पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६३

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३४८ राष्ट्रीयता और समाजवाद हम एक साथ होनेके लिए सभी सम्भव उपायोका उपयोग नहीं करते तो हमारा श्रीगणेश शुभ नही होगा। मुझसे यह भी अपेक्षा है कि जिन समस्यायोकी चर्चा में इस अभिभाषणमे करूँगा उनके विषयमे अपने मत भी प्रकट करूं। मुझे निश्चय है कि ग्राप उनपर ध्यान देगे और उनके विपयमे विचार करेगे । ऐसी भी समस्याएं है जिन्हे आप बहुत महत्त्वपूर्ण समझेंगे, किन्तु इस अल्पकालीन अधिवेशनमे उनपर विचार-विमर्शके लिए पर्याप्त समय नहीं मिल सकेगा। जैसा कि आपके परिपत्रसे सुस्पष्ट हे आप लोग विणेप रूपसे उस प्रश्नपर विचार करना चाहते है कि विश्वविद्यालयोमे शिक्षणका माध्यम क्या हो । इस अन्तिम प्रश्नपर ही मैं सर्वप्रथम विचार करूँगा, क्योकि इसीपर सरकार एवं विश्वविद्यालयोका विशेप ध्यान हे, अत. इसका समाधान तुरत होना चाहिये । यह तो सभी मानते है कि कमसे-कम हाई स्कूलकी शिक्षातक मातृभापाको ही गिक्षाका माध्यम रखना चाहिये। किन्तु विश्वविद्यालयमे पहुँचनेपर शिक्षाका माध्यम क्या हो, इस विपयमे एकमत नही है । इण्टर-युनिवर्सिटी बोर्डने तो मातृभापाको विश्वविद्यालयमे भी शिक्षाका माध्यम रखनेके विरुद्ध मत प्रकट किया है । परन्तु सेण्ट्रल ऐडविजरी बोर्ड प्राव् एजुकेशनने यह राय दी है कि उच्चतर शिक्षालयोमे भी मातृभापाके ही द्वारा शिक्षा दी जाय और इण्टरयुनिवर्सिटी बोर्ड उसके साधन और उपाय सूचित करे । यह सिफारिण इस विषयकी खोज करनेकी ही सिफारिश थी। इस क्षेत्रमे एक कदम और आगे बढा, जब अखिल भारतीय शिक्षा-सम्मेलनने अपने जनवरी सन् १९४८ वाले अधिवेशनमे वाइसचांसलरो और कुछ विशेपज्ञोकी एक समिति इस विपयपर सुनिश्चित विचार देने के लिए नियुक्त की। इस समितिकी वैठक सन् १९४८ के मई मासमे हुई और बहुत कुछ विचार-विमर्श के बाद यह निश्चय हुआ कि विश्वविद्यालयोकी शिक्षा भी मातृभापाके ही माध्यमद्वारा दी जाय । इस समितिके समक्ष एक विचार यह रखा गया था कि विश्वविद्यालयोमे राष्ट्रभाषाको शिक्षाका माध्यम बनाया जाय, किन्तु उन लोगोने इसे स्वीकार नही किया। समितिसे यह कहा गया कि अग्रेजी भापाने कम-से-कम एक काम बहुत अच्छा यह किया कि उससे हम सवको विचार करने और उन्हे व्यक्त करनेका एक माध्यम मिला और इस प्रकार देशमे एक एकीकरण सिद्ध हुआ । देशके सभी विश्वविद्यालयोमें एक ही माध्यम रखनेकी महत्त्व- पूर्ण उपयोगितापर जोर दिया गया था और यह भी कहा गया था कि इस प्रकार जो सुभीता प्राप्त होगा वह राष्ट्रभापाका केवल साधारण ज्ञान प्राप्त करनेके लिए उसे अनिवार्य रूपसे पढानेसे नही सिद्ध हो सकेगा। मेरी समझमे नही आता कि राष्ट्रभापाको यदि विश्व- विद्यालयोमे शिक्षाका माध्यम नही बनाया जाता तो राष्ट्रीय महासभाका कार्य किस प्रकार सम्पादित किया जायगा । राष्ट्रभापा अपने समुचित स्तरपर तभी स्थापित हो सकेगी और राष्ट्रीय महासभा एवं अन्य राष्ट्रीय सभाप्रोमे विचार-विमर्शका समुचित माध्यम तभी बन सकेगी, जव उसे सभी विश्वविद्यालयोमे शिक्षाका माध्यम बना दिया जायगा । इसके साधारण ज्ञानके द्वारा ही व्यवस्थापिका सभायोमे होनेवाले विचार-संघर्पोमे सदस्य अपना पूर्ण सहयोग देनेमे। समर्थ नही होगे । महासभामें बहुतसे महत्त्वपूर्ण एवं पेचीदे