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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४०७

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३६४ राष्ट्रीयता और समाजवाद अक्षुण्ण रखना चाहते है और अपने जीवनको अपने इच्छानुसार चलानेमें ही स्वतन्त्रताका अनुभव करते है । किन्तु ग्राजकी आवश्यकताका तकाजा है कि हम अपनी क्षुद्र गण्डीसे ऊपर उठे तथा सामुदायिक जीवनमे ही अपनी परिपूर्णता देखे । इसका यह अर्थ नही है कि राष्ट्र अपनी विणेपता नष्ट कर दे, कितु इनका यह अर्थ है कि हम राष्ट्रकी मर्यादाको समझे । अन्यथा आजके युगमे विकृत राष्ट्रीयता प्राराजकताका स्वरूप धारण कर लेगी। यूरोपमे जो अनर्थ हो रहा हे उसका कारण यही है । एक और वात हे जिसकी ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है । यूरोपके साम्राज्यवादी राष्ट्र आज भी साम्राज्यके स्वप्न देख रहे है। वे अपने-अपने साम्राज्य छोडना नही चाहते । इगलैण्डका प्रमुख पत्र 'इकानोमिस्ट' लिखता है--"ब्रिटेन, फ्रांस और हालैण्डकी सम्पत्ति तथा महत्ताके लिए सुदूर पूर्वकी इनको आवश्यकता है . . . । "इस बातको स्पष्ट कर देना चाहिये कि ये शक्तियाँ अपने-अपने साम्राज्यका परित्याग करनेका इरादा नही रखती। इसके प्रतिकूल वे यह घोपित करना चाहती है कि मलाया ईस्ट इण्डीज और फ्रेंच इण्डोचाइनाको फिरसे जीतना और अपने साम्राज्यमे सम्मिलित करना उनका मुख्य ध्येय है। "इस सम्बन्धमे मित्रराष्ट्र अमेरिकाके मनमे कोई सन्देह रहने देना अनुचित होगा, क्योकि इससे उसको आगे चलकर विश्वासघातका दोपारोप करनेका अवसर मिलेगा।" -१६ सितम्बर, १९४४ । इस मनोवृत्तिको देखते हुए ससारका भविष्य सुन्दर और सुखद नहीं मालूम होता । यूरोपका युद्ध समाप्त हो गया है किन्तु क्रान्तिको अवस्था अभी समाप्त नहीं हुई है । यदि जनताको अपनी शक्तियोको उन्मुक्त करनेका अवसर मिला तो कुछ आशा की जा सकती है । इगलैण्डमे मजदूर दलकी जीत एक शुभ लक्षण है । इससे यूरोपकी प्रगतिशील शक्तियोको प्रेरणा मिलेगी। किन्तु किसी ऐसे विराट् आन्दोलनके चिह्न दिखायी नही पड़ते जिसका विशाल लक्ष्य हो और जो वर्तमान युगकी आवश्यकताअोको पूरा करता हो ।' एशियाके स्वतन्त्रता-आन्दोलनकी एक रूप-रेखा एशियाके प्राचीन देशोके स्वतन्त्रता आन्दोलनका इतिहास तीन-चार घटनाप्रोसे सम्बद्ध है । पहली घटना रूस-जापानका १६०४ का युद्ध है । इस युद्धमे जापानकी विजय हुई। यह विजय एशियाकी यूरोप विजय मानी गयी। इसके पूर्व एशियाकी जातियोमें यह दृढ विश्वास जम गया कि यूरोपकी शक्तियोके आगे एशियाको सिर झुकाना ही पडेगा और एशिया यूरोपका मुकाविला कर नही सकता। इस धारणाके कई कारण थे । १. 'रानी' अगस्त सन् १९४५ ई० । .