संस्कृतवाडमयका महत्त्व' और उसकी शिक्षा काम किया था। पुराने विहारोके भग्नावशेपसे वौद्ध मूर्तियाँ तथा रेशम, कागज और कपड़ापर अनेक चित्र प्राप्त हुए है । इन खोजोसे एक विलुप्त सभ्यताका पता लगा है। तुर्फान, कूचा,खुतन तथा अन्य स्थानोसे विपुल सामग्री प्राप्त हुई है । यह ग्रन्थ भूर्जपत्र, कागज, चमडा या लकडीपर लिखे गये है। इनकी लिपि गुप्तकालीन अथवा खरोष्ट्री है । वौद्धोके सस्कृत आगमके कई ग्रन्थ यहाँ पाये गये है तथा मातृचेटके दो प्रसिद्ध स्तोत्र-ग्रन्थ भी मिले है जिनकी प्रशंसा चीनी पर्यटक इत्सिङ्ग करता है । यहीसे अश्वघोपके नाटकोके अंश प्राप्त हुए है । खुतनका राजकाज भारतीय भाषाप्रोमें होता था और यहाँके राजाप्रोके नाम भारतीय थे। काराशरका प्राचीन नाम अग्निदेश था । कूचासे ही बौद्धधर्म चीन गया था। प्रसिद्ध कुमारजीव कूचाका ही अधिवासी था । कूचाकी सस्कृति भारतीय थी। यहाँ तन्त्र व्याकरणका अध्ययन होता था । अफगानिस्तानमे सन् १९२२ से प्राचीन खुदाईका काम हो रहा है । हड्डामे अनेक स्तूप, चैत्य और मूर्तियाँ पायी गयी है । वामियानमे बुद्धकी विशाल मूत्तियाँ तथा भित्ति- चिन मिले है। यहाँपर भूर्जपत्रपर लिखित सस्कृत ग्रन्थ भी मिले है । यह महासाधिक विनयग्रन्थ तथा महायानके अभिधर्म ग्रन्थोके अंश है । काबुलके उत्तर-पश्चिम खैरखानिह पर्वतपर एक मन्दिरके भग्नावशेष मिले है जो गुप्तकालीन मन्दिरकी रचनाका स्मरण दिलाते हैं । यहाँ श्वेत संगमरमरकी सूर्यकी एक प्रतिमा भी मिली है जो चतुर्थ शताब्दी- की है। कम्बोडिया (कम्बुज देश) जो हिन्दचीनमे समाविष्ट है ६०० वर्षतक भारतीय संस्कृतिका एक केन्द्र रहा है । यहाँ सस्कृतके लेख पाये गये है । यहाँके स्थापत्यमे विष्णु, राम और कृष्णकी कथाएँ सञ्चित है । भारतीय कलाका सौन्दर्य यहाँ निखरा है । कहाँतक कहे, दूर-दूर प्रदेशोमे भारतीय ग्रन्थ पाये गये है । मैक्समूलरके एक जापानी शिष्यने जापानके एक मन्दिरमे सुखावती व्यूहकी पोथी पायी थी। चीन और मंगोलियामे वौद्धधर्मके साथ-साथ भारतीय संस्कृति भी गयी थी। चीनके साहित्यका अध्ययन करनेसे भारतके सम्बन्धमे बहुत-सी बाते विदित होगी। कुछ काल पहले चीनी पर्यटक च्वंग-च्वग- को गयाके सघारामके आचार्यद्वारा लिखित पत्र और उसका उत्तर प्रकाशित हुआ था। इस सम्बन्धमे यह नहीं भूलना चाहिये कि बौद्धधर्म भारतीय था और उसकी संस्कृति भारतीय थी। अवैदिक होते हुए भी बौद्ध और जैन धर्मका कर्म तथा कर्मफलमे विश्वास था और दोनो नास्तित्ववादका खण्डन करते थे । पुन भारतके सव मोक्षशास्त्र चिकित्सा- शास्त्रके तुल्य चतुर्दूह है । हेय, हान, हेयहेतु और हानोपाय, यह चार सव मोक्षशास्त्रोके प्रतिपाद्य है । यही चार व्यूह योगसूत्रमे है । न्यायके यही चार अर्थपद है अर्थात् पुरुपार्य स्थान है । वुद्धके यही आर्यसत्य है । इन्ही चार अर्थपदोको सम्यक् रीतिसे जानकर नि.श्रेयस्की अथवा निर्वाणकी प्राप्ति होती है । सव अध्यात्म विद्याओंमे इन चार अर्थपदोका वर्णन पाया जाता है । सभी शास्त्र समान रूपसे स्वीकार करते है कि तत्त्वज्ञान अर्थात् सम्यक् दर्शन योगकी साधनाके विना नही होता । न्यायदर्शनमे कहा है कि समाधि- विशेषके अभ्याससे तत्वसाक्षात्कार होता है। २४
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३८४
दिखावट