पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३५२

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आगरा विश्वविद्यालय ३३७ करना आज उसका कर्तव्य हो गया है । यह बहुजन समाज का युग है, यह लोकतन्त्र और स्वतन्त्रताका युग है । आधुनिक कालमे बहुजनके हितोकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। आज यह सम्भव नहीं है कि हम साधारण जनको शिक्षासे वञ्चित रखे । सस्कृति और ज्ञान कतिपय उच्च वर्गोतक ही सीमित नही रखे जा सकते । जवसे उद्योग-व्यवसायके युगका उपक्रम हुआ है तवसे सर्वसाधारणकी शिक्षाका भी आयोजन हुआ है । लोकतन्त्रकी आधार-शिला सार्वजनिक शिक्षा है । यह शिक्षा अभी निम्नतम अवस्थामे है। सर्व- साधारणकी शिक्षाकी कल्पना प्रारम्भमे प्राथमिक शिक्षातक ही सीमित थी। इससे सर्वसाधारणके लिए जानके द्वारका उद्घाटन अवश्य हुआ। किन्तु जबतक सबके लिए माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा सुलभ न हो जावे तबतक इससे लाभकी अपेक्षा हानि ही अधिक होती है । सर्वसाधारणकी जानकारीमे थोडी वृद्धि अवश्य होती है, किन्तु वह इस प्रकार सुसस्कृत और सुसयत नही बन सकते । पुन. व्यवसायी लोग व्यापारके लाभके लिए उनकी रुचिको विकृत कर देते है । वह इस प्रकाके समाचार संगृहीत करते है जिससे अधम 'स्व' को प्रोत्साहन मिलता है। किन्तु धीरे-धीरे यह कल्पना मान्य होने लगती है कि यदि लोकतन्त्रको उन्नत करना है तो सर्वसाधारणकी शिक्षा भी उन्नत होनी चाहिये । हमारा देश तो इतना निर्धन है कि आज सर्वसाधारणकी अनिवार्य प्राथमिक शिक्षाके व्ययका भार ही सहन करना कठिन है । किन्तु यह निश्चत है कि हमको आज ही नव- समाजका आरम्भ करना है। एक स्वतन्त्र समाजके आधारको दृढ़ बनानेके लिए तथा सुन्दर भविष्यका निर्माण करनेके लिए लोकतनके इस उपकरणको समर्थ बनाना है। यदिआज माध्यमिक शिक्षा सर्वसाधारणके लिए सुलभ नही हो सकती तो प्राथमिक शिक्षणका का सूत्रपात तो करना ही चाहिये । हमे हर्प है कि हमारे प्रान्तमे इस कार्यका श्रीगणेश हो गया है तथा १० वर्षमे इस उद्देश्यको पूरा करनेका निश्चय किया गया है। यदि हमारा शिक्षित समुदाय अपने कर्त्तव्यको पहचाने और इस कार्यमे योग दे तो कम समयमे यह प्रारम्भिक कार्य समाप्त हो सकता है और व्ययमे भी कमी हो सकती है। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति अपना-अपना काम करते हुए निरक्षरोको साक्षर बना सकता है। मुहल्लेमे, दफ्तरमे, हाटमे, गॉवके चौपालोमे, पाठशालामे, मन्दिर-मसजिदमे, सर्वत्र यह कार्य अवैतनिक रूपसे किसी परिमाणमे हो सकता है । आशा है जो नवयुवक आज शिक्षा समाप्त कर जीवनमे प्रवेश कर रहे है वह इस कार्यके महत्त्वको समझेगे और साक्षरताके आन्दोलनमे सक्रिय भाग लेगे। आज हम एक क्रान्तिकारी युगमे रह रहे है । सारा ससार इतिहासके चौराहेपर खडा है । हमारी पुरानी सस्थाएँ, हमारे क्रमागत विश्वास, जीवनके प्रति हमारी दृष्टि, हमारे सामाजिक मूल्य, हमारी विचार-पद्धति, हमारी अर्थ-नीति और समाज-नीति सव परिवर्तित हो रहे है । एक युगकी परिसमाप्ति तथा नवयुगका उपक्रम हो रहा है। ऐसे संक्रमणकालमे हम रह रहे है । ऐसे संकटके समयमें बुद्धि-विभ्रम होना स्वाभाविक है । प्रत्येकके लिए अपने कर्तव्यको निश्चित करना कठिन होता है । मनुष्य भय, संशय, अनिश्चितता तथा सुरक्षाके अभावके कारण चिन्ताग्रस्त होता है और बहुतसे ऐसी अवस्थामे २२