पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६०

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अध्यापकोका कर्तव्य '३४५ फेकना है। इस क्षेत्रमे सफल होनेके लिए आवश्यक है कि अध्यापक-वर्गमे नवीन उद्देश्यो और आदर्शोपर दृढ विश्वास और आस्था हो और इन्हें प्राप्त करनेके लिए वह उत्साहके साथ दृढप्रतिज्ञ होकर पूरा प्रयत्न करे । अध्यापक-वर्ग अपने कर्तव्य और व्रतका पूर्ण परिपालन कर सके, इसके लिए उसका स्तर उन्नत करना होगा और उसकी जीविकाकी ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि आर्थिक कठिनाइयोसे मुक्त होकर वह एकचित्त हो अपने जीवन-कर्त्तव्यके पालनमे लग सके । उसकी बौद्धिक और अध्ययनगत स्वतन्त्रता अक्षुण्ण रखनी होगी और सभी प्रस्तुत विषयोपर अपने विचार प्रकट करनेकी स्वतन्त्रता उसे देनी होगी। सव विपयोमे उसका रुख तटस्थ तो नही हो सकता, पर उसकी विचारधारा पूर्वग्रहदूषित न हो, हर चीजको वह निष्पक्ष होकर देख सके । छात्रोके समक्ष किसी विपयपर दूसरोके विचार और दृष्टिकोण सत्यता और सचाईके साथ रख सके । अध्यापक-वर्गकी विचारधारा किसीके द्वारा दबायी न जाय और न कोई अधिकारी राजनीतिक दल उसे विवश कर उससे अपने विशेष स्वार्थोकी सेवा ले। विचारोकी स्वतन्त्रता नितान्त रूपसे आवश्यक है, क्योकि जवतक अध्यापक और उसके छात्रोके वीच विचारो और भावनाअोका उन्मुक्त आदान- प्रदान नहीं होता तवतक ऐसे सामाजिक जीवनका विकास नही हो सकता जो गतिशील हो। हम अपने विद्यार्थी-वर्गमे विनय एवं शीलके होनेकी अपेक्षा करते है । पर यह किसी वाह्य शक्ति किंवा अधिकारका फल न हो प्रत्युत उनकी अपनी आन्तरिक प्रवृत्तियोसे ही उद्भूत और विकसित हो । इस प्रकार उनमे स्वतन्त्ररूपसे सोचने और कार्य करनेकी शक्ति वढेगी। किन्तु इस प्रकारके सच्चे शिक्षा-सि तोको चरितार्थ करनेमे उपयोगी होनेके लिए अध्यापकको स्वय अपनेको फिरसे शिक्षित करना और उसे जो कार्य और व्रत पालन करना है उसके लिए उपकरण एकत्र करके सन्नद्ध होना पडेगा । प्रत्येक व्यक्तिके लिए शिक्षाका एक निरन्तर क्रम होना चाहिये । ससारके द्रुतगामी परिवर्तनको देखते हुए हमे भी समय- समयपर अपनी विचार-बुद्धिको फिरसे उसके साथ मिलानेकी आवश्यकता है । अध्यापक अपने आपको सुसगठित भी करे ताकि वे शिक्षासमस्याओपर विचारविमर्श करनेके लिए बारम्बार एकत्र हो सके । यही उपाय है जिसके द्वारा वे अपने वैध स्वत्वोकी रक्षा कर सकते है और समाजके सुधार एव उन्नयनके क्षेत्रमे अपना प्रभाव डाल सकते है। हम इस वातकी ओर भी आपलोगोका ध्यान दिलाना चाहते है कि देशमे एक ऐसे राष्ट्रीय सघटनके होनेकी आवश्यकता है, क्योकि अभी ऐसा कोई सगठन नहीं है जिसमे देशके सभी वर्गोके अध्यापकोका समावेश हो । यह सत्य है कि विभिन्न कोटिकी पाठशालारो और अध्यापकोके संगठन अलग-अलग भी हो सकते है, परन्तु यह कोई कारण नही है कि सभी कोटियो एव वर्गोके अध्यापक मिलकर अपनी एक राष्ट्रीय सस्था न बनाये । यह आवश्यक है कि सब प्रकारके अध्यापक अपनी एक प्रकारकी एकताका अनुभव करे। इस प्रकार वे अध्यापक जो अध्यापकोके क्रममे सवसे नीचे है, अपनेसे बडे अध्यापकोके सम्पर्क, राय एवं पथ-प्रदर्शनसे लाभान्वित होगे और यह अनुभव करेगे कि सभी अध्यापक मिलकर एक