पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३८२

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सस्कृतवाडमयका महत्त्व और उसकी शिक्षा ३६७ यह प्रसन्नताका विपय है कि प्रान्तकी गवर्नमेण्टने इस विद्यालयको संस्कृत विश्व- विद्यालयका रूप देनेका निश्चय किया है । अव समय आ गया है कि इस सस्थाका लक्ष्य अधिक व्यापक और समयके अनुरूप बनाया जावे । भारतीय और प्रतीच्य विद्वानोके सहयोगसे सस्कृतवाडमयका उद्धार हो रहा है । इस शुभ कार्यका श्रीगणेश यूरोपीय विद्वानोने किया था । किन्तु गत ३० वर्पोमे भारतीय विद्वानोने अपूर्व उत्साह और लगनसे अन्वेषण और शोधके कार्य मे विशिष्ट भाग लिया है। राजनीतिक चेतनाके साथ-साथ राष्ट्रीय आधारपर सास्कृतिक जीवनको आश्रित करनेका भी प्रयत्न किया गया है। प्राचीन इतिहास और सस्कृतिके अध्ययनमे विशेष अभिरुचि उत्पन्न हो गयी है और भारतीय विद्वानोने पाश्चात्य शिक्षाद्वारा अन्वेपणकी वैज्ञानिक पद्धतिको सीखकर साहित्य, भापा, धर्म तथा सामाजिक सस्थानोका अध्ययन किया है । आज भी इस कार्यमे यूरोपीय विद्वान् अपना दान दे रहे है । किन्तु इसमे सन्देह नही कि स्वतन्त्र होनेपर हमारा उत्तरदायित्व बहुत बढ़ गया है । हमारा कर्तव्य है कि संस्कृत विद्याके अध्ययनको हम पाठ्यक्रममे विशिष्ट स्थान दे और अन्वेषणके कार्यको प्रोत्साहन दे । आधुनिक युगके दो महापुरुषोके कारण तथा अपनी प्राचीन संस्कृतिके कारण हमारा संसारमे आदर है । यह खेदका विषय होगा यदि हम इस आवश्यक कर्त्तव्यकी ओर उचित ध्यान न दे और सस्कृतवाडमयकी रक्षा और वृद्धिके उदासीनता दिखावे । सस्कृतवाङमय आदर और गौरवकी वस्तु है और उसका विस्तार और गाम्भीर्य हमे चकित कर देता है । हमको उसका उचित गर्व होना चाहिये । सस्कृत संसारकी सबसे प्राचीन आर्य-भाषा है जिसका वाडमय आज भी विद्यमान है । ऋग्वेद हमारा सबसे प्राचीन ग्रन्थ है । रामायण और महाभारत ससारके अनुपम और बेजोड काव्य है । यही हमारी सस्कृतिकी मूलभित्ति है। अनेक नाटक और काव्योकी सामग्री इन्ही ग्रन्थोसे उपलब्ध हुई है। महाभारत वेदके समान पवित्र माना जाता है । (इतिहासपुराण पञ्चम वेदाना वेदम्) महाभारत हमारी प्राचीन संस्कृतिका भाण्डार है। इसमे प्राचीन आचार-विचार, रीति-नीति, आदर्श और सस्थानोका इतिहास उपनिवद्ध है । यह दर्पणके समान है जिसमे प्राचीन भारतका जीवन प्रतिविम्वित होता है । कालकी दृष्टिसे रामायण एक उत्कृष्ट ग्रन्थ है । इसलिए वाल्मीकिको आदिकवि कहते है । इसमे माधुर्य और प्रसाद-गुण है और यह उत्तम काव्यका प्रतिमान समझा जाता है । इसी कारण रामायण और महाभारतके अनेक सस्करण है । रामोपाख्यान यवद्वीप, सुमात्रा, कम्बोडिया, चम्पा, स्याम, चीन और तिव्बतमे प्रचलित था । यवद्वीपकी रामायण- के कुछ अश भट्टिकाव्यका अनुवाद है और कुछ अश उसके अाधारपर लिखे गये है। तिब्बतमे जो रामायणका सस्करण प्राप्त हुआ है उसकी कथा रामायणी कथासे भिन्न जैनियोमे भी रामायणके दो सस्करण है :-एक वाल्मीकिका अनुसरण करता है, दूसरा बौद्ध-कथासे प्रभावित है। इसी प्रकार महाभारतकी कथा किसी न किसी रूपमे वृहत्तर भारतके कई देशोमे प्रचलित थी। भारतीय भाषाओने तुलनात्मक भाषा-विज्ञानको जन्म !