनमे समावर्तन-संस्कारका दिन चिरस्मरणीय होता है और इसलिए यह उचित है कि इस अवसरपर एक अनुष्ठानका विधान हो । प्राचीन कालमे हमारे गुरुकुलोमे यह महत्त्वपूर्ण सस्कार मनाया जाता था। इस संकारके जो मन्त्र तैत्तिरीय शिक्षामे पाये जाते है उनसे उत्कृष्ट शिक्षा नहीं हो सकती । वे उदात्त विचार आज भी नवीन है और हमारा पदप्रदर्शन कर सकते है । उनसे गुरु-शिष्यके परस्पर मधुर सम्बन्धका पता चलता है और सबसे विशिष्ट बात यह है कि शिक्षाको हमारे पूर्वज गुरु श्रीर अन्तेवासियोका सम्मिलित कर्तव्य समझते थे। शिक्षाके क्षेत्रमे विद्यालयके अध्यापक, विद्यार्थी और व्यवस्थापक एक दूसरेके सहयोगी है । इस पुराने भावको हमे फिरसे जगाना है। जितनी ही अधिक मात्रामे इस भावको अपनायेगे उतनी ही अधिक मात्रामे हमको शिक्षाके क्षेत्रमे सफलता प्राप्त होगी । तैत्तिरीय शिक्षामे दिये हुए उपदेशसे श्रेष्ठतर उपदेश क्या हो सकता है । थोड़ेसे चुने हुए शब्दोमे कुलपति अन्तेवासियोको एक सारगर्भित उपदेश देता है । समावर्तनके अवसरपर उपदेश देनेका अधिकार कुलपतिको ही है, कि बाहरसे किसी प्रिय व्यक्तिको आमन्त्रित करनेका रिवाज-सा पड़ गया है। इस प्रयाके अनुसार आपने यह कर्तव्य' इस वर्प मुझे सौपा है । यद्यपि मैंने अपने जीवनके विशिष्ट भागको विद्यापीठकी सेवामे व्यय किया है तथापि आपके विश्वविद्यालयके विद्यार्थियोसे निकट सम्पर्कमे अानेका मुझे अवसर नही मिला है । इस दृष्टिसे मै इन स्नातकोको उपदेश देनेका अपनेको अधिकारी नही समझता । किन्तु जव आपने मुझे इस कार्यके लिए निमन्त्रित किया है तो मैं अपने अनुभवके अनुसार कुछ शब्द आपसे निवेदन करूँ । पूर्व इसके कि मै शिक्षाके सम्बन्धमे अपने कुछ विचार आपके सम्मुख रखू मेरा यह प्रिय कर्तव्य है कि मैं उन नवीन स्नातकोको बधाई दूं जिन्होने आज पदवी प्राप्त की है । उनके जीवनमे यह एक विशिष्ट दिन है । उनमेसे बहुतसे कार्य-क्षेत्रोमे प्रवेश करेगे और जो शिक्षा उन्होने प्राप्त की है उसका अच्छेसे अच्छा उपयोग करनेका उनको अवसर मिलेगा। जो स्नातक अपनी शिक्षा समाप्त करके आज यहाँसे वाहरं जा रहे है उनके ऊपर एक विशेष उत्तरदायित्त्व है। हमारा देश आज स्वतन्त्र है । हमको एक नवराष्ट्रका निर्माण करना है। इस महान् कार्यके लिए हमको जीवनके विविध क्षेत्रोमें ऐसे विद्याचरण- सम्पन्न नवयुवकोकी आवश्यकता है जो सेवाभावसे प्रेरित होकर राष्ट्रके उत्थानके कार्यके लिए अग्रसर हो, हमारे समाजकी अनेक आवश्यकताएँ है । आजके युगमे राज्य की कल्पना ही बदल गयी है । आज राज्यका केवल इतना ही कर्तव्य नही है कि वह प्रजाके जान-मालकी रक्षा करे और उनसे कर वसूल करे । समाजके विविध विभागोको पुष्ट और समुन्नत
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