पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३७

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२४ राष्ट्रीयता और समाजवाद अंग्रेजी कम्पनियोंकी रजिस्ट्री हो गयी और वे अपना कारोबार करने लगीं। सन् १९२१में 'फिस्कल कमीशन'की नियुक्ति की गयी। इस कमीशनने यह सिफारिश की कि भारतीय सरकारको सरक्षणकी नीतिका प्रयोग करना चाहिये और एक स्थायी 'टैरिफ वोर्ड' इस अभिप्रायसे स्थापित करना चाहिये कि वह समय-समयपर इस वातका विचार करे कि भारतके किन विशेप व्यवसायोको सरक्षणकी आवश्यकता है। कमीशनने यह भी सिफारिश की कि विदेशी पूंजीके भारतके व्यवसायमे लगनेमे कोई वाधा न उपस्थित को जाय और जो चुङ्गी हिन्दुस्तानके कपड़ेके व्यवसायपर लगती है वह हटा दी जाय । सन् १९२३मे भारतीय सरकारने सरक्षणकी नीतिको बहुत कुछ अणमे स्वीकार कर लिया। 'टैरिफ बोर्ड की स्थापना की गयी और सन् १९२४मे लोहे और फोलादके व्यवसायको सरक्षण दिया गया। इस नीति-परिवर्तनका एक कारण यह भी था कि सरकारके लिए अव यह आवश्यक हो गया था कि वह भारतवर्षके पूंजीपति, बड़े व्यवसायी और मध्यम श्रेणीके लोगोका सहयोग प्राप्त करे । यूरोपीय युद्धसे सामान्य लोगोमे अपूर्व जागृति हो गयी थी। भारतकी जनता पहलेकी तरह अब निष्क्रिय और निश्चेष्ट नही रह गयी थी। उसका आर्थिक क्लेश बहुत बढ गया था। अशान्ति और विद्रोहके चिह्न म्पप्ट दिखलायी पडते थे । युद्धके पहले भारतीय सरकारके प्रधान विरोधी मध्यम श्रेणीके लोग ही थे। जमीदार, वडे-बडे व्यवसायी प्रायः राजभक्त थे और सामान्य जनताको अपने अधिकारोका ज्ञान न था। उस समय मध्यम श्रेणीके लोगोको दवाना कोई ऐसा कठिन कार्य न था, लेकिन युद्धके पश्चात् जव लोक-जागृति हुई तव सरकारको अपनी रक्षाके लिए मध्यम श्रेणीके लोगोको सन्तुष्ट करना आवश्यक हो गया । इसीलिए द्विचक्र-शासनकी नीति अपनायी गयी। इस नीतिसे सरकारका प्रत्यक्ष लाभ था। जहाँतक प्रौद्योगिक क्षेत्रमे इस नीतिके अनुसार कार्य करनेका सम्बन्ध है इसका प्रारम्भ सरकारकी अोरसे स्वतः ही हुग्रा । इससे व्यवसायी और व्यापारियोका वर्ग सन्तुष्ट हो गया। मध्यम श्रेणीके लोग बहुत दिनोसे इस वातकी कोशिश कर रहे थे कि भारत- सरकार देशी व्यवसाय और उद्योगकी उन्नतिके लिए संरक्षणका अवलम्वन करे । अव उनके मनकी वात पूरी हो गयी। शासन-क्षेत्रमे भी उनको हिस्सेदार बनाकर सरकारने नरम दलको काग्रेससे अलग करके अपने साथ मिला लिया । काग्रेसका गरम दल इन सुधारोसे सन्तुष्ट न था । वह इनको अपर्याप्त और निस्सार समझता था । नरम दलके लोग सुधारकी योजनाको काममे लानेके पक्षमे थे । काग्रेसकी नीतिसे वे सहमत न थे । काग्रेसपर इस समय गरम दलके लोगोका प्रभुत्व हो गया था । इसलिए नरम दलके लोगोने काग्रेसका परित्याग किया। श्रीमती वेसेण्टका प्रभाव भी कम हो गया और वे भी काग्रेससे अलग होकर नरम दलमे सम्मिलित हो गयी । नरम दलके लोगोने अपनी एक अलग सस्था कायम की जिसे 'लिबरल फेडरेशन' कहते है । जिस प्रकार शासनके क्षेत्रमे हिन्दुस्तानियोको कुछ हिस्सा दिया गया उसी प्रकार ब्रिटिश पूंजीपतियोकी भी यही इच्छा थी कि जो व्यवसाय वे भारतवर्पमे करें उसमे भारतीय पूंजीपतियोका भी सहयोग हो । इस साझेके कारोबारसे उनको कई लाभ थे। पहला