पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६८

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विश्वविद्यालय दे : नवयुगके नागरिक ३५३ सामूहिक जीवनकी भावनाको अधिक समृद्ध वनानेमे न किया जाय । गुरुकुलकी परम्परा ( residential system ) का शिक्षागत महत्त्व तो इसीमे है कि छात्रावासोमे ही हम सहकारिता, सहानुभूति एव भाईचारेके वहुमूल्य पाठ पढते है जो सामूहिक जीवनके लिए बहुत ही सहायक होते है । विश्वविद्यालयकी शिक्षाके सम्पूर्ण प्रश्नका विचार करनेके लिए भारत सरकारने एक कमीशन नियुक्त किया है। इसके परामर्शोकी वडी अभिरुचिके साथ राह देखी जायगी और हम बडी उत्सुकताके साथ इसकी सिफारिशोकी प्रत्याशा करते रहेगे । मै जानता हूँ कि आपका भार बहुत वडा है और आपके दायित्व वडे महत्त्वपूर्ण है । आपको केवल वैज्ञानिक, विशेषज्ञ अनेक पेशोके लिए उपयुक्त लोग और अध्यापक पैदा करना ही नही है, अपितु आपको विचारो और मानवीय समस्याओके लिए नेता भी पैदा करना है; और सवसे बढकर तो यह करना है कि विश्वविद्यालय रचनात्मक विचारो और भावनाअोका केन्द्र बन जाय, जिसके हो जानेसे ही जनतन्त्रीय समाजकी स्थापना एव प्रतिष्ठा कायम रखनेमे सहायता मिल सकती है । आज आपलोगोका एक विशिष्ट स्थान है और आपलोगोकी कार्यप्रणाली हमारा भविष्य निर्धारित करनेवाली है । मुझे आशा है कि आप निर्भय रूपसे और साहसके साथ अपने दायित्व पूर्ण करनेकी और शिक्षा-क्रमको ऐसा बनानेकी शक्ति रखते है कि हम जीवनमें वे सामाजिक एव आध्यात्मिक महत्त्व प्राप्त कर सके जिनके कारण मानव-जीवन उदात्त होता है। विश्वविद्यालय दें : नवयुगके नागरिक विश्वविद्यालयोकी शिक्षाका उद्देश्य केवल विभिन्न पेशोमे काम करनेवाले व्यक्तियो (वकीलो, डाक्टरो आदि), कारीगरो, वैज्ञानिको और शासन-प्रवन्ध करनेवालोको तैयार करना नही वरन् जीवनके प्रति विस्तृत दृष्टिकोण रखनेवाले, समझदार, सुसस्कृत नागरिक भी तैयार करना है । विश्वविद्यालयोसे यह भी आशा की जाती है कि वे विचार और मानव-सम्वन्धोके क्षेत्रमे नेतृत्व करनेवाले व्यक्तियोको जन्म देगे और सबसे बढकर उनमे रचनात्मक विचारोके ऐसे केन्द्र बननेकी आशा की जाती है जिनके द्वारा ही आजके कष्ट और सघर्षके युगमे नवीन सामञ्जस्यकी स्थापनामे हमे सहायता मिल सकती है। विश्वविद्यालयोका यह अन्तिम कर्तव्य सर्वोपरि महत्त्वका है, क्योकि आजके तीव्र परिवर्तन और विच्छिन्नताके युगमे नयी सामाजिक चेतना और गतिशील चिन्तन ही सामाजिक रोगका विश्लेषण करके उसका उचित निदान ढूंढ सकता है । १. All India University Teachers' Convention के दिल्ली अधिवेशन- मे ४ दिसम्बर १९४८ को सभापति पदसे दिया हुआ भाषण । २. लखनऊ विश्वविद्यालयके रजत्-जयन्ती-समारोह (१९४६) के अवसरपर । २३