एशियाके स्वतन्त्रता-आन्दोलनकी एक रूपरेखा ३६७ सन् १९०६ ई० मे ईरानमे भी हलचल हुई। ईरान रूसकी सन् १९०५ की क्रान्तिसे भी प्रभावित हुा । सन् १९०८ मे युवक तुर्क-पार्टीका संघटन हुआ। प्रथम यूरोपीय युद्ध दूसरी घटना जिसका समस्त एशियापर प्रभाव पड़ा सन् १९१४ का यूरोपीय महायुद्ध था। इस युद्धके समाप्त होते ही क्रान्तिकी लहर सर्वत्र दौड गयी। इस वार कई नये देश भी क्रान्तिके प्रभावमे प्रथम वार पाये। युद्ध क्रान्तियोकी धात्री समझी जाती है । सन् १९१४ के युद्धमे एशियाकी कई कीमोने भाग लिया था। यूरोपके राष्ट्र एशियायी फौजका उपयोग गोरी जातियोके विरुद्ध 'नही करते थे, किन्तु सन् १९१४ मे स्थितिसे विवश होकर उनको ऐसा भी करना पड़ा। एशियाके लोग यूरोपियनोके प्रत्यक्ष सम्पर्कमे आये और जो कुछ उन्होने देखा उससे यह निष्कर्ष निकाला कि पश्चिमकी सभ्यता एशियाकी सभ्यतासे उत्कृष्ट नही है । राष्ट्रीय भावनाके प्रवल होनेसे और प्राचीन इतिहासकी अभिज्ञता प्राप्त करनेसे उसमे अपने अतीतके गौरवपर गर्व उत्पन्न हो गया था और उनका अत्यावसाद लुप्त हो गया था । रूसकी क्रान्तिका भी बड़ा प्रभाव पडा । सन् १९१६ मे महात्माजीने सत्याग्रहका प्रयोग किया और वादमे खिलाफतका आन्दोलन शुरू हुआ । इसी वर्ष मिस्र और चीनमे विराट राष्ट्रीय आन्दोलनोंका जन्म हुआ । मिस्रका आन्दोलन सन् १९२२ मे समाप्त हुआ और मिस्रको स्वतन्त्रता मिली, तथापि यह स्वतन्त्रता असली न थी । मिस्र-इगलैण्डकी एक सन्धि हो गयी, इसकी शर्तोके अनुसार अग्रेज स्वेज नहरकी रक्षाके लिए एक फौजी दस्ता रखते है, सूडानपर उनका आधिपत्य है और युद्धके अवसरपर मिस्र इगलैण्डको खाद्य-पदार्थ और अन्य सामग्री तथा मिस्रमे प्रवेश देनेके लिए वाध्य है । अन्तर्राष्ट्रीय मामलोमे मिस्रकी स्वाधीनता नाममात्रकी ही रही है । मिस्रके अान्तरिक मामलोमे भी इंगलैण्ड समय-समय पर हस्तक्षेप करता रहा है । कभी यह हस्तक्षेप प्रत्यक्ष रूपसे होता है ; कभी बादशाह फारुकके द्वारा लोकमत व्यर्थ कर दिया जाता है । इसी युद्धके दौरानमे ब्रिटिश टैकोकी मददसे बादशाह नहसपाशाको प्रधान मन्त्री बनानेके लिए विवश किये गये और जब काम निकल गया और यह देखा गया कि नहसपाशा स्वतन्त्र रीतिसे काम करते है तब वादशाहको यह स्वतन्त्रता दी गयी कि वे प्रधान मन्त्री बदल दे । सानफ्रासिस्को कान्फरेसमे मिस्रके प्रतिनिधियोका वोट ब्रिटिश सरकारके अधीन था। अभी हालमे मिस्रने अंग्रेजी हुकूमतसे एक समझौता किया है, जिसके अनुसार मित्र 'स्टलिङ्ग क्षेत्र' ( Sterling Bloc ) के अन्तर्गत सम्मिलित कर लिया गया है। इसका फल यह होगा कि कतिपय ब्रिटिशवाजारोमे अमेरिकी डाहलरका बहुतायतसे प्रवेश न हो सकेगा। सन् १९१९ मे चीनमे जिस आन्दोलनका प्रारम्भ हुआ, उसकी परिसमाप्ति सन् १६२६-२७ की क्रान्तिके रूपमे हुई । सन् १९२७ मे दक्षिणसे लेकर उत्तरतकका प्रदेश क्रान्तिकारियोके हाथमे आ गया और यदि कुओमिताङ्गमे फूट न पडी होती तथा कम्युनिस्टों- से झगड़ा न शुरू हुआ होता तो चीन अवतक वहुत-कुछ स्वतन्त्र हो गया होता । वादके कई साल चीनके गृह-कलहमे ही वरवाद हुए और पीछेसे तो जापानका आक्रमण भी शुरू
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