२६ राष्ट्रीयता और समाजवाद ही रहे और वहाँ गैर-मुसलिम गक्तिका अधिकार या प्रभाव न होने पावे । खिलाफतकी रक्षाके लिए खिलाफत नामकी सस्था स्थापित की गयी। सरकारने मुसलमानोको ग्राश्वासन दिलाया कि तुर्कीके साथ कोई अन्याय नहीं किया जायगा और मुसलमानोके धार्मिक विचारोंका आदर किया जायगा ; लेकिन मुसलमानोको इससे सन्तोप नहीं हुआ। इसलिए, मुसलमानोने भी ३० तारीखको हडताल मनायी और हिन्दुरोका पूरा साथ दिया । यो तो महात्माजी युद्धके प्रारम्भ होनेके बाद ही दक्षिण अफ्रीकामे लोट पाये थे, लेकिन अबतक वह भारतकी राजनीतिमे कोई विशेष भाग नहीं लेते थे। श्री गोपालकृष्ण गोखलेकी सलाहसे, जिनसे उनका वडा स्नेह था, वे एक सालतक देगकी स्थितिका अध्ययन करते रहे । उसके बाद भी वे प्रायः मामाजिक सुधारके कामोंमे ही लगे रहे । काग्रेसके अधिवेशनोमे वह सम्मिलित अवश्य होते थे, लेकिन दक्षिण अफ्रीका सम्बन्धी प्रस्तावको छोड़कर वे प्रायः अन्य प्रस्तावोपर भाषण नहीं करते थे। उस समय सरकार उनका बहुत आदर करती थी। सन् १९१५मे उनको ‘कैसर-ए-हिन्द' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया । युद्धके समय महात्माजीने सरकारकी सहायता भी की थी। सन् १९१८मे महात्माजीने अपने वक्तव्यमे कहा था कि युद्धमे सरकारकी सहायता करना स्वराज्य पानेका सबसे सीधा और सरल उपाय है पीर गुजरातके लोगोसे फोजके लिए सैनिक देनेकी भी अपील की थी। सुधारोके सम्बन्धमें भी उनकी ऐसी कोई बुरी राय न थी । सत्याग्रहका प्रयोग वह पहले भी कर चुके थे । दक्षिण अफ्रीकामें 'भारतवासियोपर जो अत्याचार होते थे, उनका विरोध करनेके लिए महात्माजीने सत्याग्रह शुरू किया था और इसमें उन्हें सफलता भी मिली थी । वहुत पहले ही वह टाल्सटाय, थोरो और रस्किनकी विचार-धारासे प्रभावित हो चुके थे । पाश्चात्य सभ्यताके वह विरोधी थे । सत्य और अहिंसाको ही वह भारतीय सभ्यताका सार समझते थे और इसीलिए उनका यह विचार था कि भारत ही यूरोपके व्यथित हृदयको शान्ति पहुँचा सकता है । सत्याग्रही शस्त्र या पाशविक वलका प्रयोग नहीं करता, पर इसका यह अर्थ नही है कि वह निश्चेप्ट और निष्क्रिय है । वह पाणविक शक्तिका मुकाबला करनेके लिए आध्यात्मिक शक्तिका प्रयोग करता है । भयरहित हो वह सव प्रकारके कप्टोको सहन करता है । वह दृढ़-संकल्पका होता है और अन्तमें अपने प्रतिपक्षीपर विजय प्रात करता है । प्राचीन कालमें धर्मके उपदेशकोने भी सत्य और अहिंसाकी शिक्षा दी थी। भगवान् वुद्धका कहना था कि वैर वैरसे शान्त नहीं होता । क्राइस्टकी शिक्षा थी कि यदि कोई तुम्हारे एक गालपर चपत लगाये तो दूसरा गाल भी सामने कर दो। पर व्यक्तिगत जीवनमें ही इन सिद्धान्तोको कार्य-त्पमें विरले ही परिणत करते थे । सामाजिक जीवनमे यह सिद्धान्त व्यवहार में नही आते थे। महात्माजीने सत्याग्रहके सिद्धान्त और उसकी रण-पद्धतिका पूर्ण विकासकर प्रयोगोद्वारा यह सिद्ध कर दिया कि राजनीतिक क्षेत्रमे भी इसका उपयोग सफलताके साथ हो सकता है । उनका यह दावा है कि इसी सिद्धान्तके स्वीकार करनेसे जातियोका पारस्परिक वैमनस्य दूर हो सकता है और संसारमे सच्ची शान्ति स्थापित हो सकती है।
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