पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६१

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३४६ राष्ट्रीयता और समाजवाद सम्मिलित विरादरीमें शामिल है। साथ ही इस प्रकारके सम्पर्करो अध्यापकोके उन्नयन और सुधार-कार्यको वल और प्रगति प्राप्त होगी। जब अध्यापकोकी एक राष्ट्रीय संस्था स्थापित हो जायगी तभी वे अध्यापन करनेवाले लोगोके विश्वव्यापी संगठनकी वात सोच सकेगे । सन् १९८६ के अगस्त माममें न्यूयार्कमें ऐसी एक संस्थाकी स्थापना एक सम्मेलनके अवसरपर हुई थी, जिसमें ३० राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे । इस सस्थाकी स्थापना ठीक समयरो ही हुई थी। शिक्षामात्र एक सहयोगी प्रयास है और सहकारिताके उपायोके अनुगरणहारा ही हम वैज्ञानिक एव सास्कृतिक शोधके कार्यका विस्तार करनेकी पाशा कर सकते है। मानव-कल्याणको अग्रसर करनेके निमित्त भी अन्तर्राष्ट्रीय सहकारिता और महानुभूतिपूर्ण समझदारीकी आवश्यकता है । यह बात भी स्पष्ट है कि गप्ट्रोके बीच जो आपमकी गलतफहमी है उसे दूर करके और समानताके सिद्धान्तपर आधारित पारम्परिक कल्याणभावनाके ही द्वारा हम स्थायी शान्ति एव सुरक्षा स्थापित करनेकी श्रागा कर सकते है । भारतवर्षके लिए यह वाछनीय नहीं होगा कि वह सबमे पृथक् और इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासके बाहर रहे । उक्त सस्थाके ध्येय प्रणननीय है। इसका उद्देश्य है कि नंसारकी जितनी अध्यापकों- की संस्थाएँ है सवमे ऐक्य स्थापित हो जाय ताकि गभीको बिना किसी भेदभावके पूर्ण एवं निर्वाध शिक्षा प्राप्त हो सके । अध्यापकोका स्तर ऊंचा उठे पार अन्तर्राष्ट्रीय सहकारिताके लिए उपयुक्त नुयोग प्रगस्त हो । किन्तु मेरा विनम्र मत है कि सबसे पहले हम एक ऐसी राष्ट्रीय संस्था स्थापित करे जिसमें भारतवर्पके सभी कोटियोके अध्यापक आ जायें, ताकि विश्वव्यापी सगठनमे भारतका समुचित प्रतिनिधित्व हो सके और यह संस्था देशके अध्यापकोको विरादरीका प्रतिनिधित्व कर सके । मैं जानता हूँ, बहुतमे अध्यापक उम विचारके है कि अध्यापकोका संगठन न केवल अनावश्यक है, अपितु यह उनके लिए अशोभन है, क्योकि उनकी समजमे उसमे ट्रेड युनियन- वादको गन्ध पाती है । मेरा मत इसके विपरीत है । हड़ताल करना अध्यापकोके गौरवके लिए अनुचित जॅच सकता है, पर मुझे ऐसा कोई कारण नहीं दीखता कि अपने हितोकी रक्षाके लिए और साथ ही सास्कृतिक उद्देश्योकी उन्नतिके लिए अध्यापक अपनेको मुसंगठित क्यो न बनावे । हर जगह ऐसी सस्थाएँ है । अध्यापकोको अपनी स्वयं गिक्षाके लिए भी इनकी आवश्यकता होती है। मेरी समझमें नहीं पाता कि यदि अध्यापक अपने लिए अपनी संस्थाद्वारा जीविकाका समुचित स्तर प्राप्त करनका प्रयत्न करता है तो उसके लिए यह अप्रतिष्ठाकी वात क्यो समझी जाती है । हमे भूलना नही चाहिये कि अध्यापकोका वेतन सबसे कम है । पर दूसरे पेशोके लोगोके साथ जिन्हें इनके बरावर ही योग्यता प्राप्त करनी पड़ती है, यदि इनकी तुलना की जाय तो सामाजिक स्तरको दृष्टिमे अध्यापकगण दूसरोकी अपेक्षा नीचे मिलते है । मुख्यत यही कारण है कि प्रत्येक देशमे ट्रेड अध्यापकोंकी बहुत ही कमी है और यहाँ युद्धके वाटसे सभी देशोमे प्राथमिक पाठगालाग्रोके अध्यापकोका काम बहुत नीचे गिरा है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे समुन्नत देशमें भी प्राथमिक