पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३६९

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३५४ राष्ट्रीयता और समाजवाद प्राचीन संस्थाओंका विघटन परम्परागत मूल्यो और आदर्शोपरसे लोगोकी निष्ठा उठती जा रही है और पुरानी संस्थाएँ सर्वत्र ध्वस्त होती दृष्टिगोचर होती है। नये युगमे जीवित रहनेके लिए, नये सन्तुलन और सघटनके लिए हमे सतत प्रयत्नशील रहना है । समाजका नवीन सन्तुलन और सघटन तभी सम्भव है जब कि हम नयी समाजिक आवश्यकतायो पीर आकाक्षायोकी पूर्तिमे सहायक होनेवाले नये मूल्योको स्वीकार करनेमे वुद्धिमत्ता और साहसका परिचय दे। हमारे अध्यापकोको अपनी पुरानी उदासीनता और उपेक्षाकी मनोवृत्तिका परित्याग कर देश और समाजके नवनिर्माणसम्बन्धी प्रश्नोमे क्रियात्मक रुचि लेनी पड़ेगी। विश्वविद्यालयोको केवल अपने छात्रोको विद्यादान करके सन्तुष्ट नहीं होना है वरन् वयस्क शिक्षा तथा इस प्रकारके दूसरे कार्योमे रुचि लेकर समाजके प्रति अपने उत्तरदायित्व- का निर्वाह करना है । अध्यापकोको विशुद्ध पठन-पाठनके कार्यतक ही अपनेको सीमित न रखकर आगे बढना चाहिये और देशकी सामाजिक और राजनीतिक समस्यायोका हल ढूंढनेमे योग देना चाहिये । समाजके प्रति अध्यापकोका यह भी उत्तरदायित्व है कि वे अपने विद्यार्थियोको जनतान्त्रिक ढगसे आचरण करनेकी शिक्षा दे और उनमे दृढ नागरिक भावना भरे । राष्ट्रीय साहित्यके विकासका कार्य भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इसकी पूर्तिमे भी उन्हे हाथ बँटाना है। अतीतकी उपासनाका खतरा समाजकी सबसे बडी सेवा जो आज विश्वविद्यालय कर सकते है वह है प्रतिक्रियावादकी शक्तियोसे संघर्ष करनेमे उसकी सहायता करना । नवयुवकोको गुमराह होनेसे वचाकर उन्हे विवेक और बुद्धिमानीका गार्ग दिखाना सबसे आवश्यक है । आज धर्म और संस्कृतिके नामपर हमारे नौजवानोकी घृणा और उपकी भावनारोको उभाड़ा जा रहा है और मानवतावादी मूल्योकी उपेक्षा करना सिखाया जा रहा है । धार्मिक पक्षपात विहीन, असाम्प्रदायिक लोकतान्त्रिक राज्यकी कल्पनाका मखौल उड़ाया जाता है और नवयुवकोको आगे आनेवाले भविष्यकी ओर देखनेके वजाय सुदूर अतीतकी ओर दृष्टि मोडनेको कहा जा रहा है । यदि अतीतको पुनरुज्जीवित करनेका आन्दोलन नवयुवकोको अपनी ओर आकर्पित करनेमे सफल हुआ तो मेरी रायमे देशके लिए यह सबसे वडे खतरेकी वात होगी। इस प्रकारका आन्दोलन यद्यपि घोपित रूपसे सांस्कृतिक आन्दोलनके रूपमे प्रारम्भ होता है, किन्तु अन्तमे वह राजनीतिक रूप धारण करता है और चूंकि उसकी जडे जनतामे नही होती इसलिए अपने लक्ष्यकी पूर्ति के लिए जनताको साथ लेनेके स्थानपर वह दूसरे 'सुगम' मार्ग अपनाता है । इस प्रकारका आन्दोलन नवयुवकोमे अपूर्व स्फूर्तिका संचार करता है, उनकी सोयी हुई शक्तिको जगाता है, किन्तु इस शक्तिका सदुपयोग देशकी सामाजिक और आर्थिक समस्यानोका समाधान करनेमे न लगाकर साप्रपदायिक विद्रोह तथा कलह की वृद्धि करनेमें हुआ करता है । ग्रह आन्दोलन जीवनमे नवयुवकोके दृष्टिकोणको