पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३७०

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विश्वविद्यालय दे. नवयुगके नागरिक ३५५ विकृत कर देता है, उनकी विवेक-बुद्धिको कुंण्ठित कर देता है और उन्हें आजके समाजकी जटिल समयस्याओको समझनेके अयोग्य बना देता है। हिन्दुस्तानकी राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ तथा मित्रके इरुवानुल मुसलमीन सरीखी संस्थाओके इतिहाससे हमे शिक्षा लेनी चाहिये । इरुवानुल मुसलमीन प्रारम्भमें प्राचीन सस्कृतिके उद्धारका लक्ष्य रखकर चलनेवाला विशुद्ध सास्कृतिक आन्दोलन था। उसका उद्देश्य कुरानकी संस्कृतिपर आधारित राज्यकी स्थापना था। किन्तु यह आन्दोलन धीरे-धीरे राजनीतिक रूप धारण करता गया और अपने उद्देश्यकी सिद्धिके लिए उसने अनेक अवसरोपर आतंकवादका सहारा लिया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके सम्बन्धमे भी यह भविप्य कथन किया जा सकता है कि यह शीघ्र ही राजनीतिक सस्थाका रूप धारण करेगा, अन्यथा समाप्त हो जायगा । यदि हम राष्ट्रको एक भयकर सकटसे बचाना चाहते है तो शिक्षाविदोका यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वे हमारे नवयुवकोमे जनतन्त्रकी भावनाको कूटकर भर दे और उन्हे जीवनके प्रति विवेकपूर्ण एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे विचार करनेका अभ्यस्त बनाये । अनुशासनको समस्या आजकल छात्रोमे अनुशासनहीनताकी शिकायत प्राय सुननेको मिलती है। इस अनुशासनहीनताके अनेक कारण है । हम एक उलझन और संघर्षसे भरे जमानेमे रह रहे है । जीवनकी आधारभूत मान्यताप्रोके सम्वन्धमे पढे-लिखे लोगोमे एक राय नहीं है । लोगोकी निष्ठा परस्पर-विरोधी विचारधाराअोके प्रति है। आर्थिक कठिनाइयाँ और बेकारी उत्साहभग्नताको जन्म देती है । समाजकी विशृंखलता स्वभावत विद्यार्थियोमे प्रतिविम्वित होती है । अनुशासनहीनताको दूर करनेका उपाय यही है कि छात्रोके जोशको रचनात्मक कार्यमे लगाया जाय और शिक्षको और शिक्षार्थियोके वीच घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित हो । शिक्षा एक सहकारी प्रयत्न है जिसमे अध्यापक और छात्र दोनो ही भाग लेते है । दोनोमे आदर्शकी एकता होनेपर ही शिक्षा-संस्थानोमे सच्चे अनुसाशनकी स्थापना सम्भव है। अनुशासनहीनताको समाप्त करनेके लिए हमे अनुशासनकी पुरानी धारणामे भी संशोधन करना होगा और शिक्षको और शिक्षार्थियोके बीच सौहार्द स्थापित करना होगा, किन्तु अनुशासनहीनताकी समस्या मूल रूपसे नये सामाजिक संघटनकी समस्याके साथ हल हो सकेगी। परीक्षाको घड़ी हम ऐसे युगमे रह रहे है जब कि संघर्ष विच्छिन्नता हमारे राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय जीवनकी स्वाभाविक विशेषता बन गयी है । किन्तु समाजके इस असन्तुलनके कारण हमारा यह परम कर्तव्य हो जाता है कि हम नये सामञ्जस्यकी स्थापनाके लिए पूरी शक्तिके साथ प्रयत्नशील हो । कुछ लोग भग्नोत्साह होकर निष्क्रिय हो रहे है अथवा रहस्यवादकी गोदमे शरण ले रहे है और कुछ लोग मनुष्य और समाजके कल्याणके लिए