पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३८३

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राष्ट्रीयता पीर समाजवाद दिया है। व्याकरण शास्त्र भी इस देशमे चरमविकासको पहुँचा है । रूसी विद्वान् श्चेरवात्स्कीके शब्दोंमे पाणिनिकी अष्टाध्यायी मानवी बुद्धिको सर्वश्रेष्ठ कृतियोमेंसे है । उपनिपदोकी विचारधारा और साधना ससारके अलभ्य रत्नोमें से है । भारतमें जिन विशिष्ट विचार-धाराग्रोने जन्म लिया है उन सबका मूल स्थान उपनिपदोमे है । उपनिपद्के वाक्योमे गाम्भीर्य, मौलिकता और उत्कर्प पाया जाता है और वह प्रशस्त, पुनीत और उदात्त भावसे व्याप्त है । मैक्समूलरका कथन है कि उपनिपद् प्रभातके प्रकाश और पर्वतोकी शुद्ध वायुके समान है । जिस प्रकार जव हिमानीसे पुण्यसलिला भगवती भागीरथी उद्गत होकर पर्वतमालामे घूमती हुई प्रवाहित होती है तब उनमे स्नान करनेसे वाह्य और ग्राभ्यन्तरकी विशुद्धि होती है और एक क्षणके लिए ऐसी प्रतीति होती है मानो सकल वासनाका हो गया हो, सकल शरीर प्रीति-रससे प्राप्लुत और सकल चित्त कुल चेतनाकी भावनासे वासित और व्याप्त हो गया हो, उसी प्रकार उपनिपद्वावयोमे अवगाहन कर एक नया चैतन्य पीर एक नयी प्रेरणा मिलती है। यह वाक्य कभी वासी नही होते, कभी पुराने नही पड़ते । यह सदा नूतन और सदा नवीन है । उपनिपद् वह स्तम्भ है जिसपर प्रतिष्ठित संस्कृत विद्या और भारतीय संस्कृतिका दीपक सदा प्रकाश देता रहता है । यह हमारी अचल निधि है, यही हमारा जयस्तम्भ है। संस्कृतवाडमयकी व्यापकता भी अद्भुत है । इसके अन्तर्गत अनेक शास्त्र और विद्याएँ है । इसकी धारा अविच्छिन्न रही है । सस्कृतवाडमयमे मैं पाली और प्राकृतका भी समावेश करता हूँ। एक समय था कि जब सस्कृतका विगाल क्षेत्र था। मध्य एशियासे लेकर दक्षिण पूर्ण एशियाके द्वीपोतक संस्कृतका अखण्ड राज्य था। उस समय विविध सम्प्रदायोके विद्वान् संस्कृतमे ही ग्रन्थ-रचना करते थे और शास्त्रार्थ भी संस्कृतमे होता था। इस विशाल क्षेत्रपर भारतीय संस्कृतिका अपूर्व प्रभाव पड़ा था। यवद्वीपका प्राचीन साहित्य सस्कृतपर आश्रित था और स्याम, लंका, मलय, जावा, हिन्दचीन आदिकी भापानोपर सस्कृतका प्रभाव आज भी स्पप्ट है। इसी कालमे भारतीयोने इन द्वीपोमे उपनिवेश वसाये थे। मध्य एशियामे वौद्धधर्मके साथ-साथ भारतीय भापा, लिपि, दर्शन और कला भी गयी थी। तिव्बतका वौद्ध वाडमय भारतीय और भोटके पण्डितोके सहयोगसे तिव्बती भापामे अनूदित हुआ था और तिब्बती लिपि भी भारतकी देन है । आज भी तिव्बतके मठोंमे प्राचीन संस्कृतके ग्रन्थ पूजे जाते है । दिङनागका न्यायमुख और पालम्बन परीक्षा, धर्म-कीर्तिका प्रमाणवात्तिक आदि कई ग्रन्थ वहाँसे उपलब्ध हुए है। महापण्डित श्री राहुल सांकृत्यायन तिव्वतके मठोसे ५१० हस्तलिखित संस्कृत पोथियोकी सूची लाये है । अनेक भारतीय ग्रन्थ एशियामे पाये गये है। सिकियांगका प्रान्त जो आज रेगिस्तान है, एक समय हराभरा प्रदेश था और उसके नगरोमे वौद्धोके अनेक विहार और चैत्य थे जहाँ समृद्ध पुस्तकागार और कलाकी वस्तुएँ थी। इस स्थानपर अनेक भापासोका समागम और मिलन होता था। इस प्रदेशसे संस्कृत, प्राकृत, तथा अन्य अपरिचित भाषायोके ग्रन्थ उपलब्ध हुए है । स्टाइनने भारतकी अोरसे खोजका