पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३८

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास २५ लाभ तो यह था कि ऐसा करनेसे कारोवारका वास्तविक स्वरूप प्रकट नही होता । दूसरा लाभ यह था कि इस प्रकार भारतके पूंजीपतियोमे एक ऐसा वर्ग पैदा हो जायगा जिसका स्वार्थ ब्रिटिश पूंजीपतियोके स्वार्थसे घनिष्ठ सम्बन्ध रखेगा । 'फिस्कल कमीशन के सदस्योने अपनी रिपोर्टमे एक सिफारिश यह भी की थी कि सरकार उन्ही कम्पनियोको विशेप रियायते दे जिनकी रजिस्ट्री भारतमे हुई हो एवं जिसके प्रवन्धमे भारतीयोका हाथ हो । भारतीय पूंजीपतियोका सहयोग प्राप्त करके ही ब्रिटिश व्यवसायी इस सिफा- रिशसे फायदा उठा सकते थे । इङ्गलैण्डके प्रसिद्ध पत्र 'इकानोमिस्ट'ने सन १९२४में लिखा था कि एक नियन्त्रणमे भारतीय और ब्रिटिश पूंजीकी सहायतासे व्यवसायोकी प्रतिष्ठा करनेसे बहुत बडे लाभ होगे । भारतके प्रौद्योगिक विकासमे 'डायरकी'की मजिल उतनी ही अनिवार्य है जितनी कि शासनके क्षेत्रमे । जूटकी मिलोमे इस समय जो पूंजी लगी है उसका आधेसे ज्यादा हिस्सा हिन्दुस्तानियोका है । तब भी अग्रेजोका पुराना नियन्त्रण ज्यो-का-त्यो मौजूद है; क्योकि हिन्दुस्तानी अपने मुनाफेसे सन्तुष्ट है । उनको प्रबन्धमे हिस्सा लेनेकी कोई ख्वाहिश नही है ।' ऊपरके विवेचनसे यह स्पष्ट हो गया होगा कि साम्राज्यवादकी नवीन अावश्यकताअोके विचारसे ही भारत सरकारको नीतियोमे परिवर्तन हुआ । इस नीतिको एक अशमे सफलता भी प्राप्त हुई; क्योकि हम देखते है कि असहयोग आन्दोलनके समय भारतके वडे-बडे व्यापारी, व्यवसायी, और नरम दलके लोग केवल आन्दोलनसे पृथक् ही नही रहे वल्कि आन्दोलनके दबाने मे सरकारको सहायता करते रहे । हम ऊपर कह चुके है कि यूरोपीय युद्धके समय विप्लवको कुचलनेके लिए 'डिफेन्स ऑफ इण्डिया ऐक्ट' पास हुअा था और इस कानूनकी सहायतासे बहुतसे नवयुवक नजरवन्द कर लिये गये थे । युद्धके समाप्त होनेपर इस कानूनको अवधि भी समाप्त होनेवाली थी। तदनन्तर सरकारको इन नजरवन्दोको छोड देना आवश्यक होता । सरकारका ख्याल था कि साधारण कानून विप्लवके दवानेके लिए काफी नहीं है, इसलिए सरकारने सन् १९१८मे 'रौलेट कमीशन' नियुक्त किया। कमीशनने षडयन्त्रोकी जाँच की और विप्लवके दवानेके लिए नये कानूनके बनानेकी सिफारिश की। कमीशनकी रिपोर्टके आधारपर सरकारने सन् १९१६मे वडी व्यवस्थापक सभामे दो विल पेश किये, जो काले कानूनके नामसे प्रसिद्ध हुए। गैर-सरकारी सदस्योने एकमत होकर और व्यवस्थापक सभाके वाहरके सब दल और विचारके लोगोने इनका समान रूपसे विरोध किया, पर सरकारने इस विरोधकी परवाह न की और अन्तमे १८ मार्चको ये बिल पास हो गये। इस समय महात्मा गांधीने इन कानूनो तथा अन्य कानूनोको तोडनेके लिए एक कमेटी नियुक्त की । महात्माजीने लोगोसे सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा ली और ३० मार्चको हड़ताल करनेकी अपील की। इस हडतालको वहुत सफलता मिली और इसने यह प्रमाणित कर दिया कि साधारण जनतामे अपूर्व जागृति हो गयी है। इस समय भारतके मुसलमान भी खिलाफतके विपयमे वहुत चिन्तित थे। यूरोपीय महासमरमे तुर्की जर्मनीका मित्र था । युद्धमे जर्मनीके हारनेके कारण भारतके मुसलमान तुर्कीके भविष्यके विपयमे बहुत प्राकुल हो रहे थे। उनकी यह विशेष रूपसे इच्छा थी कि जजीरतुल अरब खलीफाकी अधीनतामे