पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४१२

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३६६ एशियाके स्वतन्त्रता-आन्दोलनकी एक रूपरेखा जो पहला चुनाव हुआ था, उसमे कई प्रकारकी रुकावटे डाली गयी थी, जैसे कि हमारे यहाँ अाज डाली जा रही है । मिस्रमे वादशाहसे दवाव डलवाकर और अनेक रूपमे अपना दवाव डालकर अग्रेजोने कई वाद वफ्द पार्टी ( Wafd Party) को पदच्युत् किया और उसके स्थानमे ऐसे राजनीतिज्ञोको शासनारूढ किया जो वफ्द पार्टीके लोगोकी अपेक्षा अधिक काबूमे थे। वहाँ जो गवर्नमेण्ट आज शासन करती है वह किसी एक पार्टीकी गवर्नमेण्ट नहीं है, किन्तु कई छोटे-छोटे समूहोकी सम्मिलित गवर्नमेण्ट है और ये लोग सदा अग्रेजोकी इच्छाके अनुसार कार्य करनेको तैयार रहते है । भारतमे भी कुछ ऐसी ही कोशिश हो रही है, पर यह चेष्टा सफल नही होगी, क्योकि सन् १९४२ के आन्दोलनने लोगोको सजग कर दिया है और काग्रेस अत्यन्त लोकप्रिय हो गयी है। इस आन्दोलनके कारण मुसलमानोमे भी कांग्रेसका प्रभाव कुछ वढ़ा है । आनेवाला चुनाव इसकी सत्यताको सिद्ध करेगा। वैज्ञानिक क्षेत्रमें भय जो जमात आजादीके लिए त्याग करती है उसका पानदर सभी करते है, किन्तु हमको भय वैधानिक क्षेत्रमे है । एक गलत कदम उठानेसे वही सिलसिला शुरू हो जायगा जो मिस्रमे सन् १९२२ के बादमे शुरू हुआ था। राष्ट्रीय पचायत ( Constituent Assembly ) के सम्बन्धमे सतर्कताकी जरूरत है । काग्रेसको किसी ऐसी विधान-परिपद्में भाग न लेना चाहिये जिसका निर्माण सच्चे अाधारपर नही किया गया है और जिसको सर्वाधिकार प्राप्त नही है । वालिग मताधिकारके अाधारपर चुनी हुई परिषद्मे ही हमको जाना चाहिये जब उस परिपदको अपने भविष्यके निर्माणका पूरा अधिकार प्राप्त हो । एशियामें उथल-पुथल युद्धके समाप्त होते ही दक्षिण-पूर्वी एशियाके देशोमे उथल-पुथल ग्रारम्भ हो गयी है। ऐसा होना स्वाभाविक था। हालैण्ड और फ्रास अपने साम्राज्यको छोडना नही चाहते, किन्तु जनता अपनी गुलामीको सहन नहीं करती और वह साम्राज्यसे मोरचा ले रही है। यूरोपका वह पुराना रोव खत्म हो चुका है और लोगोका राजनीतिक चैतन्य बढ गया है। संसारमे अभी शान्ति स्थापित होनेकी सम्भावना नही दिखायी देती। जबतक युद्धके कारण दूर नही किये जाते, तबतक शान्तिकी स्थापना असम्भव है । मित्रराष्ट्र शत्रुग्रोका विनाश करनेके लिए अस्त्र-शस्त्रका निर्माण कर सकनेकी सामर्थ्य रखते थे, किन्तु शान्तिकी प्रतिष्ठा करनेकी योग्यता उनमे नही पायी जाती । कूटनीतिज्ञतासे शान्ति कायम नहीं। होगी । युद्धोका अन्त तभी होगा जव साम्राज्य और दका अन्त कर सच्चे लोकतन्त्रकी स्थापना होगी। किन्तु अभी जनताको और कष्ट सहने है । हर जगह अशान्ति है । जनताकी दबी हुई शक्तियोको जैसे ही उभरनेका अवसर मिला, वैसे ही जगह-जगह विद्रोह होगे । कुछ विद्रोह सफल होगे, कुछ कठोरताके साथ दवा दिये जायेंगे और कुछके साथ समझौता होगा ।