पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३८१

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राष्ट्रीयता और समाजवाद संस्कृतवाङ्मयका महत्त्व और उसकी शिक्षा' माननीय सभापति महोदय, माननीय शिक्षा-सचिवजी, श्रीमान् कुलपतिजी, विद्वद्वन्द, स्नातक वन्धुओं तथा देवियो और सज्जनो, आपने उपाधि-वितरणोत्सवके शुभ अवसरपर दीक्षान्त भाषणके लिए निमन्त्रित कर मुझे गौरवान्वित किया है । इस कृपाके लिए मै आपका अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। काशी भारतका सबसे प्राचीन नगर और विद्यापीठ है । इसकी शिक्षाकी परम्परा अक्षुण्ण रही है और यह सदासे भारतीय सस्कृति और संस्कृत विद्याका प्रधान केन्द्र रहा है । आज भी इसका सारे देशमे आदर है । काशीके इस सस्कृत महाविद्यालयने विशेप रूपसे प्रसिद्धि प्राप्त की है । इस विद्यालयको अनेक प्राच्य और प्रतीच्य विद्वानोने सुशोभित किया है और यह उन्हीकी प्रकाण्ड विद्वत्ता और साधनका फल है कि इस विद्यालयकी कीर्ति समस्त भारतवर्पभे फैल गयी है । स्थापनाके प्रारम्भकालसे ही इस सस्थाका एक उद्देश्य संस्कृत ग्रन्थोका संग्रह करना भी रहा है और इस उद्देश्यमे इसको विशेप रूपसे सफलता मिली है । डाक्टर वेनिसके उद्योगसे सन् १९१४ मे ग्रन्थागारके लिए सरस्वती भवनकी स्थापना हुई थी और यह हर्पका विषय है कि इस पुस्तकालयमे हस्तलिखित प्राचीन पुस्तकोकी संख्या ५०००० से अधिक है । यह संग्रह विशेप रूपसे उल्लेखनीय है और सरस्वती-भवनसे जो ग्रन्थमाला प्रकाशित होती है उसमे अवतक इस संग्रहके दो सौ उपादेय ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है। मै अपनेको भाग्यशाली समझता हूँ कि मैने इस विद्यालयके प्रिंसिपल डाक्टर वेनिस, पं० केशव शास्त्री और प्रो० नार्मनसे सस्कृत, प्राकृत, पाली तथा पुरातत्वकी शिक्षा प्राप्त की थी तथा इस महाविद्यालयके गोलोकवासी म. म श्रीराम शास्त्री तैलग और प० जीवनाथ मिश्रसे अलंकार-शास्त्र तथा न्यायका अध्ययन भी किया था। भारतीय संस्कृति और प्राचीन इतिहासके प्रति जो मेरी श्रद्धा थी वही मुझको यहाँ खीच लायी थी। उस कालका स्मरण कर मुझे अाज भी अपूर्व आनन्द होता है, क्योकि इन विद्वानोके चरणोमे बैठकर मैंने अपनी प्राचीन संस्कृतिका थोडा-बहुत ज्ञान प्राप्त किया था और आधुनिक आलोचना और अन्वेपणके प्रकारका अध्ययन किया था। जो व्यक्ति अपनी ज्ञान-परम्परा तथा अतीतके इतिहासका ज्ञान नही रखता वह सभ्य और शिष्ट नही कहला सकता, क्योकि वर्तमानका मूल अतीतमे है और विना उसको जाने वर्तमान कालके सामाजिक जीवनमें वुद्धिपूर्वक सहयोग करना कठिन है । अतः मै इस संस्थाका अत्यन्त ऋणी हूँ। एक और दृष्टिसे भी उन दिनोकी स्मृति बड़ी मधुर है । जो विदेशी विद्वान् यहाँ अध्यापनका कार्य करते थे, वह सास्कृत विद्याके परम अनुरागी थे और उन्होने इस महाविद्यालयके पण्डितोसे प्राचीन शास्त्रोका ज्ञान प्राप्त किया था। इस कारण यहाँका वातावरण अन्य विद्यालयोसे सर्वथा भिन्न था। १. काशी सस्कृत महाविद्यालयके समावर्तन संस्कारके अवसरपर दिया गया दीक्षान्त भापण ।